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शिक्षकों स्थिति और मुर्गे की कहानी

 शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल  शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं,  शिक्षक |  अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं।  परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें |  उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और  पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी |         सरकारी शिक्षकों का दायित्व  एक सरकारी शिक्षक को  , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण,  बी एलओ,  सफाई , एमडीएमए ,चुनाव  और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक  जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल  पैर और वजनदार शरीर  अर्...

मेरी शिक्षा यात्रा

 शिक्षा यात्रा और मैं -



बारहवीं उत्तीर्ण करने के उपरांत उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना था | जनपद का एक मात्र प्रतिष्ठित महाविद्यालय घर से लगभग चालीस किलोमीटर दूर था | परन्तु हमारे पूर्वजों के पुण्य प्रताप  से हम लोगों के गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि  घर से तीन किलोमीटर पर रेलवे स्टेशन और  ट्रेन मिलने के लगभग एक घण्टे में  जिला मुख्यालय के रेलवे स्टेशन और  वहां से लगभग चार किलोमीटर पर महाविद्यालय |
घर पर बड़े भैया के निर्देश के उपरांत बड़े नाटकीय ढंग से विज्ञान स्नातक में प्रवेश हेतु आवेदन जमा किया गया। प्रवेश परीक्षा हुई सकुशल प्रवेश सुनिश्चित हुआ  |

रेल सफर -


मन में उल्लास था घर से बाहर स्वतंत्र रुप से विचरण और  होशोहवास में रेल सफर का |
रेल से सफर की खुमारी तो ऐसी की जो भी बात दिन भर में  मुखारबिंद से निकलती उसमें लगभग ३० फिसदी बात रेल सफर की ही होती  | यह क्रम महिना भर चलता रहा | 
सुबह पौने नौ (८.४५) बजे घर से निकलना  फिर ट्रेन से  महाविद्यालय और शाम को ९-१० बजे वापस आना | अभी   तो अच्छा लग रहा था ,परन्तु घर वालों को अब अच्छा नहीं लग रहा था , शायद पूरे दिन की घुमक्कड़ी में  पढाई का जनाजा निकल जाने से सभी लोग वाक़िफ हो गये थे  | इसे साहस कहूं या बद्तमीज़ी

एक अदद छत की आवश्यकता -

भैया ने निर्देश दिया महाविद्यालय के पास कमरा ढूढो और  अब वहीं रहो ऐसे पढाई न होगी | उस दिन  बड़ा झंझट सा लगा कमरा ढूढना और  रहना ,हमारे साथ  गुड्डू भैया भी स्नातक (कला वर्ग  ) में थे | वही हमें पहली बार महाविद्यालय तक और  ट्रेन  से शहर तक ले गये  थे | घर छोड़ कर शहर में रहने का उनका कोई  इरादा न था ,
परन्तु भैया के कहने के बाद मेरा जाना तय था | 
मैं  यह बात गुड्डू भैया से जा कर तुरन्त और  गम्भीरता से बताया  ,उस समय गुड्डू भैया मेरे लिए समस्या संधानक (trouble sutter  ) थे | गुड्डू भैया ने कहा ठीक है ,कोई बात नहीं कमरा मिल जायेगा | मैने कहा केवल कमरा मिलने से नहीं होगा एक कुशल रुम पार्टनर भी चाहिए, उन्होंने ने कहा ठीक है देखा जाएगा  चलो नहाओ ट्रेन का  समय हो गया  चला जाए |
फिर हम लोग नहा -खा कर ट्रेन  पकड़े और  पहुंच गए  महाविद्यालय  | परन्तु आज टास्क दूसरा था , पूरे रास्ते और  कक्षा में तथा कक्षा के बाद भी रुम पार्टनर ढूढने की जिम्मेदारी  बार - बार ध्यान भंग कर रही थी | कुछ दिन में यह तलाश भी पूरी हुई  हमारे स्कूल के मित्र मन्नू भी कुछ ऐसी ही खोज में थे | एक दूसरे से मुलाकात के बाद हम दोनो की जरुरत पूरी हुई  |  अब ढूढने की जरूरत थी उस अजनबी शहर में एक  छत जिसके नीचे  हमारी विद्या के पिटारे और बिस्तर रखे जा सके  | अब अगले दिन से गुड्डू भैया के नेतृत्व में स्टेशन और  कॉलेज के मध्य स्थान पीरनगर से कमरा ढूढने का कार्य प्रारम्भ हुआ | साथ में गुड्डू भैया, मन्नू और  गौरव भी जुड़ गये थे  | गौरव स्कूल से ही मित्र थे ,उन्हे भी कमरा साथ में चाहिए था परन्तु अकेले रहने का इरादा था  | इस काम विशेष अनुभव तो किसी को न था परन्तु  भगवान श्री राम की तरह "हे खग ,हे मृग ,हे मधुकर श्रेणी, तुमने देखा कहीं सीता मृगनैनी " |ठीक उसी प्रकार हम लोगों ने ,चाय वाले से ,पान वाले से, दुकान वाले से पूछना शुरू किया |परन्तु सफलता हाथ न लगी | अगले दिन मैं नहीं गया उसी दिन एक बाल काटने की दुकान पर टीम (कमरा ढूढने वाली) द्वारा पूछने पर पता चला की हां कमरा है और वह दुकान वाले शर्मा जी गये और  कमरा दिखा दिए | अब अगले दिन हमें वह कमरा पास करना था मैं  पहुंचा साथियों ने कमरा दिखाया ,कमरा ठीक था परन्तु किराया अधिक था | यह कहने पर बाल काटने की दुकान वाले ने एक कमरा और दिखाया जो उस कमरे से सौ रुपये कम किराये का था | परन्तु उसमें कोई खिड़की न थी अत:वह कमरा पसंद न था | अब हम लोग बाल काटने की दुकान पर पहुंचे और शर्मा जी से कहे किराया कुछ कम कीजिए इस पर शर्मा जी की दुकान में बाल कटा रहे एक सज्जन ने कहा , दूसरा जो कम किराये वाला कमरा है वो क्यों नहीं दिखा देते  ,तो शर्मा जी ने कहा दिखाए थे तो इन्होने कहा कि खिड़की नहीं है | अब बाल कटाने वाले सज्जन ने कहा पढाई करने वाले लड़के उस कमरे में भी पढ लेंगे , ये लोग पढ़ने वाले नहीं हैं | मैने कहा अंकल जी  पढाई करने वाले धुंआ करके तो पढ़ेंगे नहीं और  आप से तो बात भी नहीं हो रही है शर्मा जी  का कमरा है उनसे बात हो रही है ,आप बीच में न बोलें तो ठीक  होगा | तब शर्मा जी ने कहा कमरा तो इन्ही का है | अब हम लोग वहां से वापस हो लिए  |नींव का निर्माण
अगले दिन भी कमरे की तालाश जारी रही ,महाविद्यालय के मुख्य द्वार के बाहर  चाय की दुकान थी वहीं पता चला  की यहां से कुछ दूरी पर  नवोदय विद्यालय के पास शिवपूजन जी ने कमरे बनवाए हैं और वह अभी खाली हैं | अब हम लोग पहुंच गये  नवोदय विद्यालय के पास पूजन जी(शिवपूजन जी को लोग पूजन और  मैनेजर के उपनाम से जानते थे)  के नवनिर्मित व्यक्तिगत छात्रावास पर उसमें लगभग बारह कमरे थे ,आठ कमरे पूर्ण छत वाले तो चार कमरे अल्बेस्टस की सीट वाले कमरे थे कमरों के किराए में  सौ रुपये का अंतर था | कमरे जगह और किराया सब पसंद आ गया | हम लोगों ने  पूर्ण छत वाले दो कमरो का चयन कर लिया  एक अपने लिए और   एक गौरव के लिए | अगले दिन ही उन कमरों के लिए अग्रिम किराया देते हुए ताला बंद करके  हम लोगों ने यह सुनिश्चित किया कि यह कमरा हम लोगों का हुआ अब कमरे के सर्च आपरेशन पर विराम लगा |

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उ कहाँ गइल

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अभिनन्दन पत्र

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