डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
अंचार और पराठा
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एक वह भी समय था स्कूल की घंटी दूर तक सुनाई देती थी , दौड़ कर स्कूल पहुंचना और थोड़ा सा विलम्ब होने पर गेट बंद होना ,अब दोनों तरफ मुसीबत स्कूल में पिटाई और घर लौटे तो कुटाई | अब वह दौर नहीं रहा अब तो दरवाजे पर पीले रंग की मार्कोपोलो स्कूल बस खड़ी हो जाती है और मम्मी बस्ता लेकर सहायक परिचालक (खलासी)को थमाती हैं बच्चा स्कूल पहुंचता है |
लंच बॉक्स
हमारे समय तक फाइवर (प्लास्टिक )और स्टील के लंच बॉक्स (टिफिन ) चलन में आ गये थे | मेरी फटी कमीज यह भी पढें
मध्यावकाश के समय टिफिन खुलते ही अंचार की खुश्बू पूरे वातावरण में घुलने लगती और जहां तक पहुंचती लोगों के मुंह में पानी आ जाता जो अपने टिफिन में सब्जी भी लाया होता उसका मिजाज अंचार के लिए मचल उठता |
लंच का मेन्यु
लंच के मेन्यु निर्धारण में कोई दिक्कत न थी सामान्यता पराठे और आम अथवा मिर्चे के अचार हुआ करते थे मध्याह्न भोजन के लिए और आम के अंचार की गुठली को तृप्ति के अंतिम छोर तक चूसने वाले किरदार भी हमारे समय में पाए जाते थे |
एक ही मेन्यु लगभग रोज अंचार और पराठा खाकर जो आनन्द की प्राप्ति होती वह दस व्यंजनों में भी शायद न हो और सभी तंदरुस्त - तगड़े , बीमारी नाम की कोई चीज नहीं ,अब के बच्चों को तो स्कूल से डाइट चार्ट मिल रहा है और मेन्यु निर्धारित हो रही है | मम्मी को रात में माथा खपाना होता है कि बच्चे की टिफिन में सुबह क्या स्पेशल देना है |
#यादें_बचपन
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