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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

जालियां वाला बाग हत्याकांड

  विश्व के मानवीय इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना  13 अप्रैल 1919 पंजाब का जालियां वाला बाग हत्याकांड | इस नृशंस हत्या का नेतृत्व कर रहा था | अंग्रेज जनरल डायर | इस  हत्याकांड में शहीद होने वाले भारतीयों में सिक्खों और हिन्दुओ की  संख्या अधिक थी |अवसर था रौलेट एक्ट का विरोध | हत्याकांड का कारण भारतीयों पर होते अत्याचार व बर्बर कानूनों के बढ़ते दबाव से भारतीयों का धैर्य जबाब दे चुका था | अब सभी भारतीय एकजुट होकर जगह - जगह विरोध कर रहे थे |  समय था 13 अप्रैल 1919 का, उस समय सम्पूर्ण देश में रौलेट एक्ट का विरोध चरम पर था |  परन्तु इसे  दुर्भाग्य ही कहा जाए तो ठीक होगा | रविवार का दिन था पंजाब की एक बेहद ही खूबसूरत जगह जालियां वाला बाग में बैसाखी  का मेला लगा था |  सभी स्थानीय भारतीय उस मेले में सम्मिलित हुए | जालियां वाला बाग चहारदीवारी से घिरा एक शानदार बाग था, जो लगभग 26000 स्क्वायर फिट में फैला है | उस बाग  में एक ही प्रवेश और निकास द्वार था |  भारतीयों के रौलेट एक्ट के विरोध को देखकर अंग्रेजी शासन की चूलें हिल गई थी | इसलिए उस उत्सव मे...

हिन्दी के हरकारे

 हिन्दी के हरकारे हिन्दी दिवस 2021  "निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल "                                               - भारतेन्दु हरिश्चंद्र जब भारतेन्दु जी ने  जब यह बात कही तब तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कही थी | परन्तु परिस्थितियां बेहतर की जगह बदतर हुई हैं | न हमने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को वह सम्मान दिलाया और न ही अपने राष्ट्र में राष्ट्र भाषा का दर्जा | महात्मा गांधी ने कहा था - हिन्दी जनमानस की भाषा है | आइये उन हिन्दी के हरकारों ( दूत,संदेश वाहक, डाकिया)के बारे में जो युगों - युगों तक हमें हिन्दी से सिंचित करते रहेंगे | मुंशी प्रेमचंद मुंशी जी ब्रिटिश शासन में देशवासियों के हृदय में  अपनी लेखनी से देश प्रेम की जो लौ जलाई वह धधकती रही सोजे वतन, कलम का सिपाही फणीश्वरनाथ रेणु  फणीश्वरनाथ नाथ रेणु की भी रचनाएँ (मैला आँचल) स्वतंत्रता सेनानियों के लिए  तथा आंचलिक समस्याओं के लिए मील का पत्थर साबित हुयी  रामधारी सि...