स्कूल" स्कूलों का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...
विश्व के मानवीय इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना
13 अप्रैल 1919 पंजाब का जालियां वाला बाग हत्याकांड | इस नृशंस हत्या का नेतृत्व कर रहा था | अंग्रेज जनरल डायर | इस हत्याकांड में शहीद होने वाले भारतीयों में सिक्खों और हिन्दुओ की संख्या अधिक थी |अवसर था रौलेट एक्ट का विरोध |
हत्याकांड का कारण
भारतीयों पर होते अत्याचार व बर्बर कानूनों के बढ़ते दबाव से भारतीयों का धैर्य जबाब दे चुका था | अब सभी भारतीय एकजुट होकर जगह - जगह विरोध कर रहे थे |
समय था 13 अप्रैल 1919 का, उस समय सम्पूर्ण देश में रौलेट एक्ट का विरोध चरम पर था |
परन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए तो ठीक होगा | रविवार का दिन था पंजाब की एक बेहद ही खूबसूरत जगह जालियां वाला बाग में बैसाखी का मेला लगा था | सभी स्थानीय भारतीय उस मेले में सम्मिलित हुए | जालियां वाला बाग चहारदीवारी से घिरा एक शानदार बाग था, जो लगभग 26000 स्क्वायर फिट में फैला है | उस बाग में एक ही प्रवेश और निकास द्वार था | भारतीयों के रौलेट एक्ट के विरोध को देखकर अंग्रेजी शासन की चूलें हिल गई थी | इसलिए उस उत्सव में एक साथ बड़ी संख्या में सम्मिलित भारतीयों के उपर जनरल डायर ने गोली चलवा दी | वहाँ की भौतिक स्थिति बाग में मेला का होना और बाग में एक ही प्रवेश और निकास द्वार होने ने उस बर्बर कार्वाही को बर्रबरतम बना दिया | बाग की मिट्टी खून से सराबोर हो गई, लाशों के ऊपर लाशें पड़ी | शायद यह विश्व का सबसे नृशंस और अमानवीय हत्याकांड था | इसके लिए मानवता अंग्रेजों को माफ नहीं करेगी |
जालियां वाला बाग
आज के सामय में जब हम जालियां वाला बाग को देखेंगे तो आज भी वहाँ सुन्दर सा बाग है | हम तो उसकी सुन्दरता देख रहे होते हैं पर हम यह नहीं भूलते कि यह शहिदों के पावन लहू से सींचा गया है | हाँ उस बाग की पवित्र मिट्टी को आज भी भारतीय पर्यटक माथे पे लगाना नहीं भूलते |
शहीदों के लहू को कोटि- कोटि नमन्
Jaliya wala bagh
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