Skip to main content

Posts

Showing posts with the label TRAVELLER

डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी भाग ३

                     का शी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग ३ अब हम लोग वहाँ की आबोहवा को अच्छी तरह समझने लगे थे नगरनार जंगल को विस्थापित कर स्वयं को पुष्पित - पल्लवित कर रहा था बड़ी - बड़ी चिमनियां साहब लोग के बंगले और आवास तथा उसमें सुसज्जित क्यारियों को बहुत सलीके से सजाया गया था परन्तु जो अप्रतीम छटा बिन बोइ ,बिन सज्जित जंगली झाड़ियों में दिखाई दे रही थी वो कहीं नहीं थी| साल और सागौन के बहुवर्षीय युवा, किशोर व बच्चे वृक्ष एक कतार में खड़े थे मानो अनुशासित हो सलामी की प्रतीक्षा में हों... इमली, पलाश, जंगली बेर , झरबेरी और भी बहुत अपरिचित वनस्पतियाँ स्वतंत्र, स्वच्छन्द मुदित - मुद्रा में खड़ी झूम रहीं थी | हमने उनका दरश - परश करते हुए अगली सुबह की यात्रा का प्रस्ताव मेजबान महोदय के सामने रखा | मेजबान महोदय ने प्रत्युत्तर में तपाक से एक सुना - सुना सा परन्तु अपरिचित नाम सुझाया मानो मुंह में लिए बैठे हों.. " गुप्तेश्वर धाम " | नाम से तो ईश्वर का घर जैसा नाम लगा हम लोगों ने पूछा कुल दूरी कितनी होगी हम लोगों के ठहराव स्थल से तो ...

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग २

*काशी से स्वर्ग द्वार- बनवासी तक*(भाग-२) अगले दिन सूर्योदय कब हुआ इससे अनभिज्ञ रहे,लगभग आठ बजे हम लोगों को निंद्रा ने मुक्त किया। अब हम लोग उत्साह और ऊर्जा से लबालब थे।मैंने बालकनी से झांक कर देखा सूरज प्रकृति को परिभाषित करने में तथा करने में जुटा था। मैं यह नयनाभिराम दृश्य कुछ देर तक निहारता रहा तभी मेजबान महोदय की आवाज - अरे कहां हैं आप लोग ! इतना सुनते ही मैं अन्दर मुखातिब होते हुए, हां-हां यहीं ,सदेह हैं सभी लोग । एकबार सभी लोग हंस पड़े। उन्होंने ने कहा दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर काफी/चाय कर लीजिएगा , बोल दिया हूं ,मेस वाला लाकर पहुंचा जाएगा और कहां जाने का विचार है आज! हम लोगों को वहां के नामचीन पर्यटन स्थानों की सूची सुपुर्द करते हुए उन्होंने कहा। हमारे सहयात्रियों ने उन नामों में से एक गम्भीर नाम तीरथगढ़ का चुना । अब हम लोग चाय नाश्ता से तृप्त होकर चार की संख्या में दो सवारियों एक पहले की बाइक तथा एक यामाहा एफ जेड से निकल पड़े अपनी प्रवृति प्रेरित जिज्ञासाओं का शमन करने।सुहानी हवा , चिकनी सड़कें ,विरल आबादी से परिचय करते अब हम लोगों का कारवां *बस्तर* के जिला मुख्यालय ...

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग १

काशी से स्वर्ग द्वार -बनवासी तक भारत भ्रमण के सनक में हमारा रुख इस बार धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के तरफ था। संक्षिप्त अवकाश ,भ्रमण का उन्मुक्त आकाश ,पर कोई निश्चित योजना न थी। हम सहज -सहगामी मित्र का साथ पाकर अत्यंत उन्मुक्त और बेपरवाह थे। बेपरवाह इसलिए की वे काफी संजीदा और सजग व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं। हमलोग बाबा विश्वनाथ और बाबा काल भैरव को दण्डवत कर अपने काशी प्रवास को छोड़ भारतीय रेल के यथार्थ से रुबरु होते अगले दिन अपराह्न पांच बजे भिलाई पहुंचे। वहां अल्पाहार और अल्प विश्राम के उपरांत एक और यायावर को साथ लेकर रायल सवारी बुलेट से हमलोग जंगल सफारी हेतु सायं आठ बजे निकले। दिसम्बर का महीना काशी में भीषण ठंड परन्तु उस क्षेत्र में बसंती बयार सी गुदगुदी ,रात का समय, सड़कों पर आते-जाते बड़े वाहन,मन में जिज्ञासा और कौतूहल चरम पर था। जिला दुर्ग से होते हुए हमलोग *धम तरी* पहुंचे तब तक सड़कें ट्रकों के हवाले हो चुकी थीं। राष्ट्रीय राजमार्ग तीस के किनारे की दुकानें बियाबान हो रही थीं, सुनाई देता बुलेट की इंजिन की दम-दम-दम आवाज और अंधेरे का संगीत, हवा का अल्हड़ राग। सवारी अंधेरे को च...