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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग १

काशी से स्वर्ग द्वार -बनवासी तक


भारत भ्रमण के सनक में हमारा रुख इस बार धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के तरफ था। संक्षिप्त अवकाश ,भ्रमण का उन्मुक्त आकाश ,पर कोई निश्चित योजना न थी। हम सहज -सहगामी मित्र का साथ पाकर अत्यंत उन्मुक्त और बेपरवाह थे। बेपरवाह इसलिए की वे काफी संजीदा और सजग व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं। हमलोग बाबा विश्वनाथ और बाबा काल भैरव को दण्डवत कर अपने काशी प्रवास को छोड़ भारतीय रेल के यथार्थ से रुबरु होते अगले दिन अपराह्न पांच बजे भिलाई पहुंचे। वहां अल्पाहार और अल्प विश्राम के उपरांत एक और यायावर को साथ लेकर रायल सवारी बुलेट से हमलोग जंगल सफारी हेतु सायं आठ बजे निकले। दिसम्बर का महीना काशी में भीषण ठंड परन्तु उस क्षेत्र में बसंती बयार सी गुदगुदी ,रात का समय, सड़कों पर आते-जाते बड़े वाहन,मन में जिज्ञासा और कौतूहल चरम पर था। जिला दुर्ग से होते हुए हमलोग *धम तरी* पहुंचे तब तक सड़कें ट्रकों के हवाले हो चुकी थीं। राष्ट्रीय राजमार्ग तीस के किनारे की दुकानें बियाबान हो रही थीं, सुनाई देता बुलेट की इंजिन की दम-दम-दम आवाज और अंधेरे का संगीत, हवा का अल्हड़ राग। सवारी अंधेरे को चीरती *चारामा* पहुंच चुकी थी अब दरकार थी एक अदद चाय के चुस्की की पर कोई चायखाना खुला न था ,हम लोग आगे बढ़ *कांकेर* पहुंचे ।तलब थी चाय की निगाहें मार्ग के दोनों तरफ सिंहावलोकन में व्यस्त थीं तभी कुछ दूरी पर बसों का ठहराव और चहल- पहल दिखाई दी हमने सवारी धीरे करने का संकेत तत्तकालीन चालक को किया वाहन रुका स्थान था *माकरी ढ़ाबा* ,जाग रहा था -अभी लोग छक रहे थे। हम लोगों ने सबसे पहले सबको देख , घड़ी की तरफ मुखातिब हुए , घड़ी के घण्टा वाली सुई अपनी गम्भीरता से भरी उमंग में रात्रि के बारह को छूने को बेताब थी (पौने बारह बजे) ,मानो वह नया होने के लिए अधीर हुए जा रही थी।यह देखने के बाद हम लोगों ने जानना चाहा कि यहां का लजीज व्यंजन क्या है? उत्तर मिला सब लजीज ही है पर यहां के खीर की बात ही कुछ और है! अब हम लोग अपने ठहराव हेतू से बहक गये और कहे.... तब लाओ खीर। हम लोगों ने खीर का स्वाद चखा वाहऽ वाकई लजीज थी ,मन तो किया और लिया जाए पर पेट भर गया था और समय भी मध्य रात्रि। कुछ देर रुकने के बाद विशिष्ट चाय पी कर और चालक बदल फिर हम लोग निकल लिए, वाहन चालन में पारंगत होने के कारण हम लोग बारी-बारी से वाहन चालक बन जा रहे थे।आगे बढ़ने पर जोखिम भरा मार्ग *केशकाल की सर्पिली पहाड़ी* की चढ़ाई वाहन मानो चिंहाड़ते-दहाड़ते परन्तु गजगामिनी चाल से चढ़े जा रहे थे।आगे *केशकाल* गांव था फिर जंगल *नक्सल प्रभावित क्षेत्र* सून-सान रास्ता सन्नाटे को भंग करती सवारी के इन्जिन की लय पर अब हम *कोण्डागांव* पहुंच चुके थे। अरे- हम ये तो बताना भूल ही गए की हम लोगों का अगला पड़ाव जगदल पुर था।
अब उत्सुकता बढ़ी सर्वज्ञ गूगल बाबा से पूछने पर पता चला हम लोग *बस्तर* में हैं। गूगल बाबा से पूछना मजबूरी थी क्योंकि उन पर विश्वास था और कोई मानव बाहर मिलने की सम्भावना न थीं और सम्मेलन में जोखिम भी था। अब हम लोग बिना ठहराव *जगदल पुर* *नगर नार* में *एन०एम०डी०सी०* के *अतिथि गृह* सकुशल पहुंच चुके थे,प्रहरी मुख्य द्वार खोला और हम लोग विश्राम कक्ष पहुंचे जहां मेजबान महोदय ने तत्तक्षण सुविधाओं से अवगत कराया और हम सब विश्राम के अधीन............ शेष भाग की रोमांचक यात्रा ....... *तीरथगढ़* *चित्र कूट धाम* *गुप्तेश्वर महादेव* *माचकोट* *देवड़ा*

Comments

  1. भारत को सांस्कृतिक विवधताओ का देश कहा जाता है यहां हर एक स्थान की अपनी एक सांस्कृतिक विशेषता है । जहां पूरब में पूर्वोत्तर के राज्य अपनी सांस्कृतिक विवधताओ के लिए जाने जाते हैं तो उतर के राज्यों में छत्तीसगढ़ और झारखंड । आर्थिक रूप से भले ही इन्हें बिमारु राज्यों की स्रेणी में रखा गया है लेकिन संस्कृतियों में आज भी इनहै अमीर की स्रेणी में गिना जाता है।जहां पश्चिमी संस्कृति तेजी से अपना पांव फ़ैला रही है वहीं आज भी ये राज्य अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाये हुए हैं।जो वास्तविक भारत की जीतीजागती मिसाल है।तो आपने यात्रा के दौरान वास्तविक भारत को देखा है।

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    1. जी आप ने सही समझा देखा

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