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स्कूलों का मर्जर वंचितों से शिक्षा की आखिरी उम्मीद छिनने की कवायद

   स्कूल"  स्कूलों  का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा  "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...

दीपावली पर क्या कब कैसे खरीदें और क्या न खरीदें

दिपावली की खरीददारी भारतीय संस्कृति में दीपावली, दिवाली अथवा दीपोत्सव जो भी नाम लिया जाए एक साफ और चमक - दमक, नयेपन की छवि आखों सामने नाच जाती है |    हमारे त्यौहार ही जनमानस के लिए म्युनिसिपेलिटी और कड़क अनुशासक का काम करते हैं |दिपावली के आगाज मात्र से ही घर के कोने - कोने की सफाई शुरू कर दी जाती है |  कच्चे घरों की लिपाई- पुताई, पक्के घरों का रंग -रोगन, टूट- फूट की मरम्मत | इस दौर में कबाड़ी वालों का भी बोझ बढ़ जाता है |  दिवाली प्यारी आती है,  दिवाली न्यारी आती है,  घरों को पुतवाने को,  पुराना नया बनाने को,  दिवाली प्यारी आती है, दिवाली न्यारी आती है || अब बात आती है उस कबाड़ की जगह नये आवश्यक सामान की उसके लिए बड़ा सोच - समझ कर खरीददारी करनी चाहिए | लोग अपनी मेहनत की कमाई का हिस्सा  सही जगह निवेश करना चहते है ं |उसके लिए कुछ मान्यताएं तथा मिथक है ं | आध्यात्मिक मान्यताएं -   ऐसा माना जाता है कि दिपावली के एक दिन पूर्व धनतेरस को खरीददारी करना शुभ है  | कहा जाता है कि धनतेरस को खरीददारी करने से स्थिर लक्ष्मी का आगमन होत...

प्रबोधनी एकादशी या देव उठायनी एकादशी

प्रबोधनी एकादशी या देव उठायनी  एकादशी              कार्तिक शुक्ल एकादशी को पद्मपुराण में देवप्रबोधिनी एकादशी कहा गया है। इस एकादशी को देवउठनी और देवउठानी और हरिप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के सभी नाम का अर्थ एक ही है भगवान का नींद से जगना। भगवान विष्णु इस दिन चार महीने के शयन के बाद योगनिद्रा से जगते हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का देवी तुलसी के साथ विवाह हुआ था। इसलिए इस एकादशी का साल के सभी 24 एकादशी में विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है अथवा शास्त्रों में उल्लेख है कि एकादशी के व्रत से मिलती है पाप कर्मों से छूट इस दिन देवी-देवता भी एकादशी का व्रत रखते हैं। पद्मपुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत से मनुष्य पाप कर्मों से छूट जाता है और मुक्ति पा जाता है। लेकिन इस साल देवप्रबोधिनी एकादशी की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति है क्योंकि 25 और 26 नवंबर दोनों ही दिन एकादशी तिथि है। आइए जानें किस दिन एकादशी व्रत करना होगा आपके लिए सही। इस वर्ष  देवशयनी एकादशी पर उलझन की स्थिति की वजह यह ...