मेरा गाँव पूरा गांव अपना था , आम ,महुआ , पीपल , नीम का छांव अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे गांव के लोग अपने थे , कुआं , गड़ही ,पोखर , दूर तक फैला ताल अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे खेत - खलिहान अपने थे , ओल्हापाती , चिक्का गोली ,गिल्ली डण्डा , खेल सामान अपने थे , बस तुम अजनबी थे | अब तुम अपने हो , सब अजनबी हैं | तुम (नौकरी ) अजनबी हो जाओ ||
ईश्वर पईठस दलीद्दर निकलस दीपावली की बिहाने . भोरे -भोरे दरिद्दर खेदल जाला सभे कजरवटा से डाली - दउरी पर एगो ताल की साथ ठोक -ठोक के कहल जाला , ईश्वर पइठस दलीद्दर निकलस .. पहिले पूरा टोला क मेहरारू आ मरद एक साथ निकल के आ दलिद्दर के एक जगह चौराहा पर फूंक -ताप के काजर पार के आ गीत गावत लौटस जा .. अब उ समय कहाँ बा अब त न डाली दौरी बा आ ना उ सनमत बा , अब लोग साड़ी के डिब्बा प छड़ बे बजावत जात बा आ जहां मन क ईलस होही जा फूंक ताप के चल आइल ... इ समाज कहाँ जात बा ❓