डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
दिपावली की खरीददारी भारतीय संस्कृति में दीपावली, दिवाली अथवा दीपोत्सव जो भी नाम लिया जाए एक साफ और चमक - दमक, नयेपन की छवि आखों सामने नाच जाती है | हमारे त्यौहार ही जनमानस के लिए म्युनिसिपेलिटी और कड़क अनुशासक का काम करते हैं |दिपावली के आगाज मात्र से ही घर के कोने - कोने की सफाई शुरू कर दी जाती है | कच्चे घरों की लिपाई- पुताई, पक्के घरों का रंग -रोगन, टूट- फूट की मरम्मत | इस दौर में कबाड़ी वालों का भी बोझ बढ़ जाता है | दिवाली प्यारी आती है, दिवाली न्यारी आती है, घरों को पुतवाने को, पुराना नया बनाने को, दिवाली प्यारी आती है, दिवाली न्यारी आती है || अब बात आती है उस कबाड़ की जगह नये आवश्यक सामान की उसके लिए बड़ा सोच - समझ कर खरीददारी करनी चाहिए | लोग अपनी मेहनत की कमाई का हिस्सा सही जगह निवेश करना चहते है ं |उसके लिए कुछ मान्यताएं तथा मिथक है ं | आध्यात्मिक मान्यताएं - ऐसा माना जाता है कि दिपावली के एक दिन पूर्व धनतेरस को खरीददारी करना शुभ है | कहा जाता है कि धनतेरस को खरीददारी करने से स्थिर लक्ष्मी का आगमन होत...