मेरा गाँव पूरा गांव अपना था , आम ,महुआ , पीपल , नीम का छांव अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे गांव के लोग अपने थे , कुआं , गड़ही ,पोखर , दूर तक फैला ताल अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे खेत - खलिहान अपने थे , ओल्हापाती , चिक्का गोली ,गिल्ली डण्डा , खेल सामान अपने थे , बस तुम अजनबी थे | अब तुम अपने हो , सब अजनबी हैं | तुम (नौकरी ) अजनबी हो जाओ ||
दिये और सियासी बधाई जल गये सब दिए भर गयी रोशनी , अंधेरा बेचारा स्वयं राह भूला , झालरें सज रही हैं , विदेशी धरा की , क्यों लाते हो घर में बेबसी का ये झूला , अगर दीप रखते कुम्हारी कला के , धरा स्वर्ग छूती ये मिट्टी जनम की , वो कोना भी सजता स्वदेशी धरा का, दिखती वो खुशिया दिवारी , मिठाई , जरा तुम भी देखो व समझो निकट से , किसकी ये गलती है किसकी ढिठाई , आंखे तो जिनकी दिखती नहीं हैं, भारत को उसने भी आंखें दिखाई , तज दो वो झालर , विदेशी सजाई , मुबारक उन्हें हो सियासी सगाई , सियासी पटाखे , सियासी खुशी , सियासी मिठाई , सियासी बधाई, रखो घर की देहर पर देशी दिये ये , जिसमें स्वदेशी महक हो समाई , भरो प्रेम घी से ये दीपक लबालब , बाती रखो स्नेह लिपटी दिया बीच , अंधेरे की हिय से अब कर दो विदाई , मुबारक हो सबको आगमन राम का , दिवाली की सबको भर -भर के बधाई || सर्वाधिकार सुरक्षित विरंजय (२०/१०/२०२५) भिलाई , छ०ग०