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Showing posts with the label आंचलिक कविता

डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

सब को ईद मुबारक़

 तुम्हे ईद मुबारक़          खाक -ए वतन की यह अनूठी रीत कामयाब रहेगी , अमन - चैन , मुहब्बत की मिशाल नायाब रहेगी , काशी का नज़ारा , जम जम का वो पानी , आबाद थी , आबाद है,  आबाद कहानी , रहमत के तलबगा़र को उम्मीद मुबारक़ , मुझे चांद की दीद , तुम्हें  ईद मुबारक़ ||               सर्वाधिकार सुरक्षित                 विरंजय सिंह                 31मार्च 2025

पुरुष हूँ मैं

         पुरुष हूँ मैं  कैसे कहूं की हो कर भी नहीं होता हूं मैं, उसे तसल्ली भी देता हूँ,   वहाँ नहीं होकर भी वहीं होता हूं मैं,     आ खों मे दरिया दफ्न है मेरे भी , फफक कर भी नहीं रोता हूं मैं |  वो चैन की नींद सोते रहें ,इसी शौक से , मुझे पता है सो कर भी नहीं सोता हूँ मैं,  दिन भर , रात भर, जीवन भर चलता हूं , पर कैसे कहूं की थक गया हूँ मैं,  न जाने कितनों का हौसला हूँ मैं ||          सर्वाधिकार सुरक्षित                      विरंजय  २१ मार्च २०२५  मीरजापुर

बीएचयू का चिकित्सक आमरण अनशन पर

  B BHU के विश्वख्यात चिकित्सक प्रोफेसर   Dr Omshankar आमरण अनशन पर -   डा०ओमशंकर हृदय रोग व विभाग अध्यक्ष (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ) ज ब वाराणसी ,काशी या बनारस की बात आती है तो बाबा विश्वनाथ , मां गंगा का पतित पावन तट और  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) एक साथ  हृदय में  अंकित हो जाते हैं  | वैसे तो वाराणसी, बनारस और  काशी पर्याय जैसे प्रयुक्त होते थे परन्तु कुछ समय पूर्व से अगर आप को बनारस जाना है तो पूर्व के मंडुआडीह जाना होगा ,काशी भी एक रेलस्थानक (Railway station ) है | परन्तु आज हम बात करेंगे  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की जहां हृदय रोग विभागाध्यक्ष डा० ओमशंकर आमजन के हित के लिए खुद का जीवन दाव पर लगाकर 11 मई 2024 से  आमरण अनशन पर हैं |  हालाकि वह अभी भी अपने मरीजों को अनशन स्थल से ही देख रहे हैं |अब  ओपीडी का संचालन कमरा न०19 से कर रहे हैं  | चिकित्सक प्रोफेसर डा० ओमशंकर के आरोप- डा०ओमशंकर हृदय रोग विभागाध्यक्ष हैं और  ख्यातिलब्ध चिकित्सक इनको राष्ट्रीय ,अन्तर्राष्ट्रीय  स्तर के सेवा  सम्म...

ईद मुबारक़

        ईद मुबारक़   प्रकृति का ये नया कलेवर ,  नवसंवत्सर में  सूरज- चंदा दीद  मुबारक़ , गंगा का ये पावन पानी , जिसपर तरते स्वर रसखानी, बिस्मिल्लाही  धुन पर, बचपन को वो नींद मुबारक़   | रहे मुबारक भारत माटी ,   सबको -सबकी ईद मुबारक़ ||  

गांव छोड़ के आइल बानी

गांव छोड़ के आइल बानी   बरिस दिन के दिन  रहे ई ,  सगरो से अच्छा सीन रहे ई , नोकरी, रोटी, स्वारथ में एतना हम अंझुराइल बानी , सोन चिरइया गांव आपन हम अहकत छोड़ के आइल बानी  | छान्ही की एक ओरियानी चोंचा घर बनावत ई, एक ओरियानी घात लगा के कबूतर खर जुटावत ई , बीच बड़ेरा ठोरे -ठोरे फुर्गुदी क खोंता तर सझुराइल बानी , सोन चिरइया गांव आपन हम अहकत छोड़ के आइल बानी  | फगुआ में फाग बिसर गईल ,  चैति में उ चैता  , कजरी के उ राग रहे का , सब कुछ हम भुलाइल बानी  , सोन चिरइया गांव आपन हम अहकत छोड़ के आइल बानी | मसूरी रहे कटत अभी त , गेंहूं बस गदराइल बा , उम्ही ,गदरा , होरहा ,कचरस पाके बस अगराइल बानी,  सोन चिरइया गांव आपन हम अहकत छोड़ के  आइल बानी  | सगरो सिवान हरियरे बाटे , आम मउर अब लागत बाटे,  सूखल देख के हरदी के गावा , हमहूं अब झुराईल बानी, सोन चिरइया गांव आपन हम अहकत छोड़ के आइल बानी  | गांव से होरहा (भूना चना) गांव के गेंहूं के खेत बुतरु और गोलू ,निखिल कैंची साइकिल चलाते  Holi song गांव के होली गीत  फगुआ 

ज्योति बिछाते लोग

      ज्योति बिछाते लोग  ज्योति के पुंज की राह में  ,ज्योति बिछाते लोग , राह दिखाया जिसने जग को ,राह दिखाते लोग , राज तजा निज मान के खातिर, राज दिलाते लोग , लाया जिसने सबको जग में ,राम को लाते लोग,  कबिरा तू रहने दे अपनी ,सच दिखलाते लोग , कण-कण और रोम-रोम में रमता है ,राम न जाने लोग ||

आज मैं घर में हूँ

       गांव की माटी आज मेरे गांव की माटी को लगा , मैं शहर में  हूँ  , उसे कैसे बताऊं , मैं सफर में  हूँ  , दिन तो कट जाता है,  रोटी के जुगाड़ में,  रात हंसती है , मैं बसर में हूं,  जब से छूटी है नीम की छांव,  आज यहां - कल वहां , किस कदर में हूं,  छत तो नसीब है यहां भी , पर अरसे से पता नहीं,  किसके घर में हूँ,  स्थिर हो न सका आज तक, जैसे लगता है,  अब भी मैं डगर में हूँ,  रहगुजर तो मिले राह में,  पर  आज भी रहजनी के डर में हूं,  अमराई ने हंसते हुए दिलासा दिया. लगाए गए हर शाख -शजर में हूँ,  मां के कलेजे  पिता की नजर में हूं , कुनबे के ढूंढते हर शख्श के नजर पे हूँ,  महकती हर हवा की लहर में हूं, चहकती चिड़िया और ताल - तलैया ने जब पुकारा मुझे , अब लगा मैं  घर में हूँ  || ✍️viranjay

महुआ के फूल

  महुआ के फूल     || महुआ के फूल|| मन विकल हो उठा,  भोर- भोर ,प्रात - प्रात | गंध ये मधुप की है,  भर रही है सांस - सांस | पेड़ नग्न दिख रहा,  गिर गये हैं पात - पात | कोंच ऐसे दिख रहे हैं,  शाख पर हो कांट - कांट,  श्वेत पुष्प सो रहा है,  चुभ रहे हैं, मधुप कांट | गिर रहा है, टीपक - छिटक,  धरा हुई श्वेत - श्याम | महुआ का पुष्प कहूँ,  या फल तूझे दूं क्या नाम ||                सर्वाधिकार सुरक्षित                विरंजय सिंह

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy