डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
पुरुष हूँ मैं
कैसे कहूं की हो कर भी नहीं होता हूं मैं,
उसे तसल्ली भी देता हूँ,
वहाँ नहीं होकर भी वहीं होता हूं मैं,
आखों मे दरिया दफ्न है मेरे भी ,
फफक कर भी नहीं रोता हूं मैं |
वो चैन की नींद सोते रहें ,इसी शौक से ,
मुझे पता है सो कर भी नहीं सोता हूँ मैं,
दिन भर , रात भर, जीवन भर चलता हूं ,
पर कैसे कहूं की थक गया हूँ मैं,
न जाने कितनों का हौसला हूँ मैं ||
सर्वाधिकार सुरक्षित विरंजय
२१ मार्च २०२५
मीरजापुर
Behatrin Kavita
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