मेरा गाँव पूरा गांव अपना था , आम ,महुआ , पीपल , नीम का छांव अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे गांव के लोग अपने थे , कुआं , गड़ही ,पोखर , दूर तक फैला ताल अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे खेत - खलिहान अपने थे , ओल्हापाती , चिक्का गोली ,गिल्ली डण्डा , खेल सामान अपने थे , बस तुम अजनबी थे | अब तुम अपने हो , सब अजनबी हैं | तुम (नौकरी ) अजनबी हो जाओ ||
पुरुष हूँ मैं
कैसे कहूं की हो कर भी नहीं होता हूं मैं,
उसे तसल्ली भी देता हूँ,
वहाँ नहीं होकर भी वहीं होता हूं मैं,
आखों मे दरिया दफ्न है मेरे भी ,
फफक कर भी नहीं रोता हूं मैं |
वो चैन की नींद सोते रहें ,इसी शौक से ,
मुझे पता है सो कर भी नहीं सोता हूँ मैं,
दिन भर , रात भर, जीवन भर चलता हूं ,
पर कैसे कहूं की थक गया हूँ मैं,
न जाने कितनों का हौसला हूँ मैं ||
सर्वाधिकार सुरक्षित विरंजय
२१ मार्च २०२५
मीरजापुर

Behatrin Kavita
ReplyDelete