डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
महुआ के फूल
|| महुआ के फूल||
मन विकल हो उठा,
भोर- भोर ,प्रात - प्रात |
गंध ये मधुप की है,
भर रही है सांस - सांस |
पेड़ नग्न दिख रहा,
गिर गये हैं पात - पात |
कोंच ऐसे दिख रहे हैं,
शाख पर हो कांट - कांट,
श्वेत पुष्प सो रहा है,
चुभ रहे हैं, मधुप कांट |
गिर रहा है, टीपक - छिटक,
धरा हुई श्वेत - श्याम |
महुआ का पुष्प कहूँ,
या फल तूझे दूं क्या नाम ||
सर्वाधिकार सुरक्षित
विरंजय सिंह
महुआ की खुशबू,लाटा,पुआ, हलवा, औषधीय,मदिरा और बहुत कुछ
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