मेरा गाँव पूरा गांव अपना था , आम ,महुआ , पीपल , नीम का छांव अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे गांव के लोग अपने थे , कुआं , गड़ही ,पोखर , दूर तक फैला ताल अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे खेत - खलिहान अपने थे , ओल्हापाती , चिक्का गोली ,गिल्ली डण्डा , खेल सामान अपने थे , बस तुम अजनबी थे | अब तुम अपने हो , सब अजनबी हैं | तुम (नौकरी ) अजनबी हो जाओ ||
गांव की माटी
आज मेरे गांव की माटी को लगा ,
मैं शहर में हूँ ,
उसे कैसे बताऊं ,
मैं सफर में हूँ ,
दिन तो कट जाता है,
रोटी के जुगाड़ में,
रात हंसती है ,
मैं बसर में हूं,
जब से छूटी है नीम की छांव,
आज यहां - कल वहां ,
किस कदर में हूं,
छत तो नसीब है यहां भी ,
पर अरसे से पता नहीं,
किसके घर में हूँ,
स्थिर हो न सका आज तक,
जैसे लगता है,
अब भी मैं डगर में हूँ,
रहगुजर तो मिले राह में,
पर आज भी रहजनी के डर में हूं,
अमराई ने हंसते हुए दिलासा दिया.
लगाए गए हर शाख -शजर में हूँ,
मां के कलेजे पिता की नजर में हूं ,
कुनबे के ढूंढते हर शख्श के नजर पे हूँ,
महकती हर हवा की लहर में हूं,
चहकती चिड़िया और ताल - तलैया ने जब पुकारा मुझे ,
अब लगा मैं घर में हूँ ||
✍️viranjay

गांव और गांव फिर गांव
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