डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
प्रबोधनी एकादशी या देव उठायनी एकादशी
कार्तिक शुक्ल एकादशी को पद्मपुराण में देवप्रबोधिनी एकादशी कहा गया है। इस एकादशी को देवउठनी और देवउठानी और हरिप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के सभी नाम का अर्थ एक ही है भगवान का नींद से जगना। भगवान विष्णु इस दिन चार महीने के शयन के बाद योगनिद्रा से जगते हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का देवी तुलसी के साथ विवाह हुआ था। इसलिए इस एकादशी का साल के सभी 24 एकादशी में विशेष महत्व है।
ऐसा कहा जाता है अथवा शास्त्रों में उल्लेख है कि
एकादशी के व्रत से मिलती है पाप कर्मों से छूट
इस दिन देवी-देवता भी एकादशी का व्रत रखते हैं। पद्मपुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत से मनुष्य पाप कर्मों से छूट जाता है और मुक्ति पा जाता है। लेकिन इस साल देवप्रबोधिनी एकादशी की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति है क्योंकि 25 और 26 नवंबर दोनों ही दिन एकादशी तिथि है। आइए जानें किस दिन एकादशी व्रत करना होगा आपके लिए सही।
इस वर्ष
देवशयनी एकादशी पर उलझन की स्थिति की वजह यह है कि इस वर्ष 24 नवंबर को रात 2 बजकर 43 मिनट से एकादशी तिथि लग रही है जो 25 तारीख को दिन रात रहेगी और 26 तारीख को सुबह 5 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। इसके बाद 5 बजकर 12 मिनट से द्वादशी तिथि लगेगी जो 27 तारीख को 7 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। इससे द्वादशी तिथि की वृद्धि हो गई है|
किन हालातों में तुलसी का विवाह हुआ शालीग्राम से, जाने यह रोचक प्रकरण..
जानें एकादशी की सही तिथि
शास्त्रों में बताया गया है कि वैष्णव लोग यानी जिन्होंने किसी गुरु से वैष्णव मंत्र लिया है या साधु संत हैं वह द्वादशी युक्त एकादशी में व्रत करें। जबकि अन्य लोगों को जिस दिन सुबह एकादशी तिथि लग रही हो उस दिन व्रत करना चाहिए और द्वादशी तिथि के आरंभ में भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस नियम के अनुसार 25 नवंबर को गृहस्थ लोगों को व्रत करना चाहिए और 26 नवंबर को साधु संतों और वैष्णव लोगों को देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत करना चाहिए।
गन्ना पूजन का विशेष महत्व..
इस एकादशी को ईख की पूजा का विशेष महात्म्य है, किसान इसी दिन से गन्ना की कटाई, पेराइ शुरू करता है, इस दिन से गृहस्थ लोग गन्ना का नेवान अर्थात गन्ना को चूसने से लेकर गुड़ बनाने की प्रक्रिया का शुभारंभ कर देते हैं!
तुलसी और शालीग्राम के विवाह हेतु मण्डप ईख से ही बनता है, तुलसी चौरा सजाया जाता है और पूजन का विधि -विधान शुरू होता है....
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