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स्कूलों का मर्जर वंचितों से शिक्षा की आखिरी उम्मीद छिनने की कवायद

   स्कूल"  स्कूलों  का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा  "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग २

*काशी से स्वर्ग द्वार- बनवासी तक*(भाग-२)

अगले दिन सूर्योदय कब हुआ इससे अनभिज्ञ रहे,लगभग आठ बजे हम लोगों को निंद्रा ने मुक्त किया। अब हम लोग उत्साह और ऊर्जा से लबालब थे।मैंने बालकनी से झांक कर देखा सूरज प्रकृति को परिभाषित करने में तथा करने में जुटा था। मैं यह नयनाभिराम दृश्य कुछ देर तक निहारता रहा तभी मेजबान महोदय की आवाज - अरे कहां हैं आप लोग ! इतना सुनते ही मैं अन्दर मुखातिब होते हुए, हां-हां यहीं ,सदेह हैं सभी लोग । एकबार सभी लोग हंस पड़े। उन्होंने ने कहा दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर काफी/चाय कर लीजिएगा , बोल दिया हूं ,मेस वाला लाकर पहुंचा जाएगा और कहां जाने का विचार है आज! हम लोगों को वहां के नामचीन पर्यटन स्थानों की सूची सुपुर्द करते हुए उन्होंने कहा। हमारे सहयात्रियों ने उन नामों में से एक गम्भीर नाम तीरथगढ़ का चुना । अब हम लोग चाय नाश्ता से तृप्त होकर चार की संख्या में दो सवारियों एक पहले की बाइक तथा एक यामाहा एफ जेड से निकल पड़े अपनी प्रवृति प्रेरित जिज्ञासाओं का शमन करने।सुहानी हवा , चिकनी सड़कें ,विरल आबादी से परिचय करते अब हम लोगों का कारवां *बस्तर* के जिला मुख्यालय *जगदलपुर* शहर से होते हुए अविराम लगभग चालीस किलोमीटर *केशलूर* पहुंच चुका था। केशलूर से हम लोगों का गन्तव्य स्थान *तीरथगढ़* लगभग बीस किलोमीटर पर अवस्थित था। अब हम लोगों की अकुलाहट और बढती जा रही थी, आबादी लगभग शून्य हो चली थी एकाध झोपड़ियां और आवास दिखाई पड़ जाते थे, केवल ऊंचे-ऊंचे जंगली वृक्ष दूर तक सन्नाटा एक्का -दूक्का वाहन और हमारे वाहन‌ के इन्जिनों की चीत्कार सन्नाटा को भंग कर रहे थे। हम लोग अब एक बैरियर पर पहुंचे जहां वनविभाग द्वारा बेनामी कर संग्रह किया गया हम लोगों ने बिना किसी पूछ-ताछ अपेक्षित धन जमा कर आगे बढ़े और *कांगेर घाटी* को निरखते हुए क्रमश: जलप्रपात की कल-कल, हर-हर ध्वनि की तीव्रता के तरफ बढ़े जा रहे थे की ध्यान अचानक किनारे के तरफ पानी के बोतलों में भरे सफेद द्रव की बिक्री कर रही महिलाओं के तरफ गया।हम अपनी प्रवृति से विवश होकर वाहन से उतर उनके पास जाकर पूछ बैठे परन्तु भाषा विविधता के कारण कुछ स्पष्ट न हो सका । यद्यपि यह समझ में आया कि यह कुछ पेय पदार्थ है जिसे ये लोग पंद्रह-बीस रुपए प्रति बोतल बेच रही थी।बाद में अन्य लोगों से पूछने पर ज्ञात हुआ कि वह किसी पेड़ से प्राप्त रस था । कुछ दूर आगे बढ़ने पर महिलाएं बैरियर लगाकर रास्ता रोके खड़ी थी जो गांव की चुंगी एकत्र कर रही थी उनका भी भुगतान कर अब हम लोग *तीरथगढ़ जलप्रपात* के निकट अपने वाहन बगैर किसी संरक्षा -औपचारिकता पूरी किए खड़े कर जल्दी से जलप्रपात की तरफ बढ़े। वहां पहुंचकर👀 आंखों ने अप्रतीम नजारा देखा लगभग तीन सौ फीट ऊपर से पानी तड़-तड़ ,फड़-फड़ पत्थरों का चुम्बन कर छिटकता और पुनः चूमता पर पत्थरों के नियंत्रण से परे , स्व-नियंत्रण शून्य, दूध सा श्वेत , चांदनी सा धवल मानो स्वर्ग से मां गंगा का अवतरण हो रहा हो और हम सब बिन तपस्या के भगीरथ बने हर्षाए देख कर मुदित हुए जा रहे हों। हम लोगों ने स्मृति स्वरुप कुछ तस्वीरें तथा खुदखेंचु कैद किए और वस्त्र तथा बैग एक जगह अपने एक सहयात्री के संरक्षण में रख कर हम तीनों स्वयं को जल अवतरण से रोक न सके लगभग एक घण्टे तक ऊपर के गिरते जल से मुकाबला तथा जल का धक्का देकर दूर करना और पुनः हम लोगों का हठ पूर्वक पहुंचना चलता रहा समय कैसे बीता कुछ पता ही नहीं चला ।उसमें अन्य पर्यटक भी जलक्रिड़ा का लुत्फ उठा रहे थे। सब सुरक्षित था ध्यान रखना था पैर न फिसले नहीं तो असंरचित पत्थरों से भीषड़ आघात की आशंका थी।
अब हम लोग बाहर निकले समय देखने पर लगा कि अब देर हो गई है जल्दी वापस चलना चाहिए। इसी आपाधापी में तीरथगढ़ की *कुटुमसर* गुफा न पहुंचने का मलाल अब भी है। लौटते समय जगदलपुर में एक ढाबे पर जलपान ग्रहण किया गया जिसका अनुभव सही नहीं रहा। फिर जगदलपुर उड़ान रहित एयरपोर्ट से होते हुए एन एम डी सी के निर्माणाधीन लौह इस्पात संयंत्र नगरनार पहुंचे जहां काफी हाउस में काफी का जायका लेते हुए अपने विश्राम गृह पहुंच गए। आगे की यात्रा...... *स्वर्ग द्वार बनवासी* *शेष* .........

Comments

  1. यात्रा वृत्तांत मनोरम

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  2. यदि यात्रा रोचक हो तो कमेंट अवश्य करें..

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  3. Replies
    1. जी हां बहुत बढ़िया

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  4. यात्रा में रोचकता अन्त तक बनी है तथा एडवेंचर भी है

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  5. ये स्वर्ग द्वार क्या है

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  6. हम लोगों को भी ले चलिए

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  7. अद्भुत लेखन शैली।

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