Skip to main content

स्कूलों का मर्जर वंचितों से शिक्षा की आखिरी उम्मीद छिनने की कवायद

   स्कूल"  स्कूलों  का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा  "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...

मेरे प्रयोग डमरू से सामना



                    
 
 #मेरे प्रयोग "डमरू" से सामना--
 
मैंने  उस बालक को पास बुलाकर उससे कुछ जानना चाहा तो अजीब सी हंसी के साथ ही_ही करके भाग गया ,बच्चों ने उसका परिचय कराया कि ये" डमरू" है सर! 
मैंने सोचा बालक है, और बच्चों का स्वभाव उर्जावान तो होना ही चाहिए, परन्तु  उसका व्यवहार सब बच्चों से अलग था  वह कांपी- किताब नहीं रखता, पर एक बहुत ही दुर्दशा को प्राप्त बैग रखता था, उसके झोला में गलती से अगर  कापी - किताब कुछ मिल जाती तो  वह दूसरे की होती, कक्षा कक्ष में अगर कोई रोने चिल्लाने की आवाज आती तो 75% मामलों पता चलता कि डमरू मार दिया, धक्का दे दिया,छिन लिया, फिर किसी के पहुंचने और निस्तारण करने पर मामला शान्त होता,कुछ दिन देखने के उपरांत मैंने उसमें रुचि लेना शुरू कर दिया मैं धीरे- धीरे उसके करीब जाना चाहता था, फिर मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम "रितेश " बताया  मैं  देखा की सभी लोग उसे डमरू ही बुलाते हैं, परन्तु अब मैं उसे रितेश बुलाने लगा, मैंने जब उसका गम्भीरता से अध्ययन किया तो पता चला कि " रितेश" को गिनती, 5 तक पहाड़ा, क से ज्ञ तक अक्षर ज्ञान, ए से जेड तक अल्फाबेट और कुछ प्रचलित कविताएँ उसे कण्ठस्थ थीं परन्तु वह लिखना कुछ नहीं जानता था !  कापी -कलम रखता ही नहीं था!अरे मैं तो सारी बात बता गया परन्तु यह बताना भूल ही गया था कि "रितेश" कक्षा दो का विद्यार्थी था! 
अब मैंने रितेश के बारे में प्रधानाध्यापिका महोदया से जानना चाहा तो मैडम ने कहा  "डमरू " ? मैंने कहा हां डमरू, तो उन्होंने कहा कि अरे वह बहुत शरारती है  मैं उसको बहुत बार कांपी - कलम खरीद कर देती हूँ सब फेंक देता है, कलम चबा जाता है, तब तक बगल में बैठी सहायक अध्यापिका बोल उठीं की अरे वह तो हमलोग कक्षा कक्ष  अथवा कार्यालय में रहते हैं तब भी दरवाजा बाहर से  बन्द करके भाग जाता है, अब मैं अपनी स्मृति को परखा औरअपने प्रशिक्षण की कसौटी पर डमरू को रखा तो यह समझते देर न लगी की डमरू एक समस्यात्मक बालक की कसौटी पर खरा उतर रहा था जैसा कि गुरु जी ने सीखाया था, अब मैंने मन ही मन डमरू को समस्यात्मक बालक मानकर अपना प्रयोग प्रारंभ किया!  पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें-
       To be continue........................ 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

इसे साहस कहूँ या बद्तमीजी

इसे साहस कहूँ या     उस समय हम लोग विज्ञान स्नातक (B.sc.) के प्रथम वर्ष में थे, बड़ा उत्साह था ! लगता था कि हम भी अब बड़े हो गए हैं ! हमारा महाविद्यालय जिला मुख्यालय पर था और जिला मुख्यालय हमारे घर से 45 किलोमीटर दूर!  जिन्दगी में दूसरी बार ट्रेन से सफर करने का अवसर मिला था और स्वतंत्र रूप से पहली बार  | पढने में मजा इस बात का था कि हम विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे, तुलना में कला वर्ग के विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माने जाते थे, इस बात का हमें गर्व रहता था! शेष हमारे सभी मित्र कला वर्ग के थे ,हम उन सब में श्रेष्ठ माने जाते थे परन्तु हमारी दिनचर्या और हरकतें उन से जुदा न थीं! ट्रेन में सफर का सपना भी पूरा हो रहा था, इस बात का खुमार तो कई दिनों तक चढ़ा रहा! उसमें सबसे बुरी बात परन्तु उन दिनों गर्व की बात थी बिना टिकट सफर करना   | रोज का काम था सुबह नौ बजे घर से निकलना तीन किलोमीटर दूर अवस्थित रेलवे स्टेशन से 09.25 की ट्रेन पौने दस बजे तक पकड़ना और लगभग 10.45 बजे तक जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन पहुँच जाना पुनः वहाँ से पैदल चार किलोमीटर महाविद्यालय पहुंचना! मतल...

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

अभिनन्दन पत्र

 अभिनन्दन पत्र     किसी अधिकारी कर्मचारी के स्थानान्तरण /सेवानिवृत्ति  पर एक उपलब्थि पत्र के रुप स्मृति चिन्ह के रुप में  एक आख्यान..       प्रयोजन -  एक शिक्षक विरंजय सिंह यादव ने  विकास खण्ड के समस्त शिक्षकों की तरफ से अपने महबूब (प्रिय ) विद्वान खण्ड शिक्षा अधिकारी डा० अरूण कुमार सिंह  के स्थानान्तरण पर यह पत्र लिखा है | अभिनन्दन पत्र की विशेषता -         अपने अनुशासनिक खण्ड शिक्षा अधिकारी के जनपद मीरजापुर विकास खंड-जमालपुर  , से कौशाम्बी जनपद स्थानान्तरण पर लिखे अभिनन्दन पत्र में  ,अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री प्रभाकर सिंह के आग्रह पर अभिनन्दन पत्र की पंक्तियां  प्र भा क र अक्षर से शुरु होती है ं-- सम्पूर्ण पत्र -     श्रीमान्  डा० अरुण कुमार सिंह   *खण्ड शिक्षा अधिकारी, जमालपुर ,मीरजापुर* सेवारम्भ तिथि 7 जून 2021  प्रथम पदस्थापन- सौभाग्यशाली  ब्लॉक संसाधन केंद्र, जमालपुर मीरजापुर | स्थानान्तरण आदेश- 18 फरवरी  2024    प्रगति प्रेमी ,...