डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
#मेरे प्रयोग "डमरू" से सामना--
मैंने उस बालक को पास बुलाकर उससे कुछ जानना चाहा तो अजीब सी हंसी के साथ ही_ही करके भाग गया ,बच्चों ने उसका परिचय कराया कि ये" डमरू" है सर!
मैंने सोचा बालक है, और बच्चों का स्वभाव उर्जावान तो होना ही चाहिए, परन्तु उसका व्यवहार सब बच्चों से अलग था वह कांपी- किताब नहीं रखता, पर एक बहुत ही दुर्दशा को प्राप्त बैग रखता था, उसके झोला में गलती से अगर कापी - किताब कुछ मिल जाती तो वह दूसरे की होती, कक्षा कक्ष में अगर कोई रोने चिल्लाने की आवाज आती तो 75% मामलों पता चलता कि डमरू मार दिया, धक्का दे दिया,छिन लिया, फिर किसी के पहुंचने और निस्तारण करने पर मामला शान्त होता,कुछ दिन देखने के उपरांत मैंने उसमें रुचि लेना शुरू कर दिया मैं धीरे- धीरे उसके करीब जाना चाहता था, फिर मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम "रितेश " बताया मैं देखा की सभी लोग उसे डमरू ही बुलाते हैं, परन्तु अब मैं उसे रितेश बुलाने लगा, मैंने जब उसका गम्भीरता से अध्ययन किया तो पता चला कि " रितेश" को गिनती, 5 तक पहाड़ा, क से ज्ञ तक अक्षर ज्ञान, ए से जेड तक अल्फाबेट और कुछ प्रचलित कविताएँ उसे कण्ठस्थ थीं परन्तु वह लिखना कुछ नहीं जानता था ! कापी -कलम रखता ही नहीं था!अरे मैं तो सारी बात बता गया परन्तु यह बताना भूल ही गया था कि "रितेश" कक्षा दो का विद्यार्थी था!
अब मैंने रितेश के बारे में प्रधानाध्यापिका महोदया से जानना चाहा तो मैडम ने कहा "डमरू " ? मैंने कहा हां डमरू, तो उन्होंने कहा कि अरे वह बहुत शरारती है मैं उसको बहुत बार कांपी - कलम खरीद कर देती हूँ सब फेंक देता है, कलम चबा जाता है, तब तक बगल में बैठी सहायक अध्यापिका बोल उठीं की अरे वह तो हमलोग कक्षा कक्ष अथवा कार्यालय में रहते हैं तब भी दरवाजा बाहर से बन्द करके भाग जाता है, अब मैं अपनी स्मृति को परखा औरअपने प्रशिक्षण की कसौटी पर डमरू को रखा तो यह समझते देर न लगी की डमरू एक समस्यात्मक बालक की कसौटी पर खरा उतर रहा था जैसा कि गुरु जी ने सीखाया था, अब मैंने मन ही मन डमरू को समस्यात्मक बालक मानकर अपना प्रयोग प्रारंभ किया! पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें-
To be continue........................
प्रेरक
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