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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

उसके उन्नयन से प्रस्थान तक


#उसके उन्नयन से प्रस्थान तक #

  
अब रितेश की शिकायतें धक्का - मुक्की तक तथा छीना -  छपटी  तक ही सीमित रह गईं थीं, परन्तु अभी भी पूरे विद्यालय में किसी की पेन, पेंसिल अथवा कापी - किताब भूल जाती तो रितेश के बस्ते के निरीक्षण की अपील जोर पकड़ लेती और यह जानते हुए भी की उसके पास अमुक वस्तु नहीं है उसकी तलाशी लेनी होती और उसके पास वह सामान नहीं मिलता लेकिन पूर्व की आदत से वह बदनाम था  ! 
तबतक संस्था के प्रधानाध्यापक भी आ चुके थे और उनका भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा था! प्रधानाध्यापक महोदय के साथ अब पूरे स्टाफ के लोगों को रितेश में सब बच्चों के समान प्रतिभा दिखने लगी थी! 
अब धीरे - धीरे रितेश अपने कक्षा के स्तर व पाठ्यक्रम की सभी समस्याओं को हल कर लेता और  हिन्दी के साथ अंग्रेजी भी सही से पढ़ लेता, परन्तु कला में अब भी वह रुचि नहीं ले रहा था , लेकिन लिखावट में अपेक्षित सुधार हो गया था! वह खेल में तथा वाह्य  क्रियाओं में चढ -बढ कर हिस्सा लेता परन्तु शारीरिक क्षमता अनुरूप पिछड़ जाता परन्तु हारता नहीं! 
खाना खाते समय उदण्डता अवश्य करता, यह सब करते - धरते रितेश कक्षा पांच में बढ़ गया! अब रितेश को सभी राज्य -राजधानी बीस तक पहाड़ा तथा अपने पाठ्यक्रम व स्तर का सब कुछ उसे याद था  ! 
जो सबको खुश करता था, परन्तु शरारत अभी भी कर बैठता था.... इस तरह अब रितेश सारी खूबियों  के साथ कक्षा पांच उत्तीर्ण हुआ और हमें आत्मिक संतोष.....अब वह अगले स्कूल और हम ..............अगले डमरू के साथ मशगूल.पढने के लिए यहाँ क्लिक करें- मेरे प्रयोग "डमरू" से सामना
                         THE END

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