डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
समाजवादी विचारक जिन्होंने कहा, " क्रांति टुकड़े में नहीं लाई जा सकती " उनके कहने का आशय था कि गलत के विरोध में सबको एक साथ खड़ा होना होगा, अलग -अलग विरोध करने से क्रांति नहीं लायी जा सकती,
वे स्वयं बहुत मितव्ययी थे तथा दूसरों को भी संयमित खर्च की सलाह देते थे!
एक बार की घट्ना है जब डा० राममनोहर लोहिया को सोशलिस्टों ने बलिया में एक सभा को संबोधित करने हेतु बुलाया था!
वह ऐसा दौर था जब डा०लोहिया का पूरे वर्ष का कार्यक्रम नियोजित रहता था आज यहाँ तो कल कहाँ , आवागमन का खर्च तथा भोजन व ठहराव का खर्च वहन संगठन अथवा आयोजक को करना होता था!
डा०लोहिया बलिया समय से पहुँच गए तथा सभा को संबोधित करने के उपरांत उन्होंने अपने अगले कार्यक्रम के लिए पटना प्रस्थान की इच्छा जाहिर की, इस बाबत उन्हें ट्रेन पकड़ने बक्सर जाना था!
डा० लोहिया जी को बक्सर पहुंचाने,अब छोटे लोहिया के नाम से ख्याति प्राप्त जनेश्वर मिश्रा जी, रामचन्द्र यादव जी, प्रो० रामनाथ सिंह जी, उस समय युवा तुर्क चन्द्रशेखर जी के चेले अम्बिका चौधरी जो बाद में समाजवादी सरकार में महत्वपूर्ण महकमों के कैबिनेट मंत्री रहे की जीप से जिसको खुद चौधरी जी चला रहे थे उसमें लोहिया जी को बैठाकर सभी लोग भरौली पहुंचे!
सभी लोग नाव में सवार हो गए और उस पार पहुँच कर, डा० लोहिया को ट्रेन में बैठा दिए उसी समय पं० जनेश्वर मिश्रा जी के इशारे पर प्रो० रामनाथ सिंह जी ने पांच रूपए डा० लोहिया को देते हुए आशीर्वाद मांगा!
तब लोहिया जी ने चौंकते हुए पूछा प्रोफेसर तुम्हारा विवाह हुआ है?
प्रोफेसर साहब ने कहा जी, तब लोहिया जी ने कहा कि इतना पैसा मैं क्या करुंगा , आप अपने बीबी बच्चों पर ये पैसे खर्च करो, मुझे केवल दो रुपए दे दो ,बाकी आप वापस रखो मेरा खर्च ही कितना है ? आप लोगों ने टिकट करा दिया जिससे मैं पटना पहुँच जाऊंगा बीच में एक रुपए में कुछ नाश्ता कर लूंगा और ट्रेन से उतरने पर मेजबान वहाँ मिल जाएंगे और ठहरने तथा वहां से आगे जाने का प्रबंधन वे करेंगे ,हां एक रुपए मैं सुरक्षित रखूंगा हो सकता है पार्टी वहां खर्च न दे पाए तो आगे जाने के काम आएगा ! हाँ अगर आप चाहो तो एक रुपए जनेश्वर को दे दो इसका खर्च बहुत है!
इतना बात सुनकर प्रोफेसर ने लोहिया जी से पैसे रखने का आग्रह किया, तो कड़े शब्दों में उन्होंने कहा कि जो कह रहा हूँ वो सुनो ,तब प्रोफेसर साहब ने तीन रुपए वापस लिए.
ऐसे थे डा० लोहिया उनके समाजवाद का सपना अभी भी अधूरा है....
समाजवाद
ReplyDeleteप्रेरणादायक
ReplyDeleteअद्भुत प्रसंग
Deleteऐसे महापुरुष विरले ही आते हैं
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