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स्कूलों का मर्जर वंचितों से शिक्षा की आखिरी उम्मीद छिनने की कवायद

   स्कूल"  स्कूलों  का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा  "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...

जब लोहिया जी ने पांच में से तीन रुपए लौटाया..

जब लोहिया जी ने पांच  में से तीन रुपए लौटाया.. 
   समाजवादी विचारक जिन्होंने कहा, " क्रांति टुकड़े में नहीं लाई जा सकती " उनके कहने का आशय था कि  गलत के विरोध में सबको एक साथ खड़ा होना होगा, अलग -अलग विरोध करने से क्रांति नहीं लायी जा सकती, 
  वे स्वयं बहुत मितव्ययी थे तथा दूसरों को भी संयमित खर्च की सलाह देते थे! 
एक बार की घट्ना है जब डा० राममनोहर लोहिया को सोशलिस्टों ने बलिया में एक सभा को संबोधित करने हेतु बुलाया था! 
वह ऐसा दौर था जब डा०लोहिया का पूरे वर्ष का कार्यक्रम नियोजित रहता था आज यहाँ तो कल कहाँ , आवागमन का खर्च तथा भोजन व ठहराव का खर्च वहन  संगठन अथवा आयोजक को करना होता था! 
               डा०लोहिया बलिया समय से पहुँच गए तथा सभा को संबोधित करने के उपरांत उन्होंने अपने अगले कार्यक्रम के लिए पटना प्रस्थान की इच्छा जाहिर की, इस बाबत उन्हें ट्रेन पकड़ने बक्सर जाना था! 
डा० लोहिया जी को बक्सर पहुंचाने,अब छोटे लोहिया के नाम से ख्याति प्राप्त जनेश्वर मिश्रा जी, रामचन्द्र यादव जी, प्रो० रामनाथ सिंह जी, उस समय युवा तुर्क चन्द्रशेखर जी के चेले अम्बिका चौधरी जो बाद में समाजवादी सरकार में महत्वपूर्ण महकमों के कैबिनेट मंत्री रहे की जीप से जिसको खुद चौधरी जी चला रहे थे उसमें लोहिया जी को बैठाकर सभी लोग भरौली  पहुंचे! 
उन दिनों गंगा पर पुल नहीं थी सो नाव से नदी   पार करना था! 
सभी लोग नाव में सवार हो गए और उस पार पहुँच कर, डा० लोहिया को ट्रेन में बैठा दिए उसी समय पं० जनेश्वर मिश्रा जी के इशारे पर प्रो० रामनाथ सिंह जी ने पांच रूपए डा० लोहिया को देते हुए आशीर्वाद मांगा! 
तब लोहिया जी ने चौंकते हुए पूछा प्रोफेसर तुम्हारा विवाह हुआ है? 
प्रोफेसर साहब ने कहा जी, तब लोहिया जी ने कहा कि इतना पैसा मैं क्या करुंगा  , आप अपने बीबी बच्चों पर ये पैसे खर्च करो, मुझे केवल दो रुपए  दे दो ,बाकी आप वापस रखो मेरा खर्च ही कितना है ? आप लोगों ने टिकट करा दिया जिससे मैं पटना पहुँच जाऊंगा बीच में एक रुपए में कुछ नाश्ता कर लूंगा और ट्रेन से उतरने पर मेजबान वहाँ मिल जाएंगे और ठहरने तथा वहां से आगे जाने का प्रबंधन वे करेंगे ,हां एक रुपए  मैं सुरक्षित रखूंगा हो सकता है पार्टी वहां खर्च न दे पाए तो आगे जाने के काम आएगा ! हाँ अगर आप चाहो तो एक रुपए जनेश्वर को दे दो इसका खर्च बहुत है! 
 इतना बात सुनकर प्रोफेसर ने  लोहिया जी से पैसे रखने का आग्रह किया, तो कड़े शब्दों में उन्होंने कहा कि जो कह रहा हूँ वो सुनो ,तब प्रोफेसर साहब ने तीन रुपए वापस लिए.
ऐसे थे डा० लोहिया उनके समाजवाद का सपना अभी भी अधूरा है.... 
  

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