दिये और सियासी बधाई
जल गये सब दिए भर गयी रोशनी ,
अंधेरा बेचारा स्वयं राह भूला ,
झालरें सज रही हैं , विदेशी धरा की ,
क्यों लाते हो घर में बेबसी का ये झूला ,
अगर दीप रखते कुम्हारी कला के ,
धरा स्वर्ग छूती ये मिट्टी जनम की ,
वो कोना भी सजता स्वदेशी धरा का,
दिखती वो खुशिया दिवारी , मिठाई ,
जरा तुम भी देखो व समझो निकट से ,
किसकी ये गलती है किसकी ढिठाई ,
आंखे तो जिनकी दिखती नहीं हैं,
भारत को उसने भी आंखें दिखाई ,
तज दो वो झालर , विदेशी सजाई ,
मुबारक उन्हें हो सियासी सगाई ,
सियासी पटाखे , सियासी खुशी ,
सियासी मिठाई , सियासी बधाई,
रखो घर की देहर पर देशी दिये ये ,
जिसमें स्वदेशी महक हो समाई ,
भरो प्रेम घी से ये दीपक लबालब ,
बाती रखो स्नेह लिपटी दिया बीच ,
अंधेरे की हिय से अब कर दो विदाई ,
मुबारक हो सबको आगमन राम का ,
दिवाली की सबको भर -भर के बधाई ||
सर्वाधिकार सुरक्षित
विरंजय (२०/१०/२०२५)
भिलाई , छ०ग०


दीपावली पर चीन से आई झालरों का विरोध होना चाहिए
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