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डा० भीमराव अंबेडकर और वर्तमान

 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज  बाबा साहब  समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...

हिन्दी दिवस पर उत्कृष्ट भाषण

 हिन्दी दिवस पर भाषण  आज हिन्दी दिवस है और  इस अवसर पर इस सभा में उपस्थित गुरुजनों को प्रणाम तथा सभी भाई -बहनों को यथोचित अभिवादन समर्पित करती हूं  |        हिन्दी दिवस पर मुझसे पूर्व  सभी वक्ताओं द्वारा कही गयी बातों से सहमति जताते हुए मैं  भाषण नहीं दूंगी बस अपनी बात कहूंगी |  मैं  यह समूचे राष्ट्र से यह पूछना चाहती हूं कि स्वतंत्रता के 78 वर्ष बीत जाने के बाद भी हमारी मातृ भाषा हिन्दी को वो सम्मान क्यों न हासिल हो सका जो अन्य भाषाओं को प्राप्त है | क्या यह भाषण और वाद विवाद प्रतियोगिता महज एक आयोजन हैं ?  मैं  पापा के मोबाइल में एक वीडियो देख रही थी जिसमें मेरे जैसे एक बेटी अंग्रेजी  में  अन्य भाषाओं की अपेक्षा कम अंक प्राप्त कर पायी थी  | घर पहुंचने पर मां द्वारा पूछे जाने पर , कि बिटिया क्या हुआ  ,इतना उदास क्यों हो , आज तो परीक्षा का परिणाम आया है- आप को खुश होना चाहिए,  कहते हुए मां - बिटिया के हाथ से अंक पत्र ले कर देखने लगी और  पूछ बैठी बिटिया ये क्या  ? अंग्रेजी में इतने कम...

ईश्वर पैठा दलीद्दर निकला

 लोक परम्पराओं का निर्वहन व विसंगति  क्या हुआ होगा पहली दिवाली पर जब त्रैलोक्य विजेता मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पूरे जगत का दिल जीत कर अपनी अनुपम नगरी  अयोध्या पुनरागमन पर पलक बिछा कर  निर्निमेष दीपमाला प्रज्ज्वलित कर स्वागत किए होंगे | राघवेंद्र सरकार ने अपने चरण धरा पर रखते ही आचरण का ऐसा दैदीप्यमान हस्ताक्षर किया कि आज भी समूचा जगत उस मर्यादा रद्दा पर रद्दा रखते हुए  आचरण व संस्कार का कंगूरा खड़ा कर स्वयं को संस्कारी संस्कृति का सदस्य बताता है |      दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी और गणेश पूजनोत्सव के साथ  दीपमाला की श्रृंखलाएं मानव मात्र के जीवन जिजिविषा को प्रतिबिम्बित करते हैं | ईश्वर पइस दलीद्दर निकला - पूरे भारतवर्ष में संस्कृतियों और परम्पराओं की विविधता मनोहारी तथा चिंतन पर विवश करती है।           दरिद्र (दलीद्दर )बहिर्गमन की परम्परा उन्ही परम्पराओं का हिस्सा है ,देश के कोने - कोने में इस परम्परा के मानने - मनाने के तौर तरीके अलग हो सकते हैं परन्तु उसका उद्देश्य एक है , अपने घर से  दु:ख और दरिद्र का ...

उधार का नववर्ष उत्सव

उधार का नववर्ष उत्सव हम भारतीय लोगों की स्थिति एक चिड़िया "चोंचा " जैसी होकर रह गयी है | चोंचा के लिए कहानी है कि यह 🐦चिड़िया चतुर थी और अपने चाल से चल, उड़ और खा - पी कर अच्छे से जीवन यापन कर रही थी परन्तु एक दिन इसने देखा ,एक पक्षी हंस जो बहुत ही सुंदर चाल चल रहा था  | उसकी सुन्दर चाल देखकर इस चोंचा चिड़िया के मन में आया क्यों न मैं इस  पक्षी को अपना चाल प्रशिक्षक रख लूं और इसके जैसे चाल चलने लगूँ | इस आशय का प्रस्ताव लेकर चोंचा हंस के पास गया और अपनी जिज्ञासा सुना दिया, हंस ने चोंचा की पूरी बात सुनकर उसका चाल प्रशिक्षक बनना सहज ही स्वीकार कर लिया | प्रशिक्षण शुरू हुआ दिन बीतते गए परन्तु चोंचा हंस जैसा न चल सका अंत में चोंचा ने हार मानकर कहा के हंस मैं आप जैसा नहीं चल सकता मैं जैसा चलता था वैसा ही सही मैं वही चाल चलूँ तो ठीक यह कहकर दोनों विदा हुए | समय बीतता गया परन्तु चोंचा अपनी चाल भी भूल चुका था परिणाम यह निकला की चोंचा अब फुदक -फुदक कर चलता है!        हमारे कहने का आशय यह है कि हमारा देश स्वतंत्र तो हुआ परन्तु अंगरेजियत नहीं गयी, संविधा...