बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज बाबा साहब समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...
लोक परम्पराओं का निर्वहन व विसंगति
क्या हुआ होगा पहली दिवाली पर जब त्रैलोक्य विजेता मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पूरे जगत का दिल जीत कर अपनी अनुपम नगरी अयोध्या पुनरागमन पर पलक बिछा कर निर्निमेष दीपमाला प्रज्ज्वलित कर स्वागत किए होंगे |
राघवेंद्र सरकार ने अपने चरण धरा पर रखते ही आचरण का ऐसा दैदीप्यमान हस्ताक्षर किया कि आज भी समूचा जगत उस मर्यादा रद्दा पर रद्दा रखते हुए आचरण व संस्कार का कंगूरा खड़ा कर स्वयं को संस्कारी संस्कृति का सदस्य बताता है |
दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी और गणेश पूजनोत्सव के साथ दीपमाला की श्रृंखलाएं मानव मात्र के जीवन जिजिविषा को प्रतिबिम्बित करते हैं |
ईश्वर पइस दलीद्दर निकला -
पूरे भारतवर्ष में संस्कृतियों और परम्पराओं की विविधता मनोहारी तथा चिंतन पर विवश करती है।
दरिद्र (दलीद्दर )बहिर्गमन की परम्परा उन्ही परम्पराओं का हिस्सा है ,देश के कोने - कोने में इस परम्परा के मानने - मनाने के तौर तरीके अलग हो सकते हैं परन्तु उसका उद्देश्य एक है , अपने घर से दु:ख और दरिद्र का बहिर्गमन व शांति की अभीष्ट आकांक्षा होती है ,परन्तु इस परम्परा के निर्वहन की रीति नीति जुदा है |
देश के कुछ हिस्सों में दीपावली के दिन भोर में पुरानी डाली ,सूप ,बेना ,दौरे और गत्ते अथवा डिब्बों को कजरौटा (बच्चों को काजल लगाने का पात्र) या धातु के प्रहार से बजाते हुए ,एक दीपक साथ में लेकर दरिद्र बहिर्गमन की प्रक्रिया आरम्भ होती है ,यह करने वाली महिला अपने मुह एक पुनरावृति वाक्य दोहराती रहती है , "ईश्वर पैठस (पइस) दलीद्दर निकला " यह मंत्र मन को बल प्रदान करता और दु:ख -दरिद्र बाहर ले जाकर जलाते हैं और उसकी लपट में स्वयं को सेंकते हैं ,लौटते हुए महिलाएं (लोक बोली में )कुछ समूह गीत गाती हैं |(तर्क दरिद्र बहिर्गमन कर लक्ष्मी का प्रवेश होगा)
दुसरा--–-----देश के अधिकांश हिस्सों में उक्त प्रक्रिया दीपावली की सुबह होती (तर्क व्यक्ति के बाहर करने दरिद्र बहिर्गमन नहीं होगा , भगवान अथवा लक्ष्मी के आगमन से दरिद्र बहिर्गमन होगा)
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