शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं, शिक्षक | अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें | उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी | सरकारी शिक्षकों का दायित्व एक सरकारी शिक्षक को , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण, बी एलओ, सफाई , एमडीएमए ,चुनाव और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल पैर और वजनदार शरीर अर्...
सुच्चा बनारसी
कुछ दिन बनारस क्या रहे ,खुद को बनारसी समझने लगे,
जहां तहां आत्म विश्वास से लबरेज , घूमने टहलने लगे ,
मंदिर ,घाट हो सड़क हर जगह बनारसी होने का दम्भ भरने लगे ,
न वो सरदार रहे न सरदारी ,पर जहां खुला देखे लंगोटा कस दंड मारने लगे ,
प्रणाम -नमस्ते औ राम -राम तज, अभिवादन श्रेष्ठ महादेव कहने लगे ,
गंगा में डुबकी लगाकर हर हर गंगे कह दूर तक तरने लगे ,
लस्सी ,मलाई ,ठंडई ,मलईयो छके और मुंह में पान धरने लगे ,
बोली -आचार , व्यवहार और आहर में बनारसी वरण करने लगे ,
महाश्मशान की भभूत और माथे पर तिलक का श्रृंगार करने लगा ,
हमारा बनारस और खुद को घनीभूत बनारसी समझने लगे,
पर एक दिन संयोग हुआ घनघोर बनारसी से , जल ढारने में वाद करने लगा ,
मैं भी खुद को बनारसी बता आगे बढ़ने लगा ,
उसने बात की और बात - बात में बात पकड़ने लगा , मैं बनावटी बनारसीपने से अकड़ने लगा ,
उसने मेरी सारी अकड़ निकाल दी और महादेव पर पहला अपना अधिकार कहने लगा ,
मुझे ज्ञान मिलने लगा ,बनारस का होना और बनारसी दोनो अलग लगने लगा ,
वो गुरु निकला ,मेरा तो बस गुरुर था ,
तन से बलशाली और मन से स्थिर था ,
वो बनारसी अहीर था ||
हर-हर महादेव 🙏
ReplyDeleteबनारसी बनने का गुरूर ही कुछ और है
ReplyDeleteबनारसी पान और बनार्स
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