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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

डा० भीमराव अंबेडकर और वर्तमान

 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज 



बाबा साहब  समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. ..

1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व


जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण


'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण


भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश


आरक्षण नीति की अवधारणा


2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता


राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग


सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति


आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग


दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ


3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल


आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप


शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था में जातिगत भेदभाव


मीडिया और सिनेमा में जातिवाद का चित्रण


4. भारत में जातीय हिंसा के 100 प्रमुख उदाहरण (संक्षिप्त विवरण):

यहाँ देशभर में हुई प्रमुख जातीय हिंसा की घटनाओं की सूची दी गई है जो दर्शाती हैं कि जातिवाद आज भी एक सजीव और भयावह सच्चाई है:


खैरलांजी हत्याकांड (2006, महाराष्ट्र)


सहारनपुर जातीय हिंसा (2017, उत्तर प्रदेश)


ऊना दलित उत्पीड़न (2016, गुजरात)


धुले पुलिस फायरिंग (2013, महाराष्ट्र)


मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण (1981, तमिलनाडु)


जलियांवाला बाग के बाद मांडूर दलित नरसंहार (1969, तमिलनाडु)


मलकापुर हत्याकांड (2000, महाराष्ट्र)


कुडियारकुलम हिंसा (1999, तमिलनाडु)


विक्रम कॉलोनी हत्याकांड (2015, हरियाणा)


गोरखपुर जातीय हमला (2005, उत्तर प्रदेश)

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5. जातीय हिंसा के कारणों का विश्लेषण


राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक निष्क्रियता


सामाजिक-सांस्कृतिक पूर्वाग्रह


शिक्षा की कमी और आर्थिक असमानता


धार्मिक और जातिगत संगठनों की भूमिका


6. समाधान और सुझाव


शिक्षा में जातीय समावेशिता


संवैधानिक मूल्यों की व्यावहारिक शिक्षा


पुलिस एवं न्याय प्रणाली में जवाबदेही


सकारात्मक सामाजिक अभियान और मीडिया की भूमिका


निष्कर्ष:

बाबा साहब अम्बेडकर का सपना था एक ऐसा भारत जहाँ व्यक्ति की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके गुणों से हो। परन्तु आज भी जातिवाद हमारे समाज और राजनीति की रीढ़ बना हुआ है। यह लेख यह स्पष्ट करता है कि जब तक जातीय हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अम्बेडकर का सपना अधूरा रहेगा। राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक जागरूकता और न्यायपूर्ण व्यवस्था ही इस दिशा में परिवर्तन ला सकती है।

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!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

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