डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
लालच कहूं सनक कहूं या लगन
प्रकृति ने जो हमें उपहार निश्शुल्क दिये हैं, उन पर भी मानवों ने थोड़ी सी फेरबदल के साथ शुल्क लगाए और हम इतराने लगे की ये हमारा है ,हमने इसे संरक्षित किया है | उन्ही में से मैं भी हूं ,थोड़ा सा लालची भी हूं ,मैने कुछ पर्यावरण संरक्षण के सनक और कुछ लालच में फलदार वृक्षों की संतति रोप दी | अपनी मेहनत से अर्जित किये कुछ पैसों को खर्च करके ,उस फलदार संतति में ,आम ,अमरुद ,मौसमी, नीबू ,चकोदरा ,बेल (श्रीफल ),जामुन , लीची के कोमल पौधे थे |
कृतज्ञता
धीरे - धीरे समय बीतता गया और वह फलदार संतति सयानी हो गई | पता ही नहीं चला और वे पौधे अपनी कम आयु में ही मेरे प्रति कृतज्ञता जताने लगे बाहें फैलाकर अपने -अपने मौसम में फल लुटाने लगे , जो देखते हैं वो कहते हैं , इस पर थोड़ा फल कम है लेकिन उन्हें मैं कैसे समझाऊं इस पर फल कम नहीं है इसकी उमर कम है | खेलने - खाने की उम्र में ये कृतज्ञतापूर्वक फल लुटाने लगे |
नन्हे वृक्ष
अब तो उन जिम्मेदारी का बोझ लिए वृक्षों, अरे वृक्षों कहना ठीक होगा न , चलिए नन्हे वृक्षों कह लेते हैं ,तीन -चार महीने में एकबार मिलता हूँ | फिर भी वे शिकायत नहीं करते उतने ही उत्साह से मिलते हैं | हां कोई नन्हा वृक्ष अपना घाव छिपाता जरुर मिल जाता है ,जो उसे फल देने के बदले मिला होता है , डंडे से तोड़ने के ,झटके से तोड़ने के और चोरी से तोड़ने के | लेकिन थोड़ी सी पूछताछ और देख-रख से फिर प्रसन्न और हवाओं के साथ बाते करने लगते हैं |
सनकीपन
अरे मैं तो ये सब बताने में भूल ही गया की आप से ये बातें क्यों बता रहा हूं | बस यू हीं की क्या आप भी सनकी बन सकते हैं | प्रकृति के संवर्धन के यदि हां तो ठीक और नहीं तो आप बहुत ठीक हैं |
आप अपने अनुभव कमेंट बॉक्स में लिखें |
धन्यवाद
Aap bahut accha kar rahe ho. Apse se hame bhi prerna milti hai.
ReplyDelete