बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज बाबा साहब समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...
लालच कहूं सनक कहूं या लगन
प्रकृति ने जो हमें उपहार निश्शुल्क दिये हैं, उन पर भी मानवों ने थोड़ी सी फेरबदल के साथ शुल्क लगाए और हम इतराने लगे की ये हमारा है ,हमने इसे संरक्षित किया है | उन्ही में से मैं भी हूं ,थोड़ा सा लालची भी हूं ,मैने कुछ पर्यावरण संरक्षण के सनक और कुछ लालच में फलदार वृक्षों की संतति रोप दी | अपनी मेहनत से अर्जित किये कुछ पैसों को खर्च करके ,उस फलदार संतति में ,आम ,अमरुद ,मौसमी, नीबू ,चकोदरा ,बेल (श्रीफल ),जामुन , लीची के कोमल पौधे थे |
कृतज्ञता
धीरे - धीरे समय बीतता गया और वह फलदार संतति सयानी हो गई | पता ही नहीं चला और वे पौधे अपनी कम आयु में ही मेरे प्रति कृतज्ञता जताने लगे बाहें फैलाकर अपने -अपने मौसम में फल लुटाने लगे , जो देखते हैं वो कहते हैं , इस पर थोड़ा फल कम है लेकिन उन्हें मैं कैसे समझाऊं इस पर फल कम नहीं है इसकी उमर कम है | खेलने - खाने की उम्र में ये कृतज्ञतापूर्वक फल लुटाने लगे |
नन्हे वृक्ष
अब तो उन जिम्मेदारी का बोझ लिए वृक्षों, अरे वृक्षों कहना ठीक होगा न , चलिए नन्हे वृक्षों कह लेते हैं ,तीन -चार महीने में एकबार मिलता हूँ | फिर भी वे शिकायत नहीं करते उतने ही उत्साह से मिलते हैं | हां कोई नन्हा वृक्ष अपना घाव छिपाता जरुर मिल जाता है ,जो उसे फल देने के बदले मिला होता है , डंडे से तोड़ने के ,झटके से तोड़ने के और चोरी से तोड़ने के | लेकिन थोड़ी सी पूछताछ और देख-रख से फिर प्रसन्न और हवाओं के साथ बाते करने लगते हैं |
सनकीपन
अरे मैं तो ये सब बताने में भूल ही गया की आप से ये बातें क्यों बता रहा हूं | बस यू हीं की क्या आप भी सनकी बन सकते हैं | प्रकृति के संवर्धन के यदि हां तो ठीक और नहीं तो आप बहुत ठीक हैं |
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धन्यवाद
Aap bahut accha kar rahe ho. Apse se hame bhi prerna milti hai.
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