Skip to main content

शिक्षकों स्थिति और मुर्गे की कहानी

 शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल  शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं,  शिक्षक |  अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं।  परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें |  उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और  पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी |         सरकारी शिक्षकों का दायित्व  एक सरकारी शिक्षक को  , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण,  बी एलओ,  सफाई , एमडीएमए ,चुनाव  और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक  जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल  पैर और वजनदार शरीर  अर्...

मृतक दादा जी की ऋण अदायगी

मृतक दादा जी

                         फाईल फोटो 

दादा जी का स्वर्गवास हुए दो वर्ष बीत गये  |
मेरे दादा जी  स्व० शिवप्रसाद चौधरी  ,जिनका मूल नाम तो शिव प्रसाद था  परन्तु  पांच गांव में पंचायत के सरपंच होने के कारण उनके नाम के पीछे लोग सम्मान में  चौधरी लगाकर बुलाते थे  |
दादा जी की ३ वारिस  संतानो में मेरे पिता जी जो सबसे बड़े थे  घर पर खेती -  बारी कराते ,एक चाचा जी उनका सहयोग करते हुए अप्रत्यक्ष बेरोजगारी के जीते-जागते उदाहरण  हैं क्योंकि इस कल युग (मशीनी युग ) में  सबकुछ  तकनीकी और  मशीन  से   खेती होने के कारण सब एक व्यक्ति आसानी से कर सकता  है  |
बचे एक चाचा जी जो अहमदाबाद में एक अच्छे व्यसायी हैं  ,परन्तु वे शुद्ध व्यापारी हैं,व्यवहारी  नहीं |
इतनी भूमिका बतना आवश्यक है, क्योंकि हमारे कुनबे को बिना जाने आगे आप से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती |

दादा जी का ऋण (KCC)

दादा जी की अवस्था लगभग अस्सी (80) के पार हो चुकी थी ,परन्तु उनका खान-पान और दिनचर्या दुरुस्त थी | प्रतिदिन  ब्रह्म मूहूर्त में जगना और  दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर  चले जाते फसल निरीक्षण में  जैसे लगता की
 खेत न घूमे तो उनको चैन ही नहीं और  जब
 लौटते तो पिता जी को ऊंचे  स्वर में  बताते की वहां  पानी दो ,फला जगह  खाद की
 जरूरत है  , गन्ना के पेराई शुरू  हो जानी
 चाहिए  |

 पिता जी सारी बातें सुन लेते और  काम
 आपने समयानुसार करते  सब ठीक - ठाक
 चल रहा था | अचानक दादा जी की तबियत
 खराब हो गई  | 
मुझे अभी जल्दी की नौकरी मिली थी मैं  तहसील में था | 
पिता जी ने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित  एक निजी चिकित्सक के यहां दादा जी का उपचार कराया | मैं लौटा तो दादा जी अपनी पीड़ा सुनाने के उपरान्त तुरन्त कहे " बच्ची ज्यादा पईसा लागत होई न " हमने कहा  ना बाबा बहुत पईसा  ना लागत ह ,बस आप ठीक हो जा " लेकिन दादा जी की तबियत  में  अपेक्षित सुधार  न हुआ  | उन्हें  अच्छे  इलाज के लिए शहर ले जाना पड़ा | वहां उनकी तबियत  में  सुधार तो हुआ  लेकिन  तब तक पैसा बहुत खर्च हो चुका  था | एक बहन (चाचा की लड़की ) मीना की शादी  करनी थी |सब मुझे देखना था बाहर से लोग दादा को देखने तो आए पर आर्थिक  सहयोग  कोई न किया  | अब अगली खेती खेती भी करानी थी ,घर रहने वाले चाचा जी की  बिटिया  (हमारी बहन की शादी  भी थी) अब मैं  असमंजस  में  था कहां से सब मैं समंजित करुं  तभी दादा जी ने सुझाया  , "बच्ची किसान क्रेडिट कार्ड में  कुछ पईसा होई ,निकाल के   दे देहता त खेतिया आसानी से हो जात " हमें भी अच्छा  लगा क्योंकि पैसे कि सख्त जरूरत थी  | परन्तु  यह करने से पहले  मैंने सभी से पूछना उचित  समझा ,बाहर रहने वाले  चाचा जी से कहा कि चाचा  खर्च  बहुत  ज्यादा है  और  पैसा है नहीं  ,तो उनका जबाब था ," पैसा तो अभी हमारे पास भी  नहीं है ,अभी " उनके इस जबाब से मैं  पूर्वपरिचित था क्योंकि पहले भी मैं  पूछ कर देख लिया था  | 
तब मैने कहा  " दादा जी किसान क्रेडिट कार्ड से पैसे लेने को कह रहे हैं  ,तब उन्होंने कहा ठीक तो है ले - लो फिर  दे दिया  जाएगा  |
मेरे बड़े भाई जो छत्तीसगढ़ एक निजी फार्म में  काम करते थे उन्होंने कुछ आर्थिक  मदद  करते हुए  ,किसान क्रेडिट कार्ड से ऋण लेने को जायज ठहराया  |

ऋण की कार्यवाही -

       मैं  दादा जी को ले जा कर बैंक के कागज की सारी औपचारिकताएं पूरी करते हुए पूरे एक लाख पचासी हजार  निकासी करते हुए  ,इतने धन का दादा जी को ऋणी बना चुका  था |
 सब काम लाईन पर हो गये  ,अब मेरे पास  खेती  ,बहन की शादी  और  दादा जी की  दवाई हेतु  धन उपलब्ध  था |

जब दादा जी परलोक वासी हुए -

धीरे- धीरे समय बीतता गया  | अभी एक साल भी नहीं हुआ  दादा जी , समय को न थाम सके और  हम लोगों को छोड़  परलोक सिधार  गये |
अब हमारी जिम्मेदारी और  बढ गई  ,दादा जी की अन्त्येष्टी से लेकर ब्रह्मभोज तक सब परम्परा अनुरूप  निर्वहन किया | 
सभी लोग बताते कि यह अच्छे  से करो ,
"पंडित जी  को दक्षिणा, अंग वस्त्र  ,बर्तन इत्यादि  सब सही से  देना " मैने सब प्रबंधन  किया  सब ठीक - ठाक से बीत गया  सब अपने - अपने  काम पर चले गये  |

 यहां क्लिक करें -  काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी

दो वर्ष बाद - 

अब मैं  राजस्व विभाग की (संविदा) नौकरी 

 छोड़कर  एक  स्कूल में  प्रवक्ता   हूं | एक दिन बैंक से नोटिस आई  , जिस नोटिस में 
 दादा जी के नाम से लिये गए  ऋण का 
विवरण  था |
मैं नोटिस  ले लिया और  पिता जी को 

 दिखाया  ,पिता जी  ने कहा  "हां कर्ज तो है
 किसान क्रेडिट कार्ड का ,अब इसे जमा
करना  होगा " |
मैं नोटिस की यह सूचना  चाचा को भी फोन करके बताया चाचा जी ने कहा  "हां किसान क्रेडिट कार्ड वाला कर्ज है " | मैने भी कहा  "हां वही वाला है ,इसे  जमा करना  होगा  न "
तो चाचा जी ने कहा  "हां जमा  कर दा , पैसा  हो तो , हमारे पास तो इस टाइम पैसा नहीं है " 
फिर मैने कहा " ठीक है  देखते हैं   ,पैसा  तो हमारे पास भी नहीं  है " फिर सामान्य समाचार करने के बाद मैं  फोन काट दिया |
अब घर वाले  चाचा से कहा ,क्योंकि  उनका लड़का कृष्णा भी दिल्ली में नौकरी करता था |
चाचा जी ने कहा "कैसा - पैसा हमें नहीं पता " बात भी उनकी ठीक थी ,वे जानते  तो थे ,परन्तु अनजान बन रहे थे  ,क्योंकि पैसा मैंने
 अपने हाथ से खर्च किया था  |चाहे काम जो हुए हो ं |
अब मैं  फोन पर ये सारी बाते भैया को 
 बताया  भैया ने कहा "ठीक है कुछ पैसा 
  हम से भी ले - लो और  जमा कर दो " मैंने
 कहा   " नहीं रहने दीजिये देखता हूँ, जरूरत
 होगी तो मांग लूंगा "

 यहां क्लिक करें -    इसे साहस कहूं या बद्तमीज़

 ऋण अदायगी की औपचारिकता -

अब मैं अगले दिन  पहुंच गया बैंक और  सीधे शाखा प्रबंधक महोदय के कक्ष  में  पहुंच कर
 कागज उनके सामने लगभग पटकते हुए 
  अभिवादन के उपरान्त  मैने कहा " साहब 
 इसे देखिए कैसे जमा होगा "
मैनेजर साहब कम्प्यूटर पर कुछ कर रहे थे मेरे तरफ मुखातिब हुए  और  कागज लेकर उसे देखे और  कहे " जमा कराओ इसे , कौन  है शिवप्रसाद " मैने कहा "साहब ये हमारे दादा जी थे जो अब इस दुनिया में नहीं  रहे " प्रबंधक महोदय ने कहा तो " जैसे भी हो इसे जमा करके समाप्त करो "
 मैने कहा "हुजूर  उसी लिए तो आया हूं "
फिर उन्होंने  फिल्ड आफिसर साहब को 
 बुलाया और  कहा " इस खाते का पूरा
 विवरण निकाल लाइए " फिल्ड आफिसर साहब कुछ देर बाद  आए तब तक मैने साहब से बात - चीत की ,साहब को मैने बताया  कि "मैं  तहसील में  एक छोटा कर्मचारी हूँ (प्रवक्ता पद नहीं  बताया ) और मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है, यह ब्याज जैसे भी कम हो कर दीजिये साहब  "
साहब सुनते रहे और उनको अंततः दया आ ही गयी  उन्होंने  जो हो सकता था  किया | नियमानुसार जितना कम किया जा सकता था | सबसे कम ब्याज  मुझे देना  पड़ा,मैने सारी कर्ज की रकम "एकमुस्त समाधान योजनान्तर्गत  " जमा कर दी और  इस तरह से  मेरे दादा जी मरणोपरांत ऋण मुक्त हुए और  मैं  भी. ... मुझे बहुत आत्मसंतोष मिला कि शायद लोग अपनी संताने इन कामों के लिये ही काबिल  बनाना  चाहते हैं  |


  


     





Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

इसे साहस कहूँ या बद्तमीजी

इसे साहस कहूँ या     उस समय हम लोग विज्ञान स्नातक (B.sc.) के प्रथम वर्ष में थे, बड़ा उत्साह था ! लगता था कि हम भी अब बड़े हो गए हैं ! हमारा महाविद्यालय जिला मुख्यालय पर था और जिला मुख्यालय हमारे घर से 45 किलोमीटर दूर!  जिन्दगी में दूसरी बार ट्रेन से सफर करने का अवसर मिला था और स्वतंत्र रूप से पहली बार  | पढने में मजा इस बात का था कि हम विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे, तुलना में कला वर्ग के विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माने जाते थे, इस बात का हमें गर्व रहता था! शेष हमारे सभी मित्र कला वर्ग के थे ,हम उन सब में श्रेष्ठ माने जाते थे परन्तु हमारी दिनचर्या और हरकतें उन से जुदा न थीं! ट्रेन में सफर का सपना भी पूरा हो रहा था, इस बात का खुमार तो कई दिनों तक चढ़ा रहा! उसमें सबसे बुरी बात परन्तु उन दिनों गर्व की बात थी बिना टिकट सफर करना   | रोज का काम था सुबह नौ बजे घर से निकलना तीन किलोमीटर दूर अवस्थित रेलवे स्टेशन से 09.25 की ट्रेन पौने दस बजे तक पकड़ना और लगभग 10.45 बजे तक जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन पहुँच जाना पुनः वहाँ से पैदल चार किलोमीटर महाविद्यालय पहुंचना! मतल...

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

अभिनन्दन पत्र

 अभिनन्दन पत्र     किसी अधिकारी कर्मचारी के स्थानान्तरण /सेवानिवृत्ति  पर एक उपलब्थि पत्र के रुप स्मृति चिन्ह के रुप में  एक आख्यान..       प्रयोजन -  एक शिक्षक विरंजय सिंह यादव ने  विकास खण्ड के समस्त शिक्षकों की तरफ से अपने महबूब (प्रिय ) विद्वान खण्ड शिक्षा अधिकारी डा० अरूण कुमार सिंह  के स्थानान्तरण पर यह पत्र लिखा है | अभिनन्दन पत्र की विशेषता -         अपने अनुशासनिक खण्ड शिक्षा अधिकारी के जनपद मीरजापुर विकास खंड-जमालपुर  , से कौशाम्बी जनपद स्थानान्तरण पर लिखे अभिनन्दन पत्र में  ,अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री प्रभाकर सिंह के आग्रह पर अभिनन्दन पत्र की पंक्तियां  प्र भा क र अक्षर से शुरु होती है ं-- सम्पूर्ण पत्र -     श्रीमान्  डा० अरुण कुमार सिंह   *खण्ड शिक्षा अधिकारी, जमालपुर ,मीरजापुर* सेवारम्भ तिथि 7 जून 2021  प्रथम पदस्थापन- सौभाग्यशाली  ब्लॉक संसाधन केंद्र, जमालपुर मीरजापुर | स्थानान्तरण आदेश- 18 फरवरी  2024    प्रगति प्रेमी ,...