बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज बाबा साहब समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...
मृतक दादा जी
फाईल फोटोदादा जी का स्वर्गवास हुए दो वर्ष बीत गये |
मेरे दादा जी स्व० शिवप्रसाद चौधरी ,जिनका मूल नाम तो शिव प्रसाद था परन्तु पांच गांव में पंचायत के सरपंच होने के कारण उनके नाम के पीछे लोग सम्मान में चौधरी लगाकर बुलाते थे |
दादा जी की ३ वारिस संतानो में मेरे पिता जी जो सबसे बड़े थे घर पर खेती - बारी कराते ,एक चाचा जी उनका सहयोग करते हुए अप्रत्यक्ष बेरोजगारी के जीते-जागते उदाहरण हैं क्योंकि इस कल युग (मशीनी युग ) में सबकुछ तकनीकी और मशीन से खेती होने के कारण सब एक व्यक्ति आसानी से कर सकता है |
बचे एक चाचा जी जो अहमदाबाद में एक अच्छे व्यसायी हैं ,परन्तु वे शुद्ध व्यापारी हैं,व्यवहारी नहीं |
इतनी भूमिका बतना आवश्यक है, क्योंकि हमारे कुनबे को बिना जाने आगे आप से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती |
दादा जी का ऋण (KCC)
दादा जी की अवस्था लगभग अस्सी (80) के पार हो चुकी थी ,परन्तु उनका खान-पान और दिनचर्या दुरुस्त थी | प्रतिदिन ब्रह्म मूहूर्त में जगना और दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर चले जाते फसल निरीक्षण में जैसे लगता की
खेत न घूमे तो उनको चैन ही नहीं और जब
लौटते तो पिता जी को ऊंचे स्वर में बताते की वहां पानी दो ,फला जगह खाद की
जरूरत है , गन्ना के पेराई शुरू हो जानी
चाहिए |
पिता जी सारी बातें सुन लेते और काम
आपने समयानुसार करते सब ठीक - ठाक
चल रहा था | अचानक दादा जी की तबियत
खराब हो गई |
मुझे अभी जल्दी की नौकरी मिली थी मैं तहसील में था |
पिता जी ने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित एक निजी चिकित्सक के यहां दादा जी का उपचार कराया | मैं लौटा तो दादा जी अपनी पीड़ा सुनाने के उपरान्त तुरन्त कहे " बच्ची ज्यादा पईसा लागत होई न " हमने कहा ना बाबा बहुत पईसा ना लागत ह ,बस आप ठीक हो जा " लेकिन दादा जी की तबियत में अपेक्षित सुधार न हुआ | उन्हें अच्छे इलाज के लिए शहर ले जाना पड़ा | वहां उनकी तबियत में सुधार तो हुआ लेकिन तब तक पैसा बहुत खर्च हो चुका था | एक बहन (चाचा की लड़की ) मीना की शादी करनी थी |सब मुझे देखना था बाहर से लोग दादा को देखने तो आए पर आर्थिक सहयोग कोई न किया | अब अगली खेती खेती भी करानी थी ,घर रहने वाले चाचा जी की बिटिया (हमारी बहन की शादी भी थी) अब मैं असमंजस में था कहां से सब मैं समंजित करुं तभी दादा जी ने सुझाया , "बच्ची किसान क्रेडिट कार्ड में कुछ पईसा होई ,निकाल के दे देहता त खेतिया आसानी से हो जात " हमें भी अच्छा लगा क्योंकि पैसे कि सख्त जरूरत थी | परन्तु यह करने से पहले मैंने सभी से पूछना उचित समझा ,बाहर रहने वाले चाचा जी से कहा कि चाचा खर्च बहुत ज्यादा है और पैसा है नहीं ,तो उनका जबाब था ," पैसा तो अभी हमारे पास भी नहीं है ,अभी " उनके इस जबाब से मैं पूर्वपरिचित था क्योंकि पहले भी मैं पूछ कर देख लिया था |
तब मैने कहा " दादा जी किसान क्रेडिट कार्ड से पैसे लेने को कह रहे हैं ,तब उन्होंने कहा ठीक तो है ले - लो फिर दे दिया जाएगा |
मेरे बड़े भाई जो छत्तीसगढ़ एक निजी फार्म में काम करते थे उन्होंने कुछ आर्थिक मदद करते हुए ,किसान क्रेडिट कार्ड से ऋण लेने को जायज ठहराया |
ऋण की कार्यवाही -
मैं दादा जी को ले जा कर बैंक के कागज की सारी औपचारिकताएं पूरी करते हुए पूरे एक लाख पचासी हजार निकासी करते हुए ,इतने धन का दादा जी को ऋणी बना चुका था |
सब काम लाईन पर हो गये ,अब मेरे पास खेती ,बहन की शादी और दादा जी की दवाई हेतु धन उपलब्ध था |
जब दादा जी परलोक वासी हुए -
धीरे- धीरे समय बीतता गया | अभी एक साल भी नहीं हुआ दादा जी , समय को न थाम सके और हम लोगों को छोड़ परलोक सिधार गये |
अब हमारी जिम्मेदारी और बढ गई ,दादा जी की अन्त्येष्टी से लेकर ब्रह्मभोज तक सब परम्परा अनुरूप निर्वहन किया |
सभी लोग बताते कि यह अच्छे से करो ,
"पंडित जी को दक्षिणा, अंग वस्त्र ,बर्तन इत्यादि सब सही से देना " मैने सब प्रबंधन किया सब ठीक - ठाक से बीत गया सब अपने - अपने काम पर चले गये |
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दो वर्ष बाद -
अब मैं राजस्व विभाग की (संविदा) नौकरी
छोड़कर एक स्कूल में प्रवक्ता हूं | एक दिन बैंक से नोटिस आई , जिस नोटिस में
दादा जी के नाम से लिये गए ऋण का
विवरण था |
मैं नोटिस ले लिया और पिता जी को
दिखाया ,पिता जी ने कहा "हां कर्ज तो है
किसान क्रेडिट कार्ड का ,अब इसे जमा
करना होगा " |
मैं नोटिस की यह सूचना चाचा को भी फोन करके बताया चाचा जी ने कहा "हां किसान क्रेडिट कार्ड वाला कर्ज है " | मैने भी कहा "हां वही वाला है ,इसे जमा करना होगा न "
तो चाचा जी ने कहा "हां जमा कर दा , पैसा हो तो , हमारे पास तो इस टाइम पैसा नहीं है "
फिर मैने कहा " ठीक है देखते हैं ,पैसा तो हमारे पास भी नहीं है " फिर सामान्य समाचार करने के बाद मैं फोन काट दिया |
अब घर वाले चाचा से कहा ,क्योंकि उनका लड़का कृष्णा भी दिल्ली में नौकरी करता था |
चाचा जी ने कहा "कैसा - पैसा हमें नहीं पता " बात भी उनकी ठीक थी ,वे जानते तो थे ,परन्तु अनजान बन रहे थे ,क्योंकि पैसा मैंने
अपने हाथ से खर्च किया था |चाहे काम जो हुए हो ं |
अब मैं फोन पर ये सारी बाते भैया को
बताया भैया ने कहा "ठीक है कुछ पैसा
हम से भी ले - लो और जमा कर दो " मैंने
कहा " नहीं रहने दीजिये देखता हूँ, जरूरत
होगी तो मांग लूंगा "
ऋण अदायगी की औपचारिकता -
अब मैं अगले दिन पहुंच गया बैंक और सीधे शाखा प्रबंधक महोदय के कक्ष में पहुंच कर
कागज उनके सामने लगभग पटकते हुए
अभिवादन के उपरान्त मैने कहा " साहब
इसे देखिए कैसे जमा होगा "
मैनेजर साहब कम्प्यूटर पर कुछ कर रहे थे मेरे तरफ मुखातिब हुए और कागज लेकर उसे देखे और कहे " जमा कराओ इसे , कौन है शिवप्रसाद " मैने कहा "साहब ये हमारे दादा जी थे जो अब इस दुनिया में नहीं रहे " प्रबंधक महोदय ने कहा तो " जैसे भी हो इसे जमा करके समाप्त करो "
मैने कहा "हुजूर उसी लिए तो आया हूं "
फिर उन्होंने फिल्ड आफिसर साहब को
बुलाया और कहा " इस खाते का पूरा
विवरण निकाल लाइए " फिल्ड आफिसर साहब कुछ देर बाद आए तब तक मैने साहब से बात - चीत की ,साहब को मैने बताया कि "मैं तहसील में एक छोटा कर्मचारी हूँ (प्रवक्ता पद नहीं बताया ) और मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है, यह ब्याज जैसे भी कम हो कर दीजिये साहब "
साहब सुनते रहे और उनको अंततः दया आ ही गयी उन्होंने जो हो सकता था किया | नियमानुसार जितना कम किया जा सकता था | सबसे कम ब्याज मुझे देना पड़ा,मैने सारी कर्ज की रकम "एकमुस्त समाधान योजनान्तर्गत " जमा कर दी और इस तरह से मेरे दादा जी मरणोपरांत ऋण मुक्त हुए और मैं भी. ... मुझे बहुत आत्मसंतोष मिला कि शायद लोग अपनी संताने इन कामों के लिये ही काबिल बनाना चाहते हैं |
सही बात
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