बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज बाबा साहब समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...
किसानों पर सरकार द्वारा अत्याचार
अखिल भारतीय किसान सघर्ष समन्वय समिति द्वारा सरकार के गैर जिम्मेदार मंत्रियों से हुयी वार्ता विफल होती नजर आ रही है | किसान आन्दोलन तेज होने के अन्देशा से सरकार प्रशासन ने शाहजहाँपुर बार्डर से दिल्ली जाते किसानों पर धारा 144 के उल्लंघन का हवाला देकर आंसू गैस और मिर्च पाउडर के गोले फेकें | सरकार किसानों के रुख से दहशत में है |
एआईकेएससीसी ने कहा है कि वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने किसानों की मांगों पर जो बात वार्ता की पूर्व संध्या पर कही, इससे वार्ता की सफलता की संभावना कम बचती है। गडकरी ने कल कहा कि मूल समस्या है कि खाने का उत्पादन बहुत ज्यादा है और एमएसपी खुले बाजार से ऊँचा है। सच यह है कि भारत में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भूख से पीड़ित है और आरएसएस-भाजपा की सरकार उनके प्रति संवेदनहीन है। जिनके पेट भरे हुए हैं वे समझते हैं कि भारत में खाने के उत्पादन को घटा देना चाहिए। दुनिया के भूखे देशों की सूची भारत का दर्जा हर साल गिरता जा रहा है। उसका माप 2000 में 38.8 था जो 2019 में गिर कर 30.3 रह गया और 2020 में 27.2। इन तथ्यों से अपरिचित और कारपोरेट लूट को समर्थन देने में प्रतिबद्ध व बेपरवाह मंत्री कह रहे हैं कि भारत में खाना जरूरत से ज्यादा है |
सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी से भागना चाहती है, और किसानों को खुले बाजार में कृषि उत्पादों को बेचने के लाभ बता रही है | नतीजा यह निकलेगा कि किसान उद्योगपतियों का कठपुतली बनकर रह जाएगा , जब फसल किसान के पास होगी तो कम मूल्य पर खरीदकर और भण्डारित करने के उपरांत मनमाने मूल्य पर बेचेंगे उद्योगपति | इससे न किसान को लाभ होगा और नहीं आमजन लाभान्वित होंगे |
जय किसान
यह लेख बिल्कुल तथ्यविहीन है। और यह दर्शाता है कि आपके पास तथ्यों की कमी है।
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