डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
किसानों पर सरकार द्वारा अत्याचार
अखिल भारतीय किसान सघर्ष समन्वय समिति द्वारा सरकार के गैर जिम्मेदार मंत्रियों से हुयी वार्ता विफल होती नजर आ रही है | किसान आन्दोलन तेज होने के अन्देशा से सरकार प्रशासन ने शाहजहाँपुर बार्डर से दिल्ली जाते किसानों पर धारा 144 के उल्लंघन का हवाला देकर आंसू गैस और मिर्च पाउडर के गोले फेकें | सरकार किसानों के रुख से दहशत में है |
एआईकेएससीसी ने कहा है कि वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने किसानों की मांगों पर जो बात वार्ता की पूर्व संध्या पर कही, इससे वार्ता की सफलता की संभावना कम बचती है। गडकरी ने कल कहा कि मूल समस्या है कि खाने का उत्पादन बहुत ज्यादा है और एमएसपी खुले बाजार से ऊँचा है। सच यह है कि भारत में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भूख से पीड़ित है और आरएसएस-भाजपा की सरकार उनके प्रति संवेदनहीन है। जिनके पेट भरे हुए हैं वे समझते हैं कि भारत में खाने के उत्पादन को घटा देना चाहिए। दुनिया के भूखे देशों की सूची भारत का दर्जा हर साल गिरता जा रहा है। उसका माप 2000 में 38.8 था जो 2019 में गिर कर 30.3 रह गया और 2020 में 27.2। इन तथ्यों से अपरिचित और कारपोरेट लूट को समर्थन देने में प्रतिबद्ध व बेपरवाह मंत्री कह रहे हैं कि भारत में खाना जरूरत से ज्यादा है |
सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी से भागना चाहती है, और किसानों को खुले बाजार में कृषि उत्पादों को बेचने के लाभ बता रही है | नतीजा यह निकलेगा कि किसान उद्योगपतियों का कठपुतली बनकर रह जाएगा , जब फसल किसान के पास होगी तो कम मूल्य पर खरीदकर और भण्डारित करने के उपरांत मनमाने मूल्य पर बेचेंगे उद्योगपति | इससे न किसान को लाभ होगा और नहीं आमजन लाभान्वित होंगे |
जय किसान
यह लेख बिल्कुल तथ्यविहीन है। और यह दर्शाता है कि आपके पास तथ्यों की कमी है।
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