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डा० भीमराव अंबेडकर और वर्तमान

 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज  बाबा साहब  समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...

नई शिक्षा नीति और स्कूलों के बंद करने तथा संविलयन की संस्तुति

 नई शिक्षा नीति और स्कूलों के बंद करने तथा संविलयन की संस्तुति -

                  

नई शिक्षा नीति 2023 में  बिन्दु  सात कहता है  
 स्कूल कॉम्प्लेक्स/कलस्टर के माध्यम से         कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस कि संकल्पना को साकार करने के लिए सरकारी  स्कूलों को संकुल स्तर पर  संचालित किया जाए  उसके पक्षीय में तर्क दिया जा रहा है कि बच्चों को  कुशल शिक्षकों की टीम मिलेगी संगीत ,खेल ,कला और  विशेष शिक्षकों की उपलब्धता  से बच्चों के अधिगम को पर लगेगा ,इससे स्कूलों के भौगोलिक विस्तार से प्रशासनिक पहुंच और संसाधनों के साथ  शिक्षक नियोजन  चुनौतिपूर्ण हो जाता है |

समाधान-

नई शिक्षा नीति 2020 के नीति निर्धारकों ने बताया कम संख्या  वाले और  छोटे सरकारी  विद्यालयों के  शिक्षकों  तथा बच्चों का समेकन एक संकुल स्तर पर  किया  जाए  जिससे एक संकुल  विद्यालय पर स्कूल के लिए भौतिक और  मानव संसाधन की आपूर्ति  पर्याप्त  हो सके ,जिससे  बच्चों का  अधिक  कुशल  शिक्षकों की देख- रख में समुचित संसाधनों की उपलब्धता में ,उचित परिवेश में  किया  जा सके |
      चूक उपर्युक्त तर्क एकतरफा  प्रशासनिक दृष्टि से  आंके जाएं तो उपयुक्त और तर्कसंगत  ज्ञात होते हैं। परन्तु  इन्हे सामाजिक ताने बाने की कसौटी पर  कसा जाए तो यह सरकार  अक्षमता और  नाकामी तथा  अदूरदर्शिता के  अलावा कुछ नहीं  है। 

स्कूल समेकन उचित नहीं - 

         स्कूलों का समेकन कर संकुल स्तर पर संचालित करने का निर्णय  ठीक नहीं क्योंकि  पूर्व में जब इन स्कूलों का निर्माण हुआ  तो तत्कालीन नीति निर्धारकों का यह संकल्प  था की प्रारम्भिक शिक्षा को हर बच्चे तक पहुंचाने और  शिक्षा के मौलिक अधिकार को मजबूत करने के लिए  आबादी के नजदीक स्कूल बने कोई  भी बच्चा स्कूल के दूर होने के कारण शिक्षा के अधिकार से वंचित न  रहे ,परन्तु  इन स्कूलों में छात्र संख्या के कम होने  का कारण  बता कर विद्यालयों का समेकन  (क्लोजर और  मर्जर )की संकल्पना पर जोर दे रही  नई शिक्षा नीति 2020 |
अगर विद्यालयों को संकुल स्तर पर चलाया जाने लगा तो 40 प्रतिशत अपवंचित वर्ग के बच्चों का स्कूल जाना सम्भव न हो सकेगा ,क्योंकि  आज भी दलित ,पिछड़ा और अपवंचित  वर्ग की 60 प्रतिशत आबादी शिक्षा के मूल्य को नहीं जानती केवल सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं  |

सरकारी स्कूलों में कम छात्र संख्या सरकारी अक्षमता -

सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या  कम होने  का आशय आबादी  कम होने से तो लगाया नहीं जा सकता क्योंकि जब उन सरकारी स्कूलों की स्थापना हुई तब से जनसंख्या की बसावट में इजाफा हुआ  है ,  परन्तु  सरकारी स्कूलों में  मानव संसाधन तथा भौतिक संसाधनों की कमी तथा कुप्रबंधन से छात्र संख्या में  कमी आई है  , इसको छिपाने और  शिक्षा के प्रबंधन पर कम व्यय करने की गरज से वंचित वर्ग की अनदेखी करने के लिए  नई शिक्षा नीति 2020 के निर्धारकों ने  छोटे अथवा कम संख्या के स्कूलों को बंद करने अथवा समेकन  करने का प्रयोग  करना चाह रही  है। 
  

प्राइवेट स्कूलों की संख्या में  वृद्धि सरकारी विफलता का मानक --

जिस आबादी के पास एक सरकारी  पाठशाला थी ठीक उसी आबादी में  प्राइवेट शिक्षण संस्थान खुले और  उसमें  कम पारितोषिक पर अप्रशिक्षित शिक्षकों के सहारे छात्र संख्या  अधिक  है उसके पास भौतिक और मानव संसाधन की गुणवत्ता तो कम है परन्तु प्रचुरता के कारण प्रबंधन ठीक रहा और सरकारी विद्यालयों की छात्र संख्या पर असर पड़ा ,
चूकि शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की प्रचुरता और प्रबलता का काम सरकारों का था जब वह विफल रहीं तो कोई भी अनुभवहीन 
पूंजीपति शिक्षा की दुकान खोल कर शिक्षा का कुशल व्यापारी बन गया  |
मेरा प्रयोग डमरू    

समाधान - 

छोटे सरकारी विद्यालयों /कम संख्या के विद्यालयों का समेकन अथवा बंद करना विकल्प नहीं  है बल्कि  शिक्षकों का नियोजन किया जाए सरकारी स्कूलों को साधन सम्पन्न बनाया जाए  ,कुशल प्रबंधन किया  जाए  शिक्षा का बजट बढाया जाए ,जिससे  शिक्षा का अधिकार हर बच्चे  को मिल सके |
  

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