Skip to main content

डा० भीमराव अंबेडकर और वर्तमान

 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज  बाबा साहब  समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...

थप्पड़

थप्पड़ से मैं  धन्य हो गया 

गर्मी का मौसम था रात का नौ बज रहा था सड़क पर वाहन फर्राटे भर रहे थे ,कुछ  निजी वाहन ,कुछ  सवारी ढोने वाले वाहन उसी में  बुजारथ ड्राइवर (मुसहर - यह वनवासी जाति है) अपनी गाड़ी में  सवारी भर कर गाजीपुर  टैक्सी स्टैंड से दुल्लहपुर (लगभग 40 किलोमीटर )तक के लिए  निकला  था |

यह प्रतिदिन का काम था परन्तु आज सवारी  देर से मिलने के कारण अंधेरा हो गया  |अब दिक्कत ये थी की  गाड़ी की बत्ती  भी खराब हो गई थी | बुजारथ ड्राइवर  बिना लाईट की सवारी गाड़ी  लिये बहुत  प्रसन्नता  और थोड़ी सी बाधा के साथ  आपने गन्तव्य की तरफ बढ़ रहा था | प्रसन्नता इस बात की थी कि सवारी  गाड़ी और  गाड़ीवान की औकात से अधिक थी टैक्सी स्टैंड पर लगन (वैवाहिक कार्यक्रम ) का समय होने के कारण  वाहन कम थे जिसका फायदा बुजारथ ड्राइवर को मिला सबको घर जाने की जल्दी थी इसलिए  सवारी ऐसे बैठाइ गयी अथवा यूं कहूं ठूसी   गयी की तिल रखने की जगह न बची थी ,गाड़ी के ऊपर तक सवारी और  दाहिने -बांए तो लटक ही रही थी , बाधा इस बात  की थी की बत्ती  खराब थी ,परन्तु  रास्ता परिचित होने के कारण और  आते जाते  वाहनों की लाईट काम आसान कर रही थी |

Image from internet 

थप्पड़ -

अब गाड़ी धीमी रफ्तार में चल  रही थी तभी पीछे से तेज प्रकाश और  तेज रफ्तार वाली गाड़ी  चली आ रही थी  जिसकी लाईट के सहारे बुजारथ ड्राइवर अपनी गाड़ी  तेज चलाने लगा और  पीछे वाली गाड़ी को आगे आने के लिए जगह नहीं  दे रहा ऐसा सिलसिला लगभग 10 किलोमीटर तक चला  | तबतक  पीछे वाली गाड़ी  ओवरटेक करके आगे आ गई और  बुजारथ ड्राइवर की गाड़ी रोक कर किनारे करने का इशारा हुआ और  उसमें से उतरे पुलिस अधीक्षक, गाजीपुर  और  बुजारथ से बिना पूछे ताबडतोड तीन थप्पड़ और   बुजारथ को हिदायत की गाड़ी सबेरे लेकर जाना, बत्ती बनवा लेना और  आज तो सवारी बैठा लिए हो इसे उनके गंतव्य तक पहुंचा दो लेकिन क्षमता से अधिक सवारी अब मत बैठाना |

Image from Internet 

 थप्पड़ की महिमा -

अगली सुबह बुजारथ को एसपी साहब द्वारा  थपरियाने (पीटने) की खबर आग की तरह फैल रही थी | सब जगह बुजारथ को एसपी साहब द्वारा पीटने की ही चर्चा  जोर पर थी |
वैसे तो गाड़ी और गाड़ीवान के पीटने की बात आम थी ,परन्तु  एसपी साहब द्वारा पीटने की बात आम नहीं  विशेष थी |

Images from internet 


बुजारथ सबेरे जैसे ही टैक्सी स्टैंड गाजीपुर पहुंचे  तभी टीका महाराज (टैक्सी स्टैंड के रखरखाव वाले ) पूछे का बुजारथ कल फंस गए,  जोर का थप्पड़ था ,तभी बुजारथ  बोल पड़े  " अहा महराज उ थप्पड़ ना आशीर्वाद रहे ,जैसे ही एसपी साहब हमके थप्पड़ मरुवन हमके लगुवे आशीर्वाद मिल गईल ,जब दूसरे गाल पर थप्पड़ लगल  त लगुवे की ओह एक बेर अउर साहब हमके छू देतन  ,एतने में  तीसरा आशीर्वाद जैइसन थप्पड़ हमरे गाल पर  ,हम कहवीं की भगवान क हाथ हमरी गाल पर  ,हम त बस हाथ जोर के खड़ा रहुवीं " 
टीका महाराज पूछे "एइसन काहे लगल रे बुजारथ "
तब बुजारथ का जबाब जाति व्यवस्था की सच्चाई बयां कर रहा था....
"महाराज मुसहर के सिपाही आ होमगार्ड न मारेला की सीओ ,एसपी  छुएला ? साहब की छुअला से हम तर गइनीं " 
सभी लोग बुजारथ ड्राइवर की  इस पीड़ा युक्त  खुशी देख स्तब्ध थे....





Comments

Popular posts from this blog

इसे साहस कहूँ या बद्तमीजी

इसे साहस कहूँ या     उस समय हम लोग विज्ञान स्नातक (B.sc.) के प्रथम वर्ष में थे, बड़ा उत्साह था ! लगता था कि हम भी अब बड़े हो गए हैं ! हमारा महाविद्यालय जिला मुख्यालय पर था और जिला मुख्यालय हमारे घर से 45 किलोमीटर दूर!  जिन्दगी में दूसरी बार ट्रेन से सफर करने का अवसर मिला था और स्वतंत्र रूप से पहली बार  | पढने में मजा इस बात का था कि हम विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे, तुलना में कला वर्ग के विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माने जाते थे, इस बात का हमें गर्व रहता था! शेष हमारे सभी मित्र कला वर्ग के थे ,हम उन सब में श्रेष्ठ माने जाते थे परन्तु हमारी दिनचर्या और हरकतें उन से जुदा न थीं! ट्रेन में सफर का सपना भी पूरा हो रहा था, इस बात का खुमार तो कई दिनों तक चढ़ा रहा! उसमें सबसे बुरी बात परन्तु उन दिनों गर्व की बात थी बिना टिकट सफर करना   | रोज का काम था सुबह नौ बजे घर से निकलना तीन किलोमीटर दूर अवस्थित रेलवे स्टेशन से 09.25 की ट्रेन पौने दस बजे तक पकड़ना और लगभग 10.45 बजे तक जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन पहुँच जाना पुनः वहाँ से पैदल चार किलोमीटर महाविद्यालय पहुंचना! मतल...

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी भाग ३

                     का शी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग ३ अब हम लोग वहाँ की आबोहवा को अच्छी तरह समझने लगे थे नगरनार जंगल को विस्थापित कर स्वयं को पुष्पित - पल्लवित कर रहा था बड़ी - बड़ी चिमनियां साहब लोग के बंगले और आवास तथा उसमें सुसज्जित क्यारियों को बहुत सलीके से सजाया गया था परन्तु जो अप्रतीम छटा बिन बोइ ,बिन सज्जित जंगली झाड़ियों में दिखाई दे रही थी वो कहीं नहीं थी| साल और सागौन के बहुवर्षीय युवा, किशोर व बच्चे वृक्ष एक कतार में खड़े थे मानो अनुशासित हो सलामी की प्रतीक्षा में हों... इमली, पलाश, जंगली बेर , झरबेरी और भी बहुत अपरिचित वनस्पतियाँ स्वतंत्र, स्वच्छन्द मुदित - मुद्रा में खड़ी झूम रहीं थी | हमने उनका दरश - परश करते हुए अगली सुबह की यात्रा का प्रस्ताव मेजबान महोदय के सामने रखा | मेजबान महोदय ने प्रत्युत्तर में तपाक से एक सुना - सुना सा परन्तु अपरिचित नाम सुझाया मानो मुंह में लिए बैठे हों.. " गुप्तेश्वर धाम " | नाम से तो ईश्वर का घर जैसा नाम लगा हम लोगों ने पूछा कुल दूरी कितनी होगी हम लोगों के ठहराव स्थल से तो ...