डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
लुप्त होती भोजपुरी कहावतें
आज जब परिनिष्ठित भाषा और अंग्रेजी के बढते चलन से जरुत है ,आंचलिक और पारम्परिक शब्दों तथा मंजी कहावतों और मुहावरों के साथ भोजपुरी गाने तथा गीतों को संतक्षित करने की उसी परम्परा और चलन को जिंदा रखने हेतु हमारी टीम शुरू कर रही है, पारम्परिक कहावतों को जीवित रखने हेतु एक श्रृंखला एक कहावत रोज ...
आज की कहावत है----
तस्वीर माध्यम इण्टरनेट सभार"गुनी नाचे थुन्ही पर ,फुहरी बड़ेरी और" ---
कहावत का शाब्दिक अर्थ है-
गुनी अर्थात गुणवान की नाच थुन्ही (छप्पर या मड़ई या छान्ही के किनारे (ओरियानी) के तरफ लगने वाला छोटा बांस या लकड़ी का सहारा देने वाला टुकड़ा )पर होती है, जबकि फुहरी अर्थात गुणहीन का करतब या नाच बड़ेरी (छप्पर के बीच में सबसे ऊपर लगने वाली बांस अथवा लकड़ी की बल्ली )
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भावार्थ -
गुणवान अपने गुणों का दिखावा नहीं करता जबकि गुणहीन अपने ओछे करतब और व्यवहार का कूद - कूद कर करता है |
इसे भी पढ़ - उ कहां गईल
वाक्य प्रयोग -
राघो तनिक काम ढंग से कईल करा आ मनोहर से तुलना न करा तोहार हाल त ई बा की "गुनी नाचे थुन्ही प आ फुहरी बड़ेरी प "
अनूठी पहल परम्पराओं को जीवित रखने हेतु
ReplyDeleteसोना के अधिकाई भइल, सियार चलल टांगा गढा़वें।
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