दिन के बद्दर रात निबद्दर , बहे पुरवाई झब्बर -झब्बर, कहे घाघ कुछ होनी होई, कुआँ के पानी धोबिन धोई ||
विज्ञान की दुनिया में हम बहुत आगे निकल आए, पलक झपकते ही सारी सूचनाएं हमारी मुट्ठी में बन्द जादुई यन्त्र जिसे मोबाइल (भ्रमण भाषक) कहते हैं उसी से अंगुली फेरते ही प्राप्त हो जाती हैं |
हैलो गूगल आज का तापमान अथवा आज का मौसम (🌍☀⛅☁💧⚡❄ )तो उसमें नीचे लिख कर आएगा इतना बजकर इतना मिनट पर तापमान , बादल ☁का प्रतिशत, बारिश की सम्भावना व हवा का रुख |
अब हम सतर्क हो जाते हैं कि अमुक कृषि कार्य अथवा दैनिक कार्य का समय उस तकनीकी भविष्य वाणी के अनुरूप कर लेते हैं |
कभी पूर्ण सत्य कभी पूर्ण असत्य तो कभी आंशु सत्य / असत्य होती है वह भविष्य वाणी |
परन्तु सोचिए जब विज्ञान इतना आगे नहीं था | घड़ी नहीं थी तब लोग धूप की तीव्रता व छाया के ठहराव को देखकर यह बता सकते थे कि अब शाम होने में कितना समय है | और सारे काम निर्धारित तत्कालीन सारणी के अनुसार ही होते |
उस समय के मौसम ज्योतिषी अथवा मौसम विज्ञानी थे | महाकवि घाघ --
महाकवि घाघ किसान थे और समूची भारतीय कृषि मौसम आधारित थी |
महाकवि घाघ को मौसम विज्ञानी अथवा कृषि विज्ञानी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी |
महाकवि घाघ ने जो कुछ भी कहा धूप - छाँव, सूरज- चांद, हवा -पानी, कुत्ता- बिल्ली के रुख, दिशा और दशा के निरन्तर अवलोकन और पुनरावृत्ति के अनुभव पर कहा उन्होंने जितनी भी भविष्य वाणी की वो सटीक बैठती किसान आज भी महाकवि घाघ के सुझाए नुस्खे-
और मौसम के लक्षणों को याद करता है, यदि आप जानते हैं तो आप जमीन और भारतीय संस्कृति से जुड़े हैं और भारतीयता की कद्र करते हैं और यदि नहीं जानते हैं तो आइये जानने का प्रयास करते हैं|
महाकवि घाघ ने कहा
"जिन किसान के खेत पड़ा नहीं गोबर, सो किसान को समझो दुबर ||
अर्थात जिस किसान के खेत में गोबर की खाद नहीं पड़ी हो उस किसान को आप कमजोर किसान समझिये उसके खेत में उपज भी कमजोर होगी |
आज के कृषि विज्ञानी और सरकार एड़ी - चोटी एक किए हुए है, जैविक खेती और जैविक खाद के प्रयोग के लिए लगातार मिट्टी की संरचना (soil structure) बरबाद होता जा रहा है | चाहे वह जल धारणीय क्षमता की बात हो अथवा लगातार रासायनिक ऊर्वरक और रासायनिक पेस्टिसाइड (Herbicide, Incectcide,fungicide) के प्रयोग से मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीव मृत होते जा रहे हैं जिससे मिट्टी की जैविक संरचना असंतुलित हो रही है |
महाकवि घाघ ने कहा-
"सावन मास बहे पुरवईया, बैला बेच लियाव धेनु गैया |"
इसका भावार्थ यह है कि सावन के महिने में जब हवा लगातार पूरब दिशा से बहने लगे तो समझिये बारिश नहीं होगी अथवा कम होगी सूखा पड़ने वाला है, धान की खेती के अनुकूल मौसम नहीं है , तो जो बैल आप ने खेती के लिए रखा है उसे बेंच कर एक दूध देने वाली गाय खरीदो और उसे चराओ और दूध पीयो ||
महाकवि घाघ ने मौसम और हवा के रुख को देखकर बरसात और सूखा की भविष्यवाणी करते हुए कहा..
"दिन के बद्दर रात निबद्दर, बहे पुरवाई झब्बर - झब्बर कहे घाघ कुछ होनी होई, कुआँ के पानी धोबिन धोई ||"
भावार्थ यह है कि--
बरसात के मौसम में पूरे दिन बादल घनीभूत हो मडराते रहे , सूरज आंखमिचौनी करता रहे और पेड़ों के पत्तों के गुच्छों को झब्ब -झब्ब झोंके देकर तंद्रा तोड़ती हुई हवा पूरब से लगातार चलती रहे तो समझ जाइये कुछ अनहोनी होने वाली है, कपड़ा धोने वाली धोबिन के लिए अब तालाब, ताल, पोखरी में पानी नहीं बचेगा अब उसे कुंआं के पानी के भरोसे कपड़ा धोने होंगे |
अर्थात सूखा पड़ने के प्रबल लक्षण हैं |
तो महापण्डित घाघ उस समय के विद्वान और कृषिसह मौसम विज्ञानी थे जो ज्ञान सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर प्रयोगशाला बनाकर और क्लाइमेक्स साइंस /वेदर साइंस पढा रही है वो ज्ञान उन्हें अनुभवजन्य अवलोकन से था |
100% True
ReplyDeleteसत्यमेव
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