डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
बनारसी होली
बनारस को भारत की सांस्कृतिक राजधानी होने का वैभव प्राप्त है | होना भी चाहिए धर्म और संस्कृति का जितना पांडित्य यहां है उतना अन्यत्र नहीं | सम्पूर्ण देश में कहीं कोई सनातनी अनुष्ठान अथवा संस्कार या कर्मकांड कराने हो तो बनारस का महत्त्व बढ़ जाता है |
सात वार और नौ त्यौहारी नगरी
एक प्रचलित कहावत है - काशी का अद्भुत व्यवहार, सात वार नौ त्यौहार |
अर्थात सप्ताह में अगर सात दिन हैं तो उसमें से नौ त्यौहार, अनुष्ठान और व्रत में ही बीत जाएंगे |
उसमें भी अगर आप कुछ दिन कासी प्रवास कर लें और आपकी अर्धांगिनी कुछ अधिक धर्मपरायण हों तो यकिन मानिए इन त्यौहारों में खर्चते - खर्चते स्वयं खर्च हो जाने अर्थात करोड़पति की भी लुटिया डूबने की नौबत आ जाती है |
परन्तु काशी वासियों को इस बात पर गर्व रहता है कि बनारस के अलावा भारत के किसी भी कोने में इतने प्रेम और सौहार्द से इतने अधिक त्यौहार नहीं मनाए जाते |
भले ही उनका रूप साधारण हो उसमें टीम - टाम न होने
वैभव न दिखे ,लेकिन त्यौहार तो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है उसमें वैभव दर्शन दिखावा मात्र है |
किसी अमीर के घर शालिग्राम स्वर्ण आसन पर
विराजते हैं तो गरीब के घर पवित्र बेलपत्र पर विराज कर
शुद्ध गंगाजल से स्नान करते हैं |
अमीर के घर प्रभु किराए के पंडित द्वारा पूजित होते हैं
तो गरीब के घर वाचन अशुद्घ मंत्र द्वारा निश्च्छल श्रद्धा
से पूजे जाते हैं |
इन दोनों रूपों का दर्शन काशी के मेलों ,मंदिरों और आयोजनों में देखने को मिलते हैं |
आइए रंग ,गुलाल और प्यार में भींगने के सराबोर त्यौहार होली के बारे में काशी की सुनें |
होली मसाने की -
आप लोगों ने बरसाने की प्रसिद्ध होली के बारे में सुन रखा होगा , देश के विभिन्न हिस्सों विभिन्न तरह की होली के बारे में भी आप सुना देखा होगा परन्तु बनारस की होली अद्भुत और अनोखी है |
होली के दिन मीरघाट पर धर्मयुद्ध के लिए बनारसी गुरु
लोग दो - दो हाथ करते दिखेंगे |यहां घायल होने पर न
थाने में रपट लिखाई जाती है और न ही कोई सजा
और शिकायत |बहादुरी के साथ लड़ने वाले की गिनती
पहलवानों में की जाती है और पटखनी खाकर घायल
गिरा व्यक्ति मारने वाले की लाठी की दाद कराहते हुए
देता रहता है। बनारसी होली की यह विशेषता विश्व मे
बेजोड़ है |
काशी की परम्परा में अहीर
एक दूसरे को रंग गुलाल मलते लोग मिलेंगे और बरबस
प्रेम से लिपटते भी |
भंग का रंग तो शिवरात्रि की शिव बरात से ही चढ़ा रहेगा
|
बनारस के घाटों विशेष रूप से मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर चिताओं की भस्म (राख) से होली खेली जाती है |
मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन मता गौरा की विदाई हुई थी और भूत-भावन भगवान शिव माता गौरा को काशी लेकर आए थे |
इसीलिए भक्तगण रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन घाट पर गुलाल और अबीर के साथ चिताओं की भस्म लेकर होली खेलते है और नृत्य भी करते हैं |
मान्यता ये भी है कि भगवान शिव दिगम्बर रूप में इस दिन भक्तों के साथ होली खेलते हैं |
यही त्यौहारी विशेषताएं बनारसी होली को अनूठा और अजूबा बनाती हैं |
Banaras aur banarasi
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteVaranasi Is the city of Mahadev
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