स्कूल" स्कूलों का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...
बनारसी होली
बनारस को भारत की सांस्कृतिक राजधानी होने का वैभव प्राप्त है | होना भी चाहिए धर्म और संस्कृति का जितना पांडित्य यहां है उतना अन्यत्र नहीं | सम्पूर्ण देश में कहीं कोई सनातनी अनुष्ठान अथवा संस्कार या कर्मकांड कराने हो तो बनारस का महत्त्व बढ़ जाता है |
सात वार और नौ त्यौहारी नगरी
एक प्रचलित कहावत है - काशी का अद्भुत व्यवहार, सात वार नौ त्यौहार |
अर्थात सप्ताह में अगर सात दिन हैं तो उसमें से नौ त्यौहार, अनुष्ठान और व्रत में ही बीत जाएंगे |
उसमें भी अगर आप कुछ दिन कासी प्रवास कर लें और आपकी अर्धांगिनी कुछ अधिक धर्मपरायण हों तो यकिन मानिए इन त्यौहारों में खर्चते - खर्चते स्वयं खर्च हो जाने अर्थात करोड़पति की भी लुटिया डूबने की नौबत आ जाती है |
परन्तु काशी वासियों को इस बात पर गर्व रहता है कि बनारस के अलावा भारत के किसी भी कोने में इतने प्रेम और सौहार्द से इतने अधिक त्यौहार नहीं मनाए जाते |
भले ही उनका रूप साधारण हो उसमें टीम - टाम न होने
वैभव न दिखे ,लेकिन त्यौहार तो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है उसमें वैभव दर्शन दिखावा मात्र है |
किसी अमीर के घर शालिग्राम स्वर्ण आसन पर
विराजते हैं तो गरीब के घर पवित्र बेलपत्र पर विराज कर
शुद्ध गंगाजल से स्नान करते हैं |
अमीर के घर प्रभु किराए के पंडित द्वारा पूजित होते हैं
तो गरीब के घर वाचन अशुद्घ मंत्र द्वारा निश्च्छल श्रद्धा
से पूजे जाते हैं |
इन दोनों रूपों का दर्शन काशी के मेलों ,मंदिरों और आयोजनों में देखने को मिलते हैं |
आइए रंग ,गुलाल और प्यार में भींगने के सराबोर त्यौहार होली के बारे में काशी की सुनें |
होली मसाने की -
आप लोगों ने बरसाने की प्रसिद्ध होली के बारे में सुन रखा होगा , देश के विभिन्न हिस्सों विभिन्न तरह की होली के बारे में भी आप सुना देखा होगा परन्तु बनारस की होली अद्भुत और अनोखी है |
होली के दिन मीरघाट पर धर्मयुद्ध के लिए बनारसी गुरु
लोग दो - दो हाथ करते दिखेंगे |यहां घायल होने पर न
थाने में रपट लिखाई जाती है और न ही कोई सजा
और शिकायत |बहादुरी के साथ लड़ने वाले की गिनती
पहलवानों में की जाती है और पटखनी खाकर घायल
गिरा व्यक्ति मारने वाले की लाठी की दाद कराहते हुए
देता रहता है। बनारसी होली की यह विशेषता विश्व मे
बेजोड़ है |
काशी की परम्परा में अहीर
एक दूसरे को रंग गुलाल मलते लोग मिलेंगे और बरबस
प्रेम से लिपटते भी |
भंग का रंग तो शिवरात्रि की शिव बरात से ही चढ़ा रहेगा
|
बनारस के घाटों विशेष रूप से मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर चिताओं की भस्म (राख) से होली खेली जाती है |
मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन मता गौरा की विदाई हुई थी और भूत-भावन भगवान शिव माता गौरा को काशी लेकर आए थे |
इसीलिए भक्तगण रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन घाट पर गुलाल और अबीर के साथ चिताओं की भस्म लेकर होली खेलते है और नृत्य भी करते हैं |
मान्यता ये भी है कि भगवान शिव दिगम्बर रूप में इस दिन भक्तों के साथ होली खेलते हैं |
यही त्यौहारी विशेषताएं बनारसी होली को अनूठा और अजूबा बनाती हैं |
Banaras aur banarasi
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteVaranasi Is the city of Mahadev
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