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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

बनारस घूमने जा रहे हैं तो इन पांच बातों का ध्यान रखें


 बनारस घूमने आते समय इन बातों का रखें ध्यान

बनारस में हर समय हजारों लोग बनारस Banaras घूमने आते रहते हैं और अध्यात्म तथा   ज्ञान से अभिभूत होकर लौटते हैं | परन्तु आप बिना योजना और  बिना पूर्व तैयारी के काशी  kashiआ रहे हैं  तो अधिक सम्भावना  ठगे जाने  की और  अधूरे पर्यटन के शिकार हो सकते हैं | तो इन बातों को ध्यान रखें | 

  स्थान विभ्रम से सावधान -

                बनारस को काशी वाराणसीvaransi नामों से भी जाना जाता है| नाम  में कोई भ्रम नहीं है| परन्तु आप रेलवे स्टेशन के लिए बनारस जाना चाहें तो पूर्व के मण्डुआडीह पहुँच जाएंगे , वाराणसी जंक्शन, वाराणसी सिटी और काशी रेलवे स्टेशन भी है|  

 बस यात्रा का अवसान काशी  के चौधरी चरण सिंह बस अड्डे पर होगा | 

एक हवाई अड्डा लालबहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बाबतपुर (Lalbahadur shashtri International airport varanasi )शहर से 20 किमी दूर है |

सबसे व्यस्ततम रेलवे स्टेशन मुगलसराय(Mughalsarai) अब दीनदयाल उपाध्याय नगर 15 किलोमीटर की दूरी पर है | परन्तु वहाँ के लिए एक कहावत प्रसिद्ध है "सौ चाई न एक मुगलसराई " 



कब आएं बनारस -

                 बनारस आने से पूर्व यह जान लें की सितम्बर से मार्च तक का समय बनारस पर्यटन हेतु अनुकूल होगा | क्योंकि मार्च के बाद बनारस में ही नहीं सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में प्रचण्ड गर्मी पड़ती है तथा  उसके बाद बरसात के मौसम में बनारस आना बहुत ही मुश्किल से दो- दो हाथ करना होगा क्यों कि बनारस गलियों का शहर कहा जाता है और गलियों में पानी चढ़ जाता है | इसलिए अनुकूल समय में ही बनारस आएं |


खानपान - 

   बनारस आने पर लस्सी, मिठाई, ठण्डई  के अलावा उत्तर भारतीय  लजीज खानपान से आप तृप्त हो जाएंगे  परन्तु सही जगह से ही खाने और नाश्ते का लुत्फ़ उठाइएगा  , कम दिन रुकना हो  तो स्ट्रीट फूड का आनंद उठाइएगा  | बनारसी पान (Bnarasi pan)भी जरुर खाएं |  और हाँ सतर्क रहिये कोई भोले बाबा के प्रसाद के रूप में भांग व गांजा न दे   | ठण्डई वाला स्पेशल ठण्डई कहे तो समझिये भांग वाला है, साधारण या सादा, बादाम- पिस्ता  वगैरह अन्य ठण्डई लीजिए | बाकी आप की इच्छा... 



ठहरने की व्यवस्था 

    बनारस घूमने आ रहे हैं तो ठहरने हेतु बहुत से पेईंगेस्ट हाऊस, धर्मशाला और होटल हैं जो आनलाईन तथा आफलाईन उपलब्ध हैं जिनकी उपलब्धता पहले से ही सुनिश्चित कर लें  अन्यथा परेशानी हो सकती है |


घूमने और खरीदने में -

        वाराणसी में यदि आप मंदिरों में दर्शन करना चाहते हैं तो एक दिन में सभी मंदिरों का दर्शन करना सम्भव नहीं है कम से कम पांच से अधिक दिनों का समय जरूर रखें | घूमने के लिए शेयर आटो का प्रयोग कर सकते हैं, ओला इत्यादि सेवाएं भी उपलब्ध हैं परन्तु  बार्गेनिंग और ठगी से बचिए, कोई भी वस्तु खरीदते समय और किराया तय करते समय आटो वाले व दुकानदारों पर विश्वास न करें स्थानीय लोगों से सहयोग लें |



            फिर गंगा घाट (Assighat)से लेकर सभी मंदिर भारत माता मंदिर(Bharat mata tempal) बाबा विश्वनाथ,(Kashi viswanath) संकटमोचन, (Sankatmochan)दुर्गा कुण्ड (Durgakund),बाबा कालभैरव(Kalbhairav), बौध तीर्थ सारनाथ(sarnath) इत्यादि जरूर घूमें -

     पर ध्यान रहे-- 

रांड़ - सांड, सीढ़ी, सन्यासी |
इनसे बचे से, सेवे  काशी ||

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