स्कूल" स्कूलों का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...
हमने मिर्जापुर को नजदीक से देखा है, गंगा की पावन छटा, माँ विन्ध्यवासिनी का पावन धाम, विन्ध्य पर्वत श्रेणी, लहलहाती फसल, ऊपजाऊ भूमि, नहरों का जाल, विंडमफाल, लखनियादरी, जैविक विविधता से उफनते जंगल, मिलनसार और ईमानदार लोग, ना कोई जातीय संघर्ष न कोई विवाद ना कोई लट्ठमार, अमर्यादित भाषा और भी बहुत कुछ जो इस लेखन विधा में नहीं समा सकता ! मिर्जापुर की विशेषता बताने हेतु जगह और समय दोनों कम पड़ जाएंगे !
परन्तु हमने मनोरंजन हेतु नहीं अपितु हमारे समाज का दर्पण मानी जाने वाली इण्डस्ट्री सिने जगत से आ रहे आकर्षक पोस्टरों पर सुसज्जित ढंग से लिखा मिर्ज़ापुर (MIRZAPUR) देखा तो मैंने कहा कि इस मिर्जापुर को देखना चाहिए, तो मैंने पाया की वह फिल्म की एक अलग श्रेणी में निर्मित घटिया मनोरंजन करती वेब सिरीज़ है,
जो मिर्जापुर की हकीकत से जुदा है,
उसमें जातीय संघर्ष करते त्रिपाठी, शुक्ला और पण्डित दिखे , उसके किरदार निभाने वालों ने यह तो साबित कर दिया की वे अभिनय के प्रतिमूर्ति है ं, चाहे अखण्डानन्द त्रिपाठी का किरदार निभा रहे पंकज त्रिपाठी हों मुन्ना भैया, बीना, गोलू, डिम्पी, स्वीटी, बबलू पण्डित, गुड्डू पण्डित, शरद त्रिपाठी, कम्पाउंडर, ललित, जेपी यादव, माधुरी, इन्सपेक्टर मौर्या, मकबूल, लाला, तथा त्यागी ने इन सबने अपने आप को उन किरदारों में हूबहू उतर कर दिखाया है ! उसमें अभिनय कर रहे किरदारों ने अपने आप को साबित कर दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है,
परन्तु जो उनके संवाद ने सबको निराश किया है, गाली -गलौज, अपशब्द हर वाक्य में रोचकता तो बढ़ा रहे हैं, लेकिन भाषा का घटिया पन प्रदर्शित कर रहे हैं,
इस वेब सीरीज का खामियाज
हमारे समाज को भुगतना होगा, इससे आकर्षित होंगे युवा अब भगत सिंह, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस नहीं मुन्ना भैया की भौकाल, कालीन भैया का रसूख, मकबूल की वफादारी, माधुरी की राजनीति, तथा गुड्डू पण्डित , गोलू जैसे परिवार प्रेम का संदेश जाएगा समाज में,
ना कोई कहानी ना कोई प्रेरणाऔर न ही सेंसर की कैंची कहाँ ले जाएंगी ये वेब सीरीज कैसा होगा इन वेब सीरीज के सपनों का भारत, क्या.......❓ इन वेब सीरीजों का बहिष्कार होना चाहििििििििििि
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Absolutely right, kuchh alag karne ke nam pe kuch bhi sahi nhi
ReplyDeleteबेहद घटिया
Deleteबेहद घटिया
DeleteRight sir
ReplyDeleteजी हाँ बिल्कुल गलत दर्शाया है, हमारा मिर्जापुर ऐसा नहीं है
Deleteआज की फ़िल्म इंडस्ट्री बस कचरा परोस रही है। इनका बहिष्कार करना ही उचित है। देखो ही मत , तब इनकी बुद्धि ठिकाने आएगी।
ReplyDeleteजी हाँ
Deleteबहिष्कार होना चाहिए,क्योंकि आज के युवा काल्पनिक जीवन यापन कर रहे , उन्हें अंतर ही नही पता कि क्या सही है क्या गलत ओ कल को "king of mizapur" खुद को समझने लगेंगे, और भी बहुत सी वेब सीरीज है, जो कि संस्कृति को तार तार कर देती है सबका बहिष्कार होना चाहिए।
ReplyDeleteग़लत परंपरा को बढ़ावा दे रही सीरीज
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