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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

"मिर्जापुर" बेब सिरीज़ और हकीकत..

हमने मिर्जापुर को नजदीक से देखा है, गंगा की पावन छटा, माँ विन्ध्यवासिनी का पावन धाम, विन्ध्य पर्वत श्रेणी, लहलहाती फसल, ऊपजाऊ भूमि, नहरों का जाल, विंडमफाल, लखनियादरी, जैविक विविधता से उफनते जंगल, मिलनसार और ईमानदार लोग, ना कोई जातीय संघर्ष न कोई विवाद ना कोई लट्ठमार, अमर्यादित भाषा और भी बहुत कुछ जो इस लेखन विधा में नहीं समा सकता !  मिर्जापुर की विशेषता बताने हेतु जगह और समय दोनों कम पड़ जाएंगे  ! 
                 परन्तु हमने मनोरंजन हेतु नहीं अपितु  हमारे समाज का दर्पण मानी जाने वाली इण्डस्ट्री सिने जगत से आ रहे आकर्षक पोस्टरों पर सुसज्जित ढंग से लिखा मिर्ज़ापुर (MIRZAPUR)  देखा तो मैंने कहा कि इस मिर्जापुर को देखना चाहिए, तो मैंने पाया की वह फिल्म की एक अलग श्रेणी में निर्मित घटिया मनोरंजन करती वेब सिरीज़ है, 
      जो मिर्जापुर की हकीकत से जुदा है, 
उसमें जातीय संघर्ष करते त्रिपाठी, शुक्ला और पण्डित दिखे , उसके किरदार निभाने वालों ने यह तो साबित कर दिया की वे अभिनय के प्रतिमूर्ति है ं, चाहे अखण्डानन्द त्रिपाठी का किरदार निभा रहे पंकज त्रिपाठी हों मुन्ना भैया, बीना, गोलू, डिम्पी, स्वीटी, बबलू पण्डित, गुड्डू पण्डित, शरद त्रिपाठी, कम्पाउंडर, ललित, जेपी यादव, माधुरी, इन्सपेक्टर मौर्या, मकबूल, लाला, तथा त्यागी ने इन सबने अपने आप को उन किरदारों में हूबहू उतर कर दिखाया है  ! उसमें अभिनय कर रहे किरदारों ने अपने आप को साबित कर दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है, 
              परन्तु जो उनके संवाद ने सबको निराश किया है, गाली -गलौज, अपशब्द हर वाक्य में रोचकता तो बढ़ा रहे हैं, लेकिन भाषा का घटिया पन प्रदर्शित कर रहे हैं, 
         इस वेब सीरीज का खामियाज
 हमारे समाज को भुगतना होगा, इससे आकर्षित होंगे युवा अब भगत सिंह, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस नहीं मुन्ना भैया की भौकाल, कालीन भैया का रसूख, मकबूल की वफादारी, माधुरी की राजनीति, तथा गुड्डू पण्डित , गोलू जैसे परिवार प्रेम का संदेश जाएगा समाज में, 
               ना कोई कहानी ना कोई प्रेरणाऔर न ही  सेंसर की कैंची   कहाँ ले जाएंगी ये वेब सीरीज   कैसा होगा इन वेब सीरीज के सपनों का भारत, क्या.......❓ इन वेब सीरीजों का बहिष्कार होना चाहििििििििििि
आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है... 

Comments

  1. Absolutely right, kuchh alag karne ke nam pe kuch bhi sahi nhi

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  2. Replies
    1. जी हाँ बिल्कुल गलत दर्शाया है, हमारा मिर्जापुर ऐसा नहीं है

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  3. आज की फ़िल्म इंडस्ट्री बस कचरा परोस रही है। इनका बहिष्कार करना ही उचित है। देखो ही मत , तब इनकी बुद्धि ठिकाने आएगी।

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  4. बहिष्कार होना चाहिए,क्योंकि आज के युवा काल्पनिक जीवन यापन कर रहे , उन्हें अंतर ही नही पता कि क्या सही है क्या गलत ओ कल को "king of mizapur" खुद को समझने लगेंगे, और भी बहुत सी वेब सीरीज है, जो कि संस्कृति को तार तार कर देती है सबका बहिष्कार होना चाहिए।

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  5. ग़लत परंपरा को बढ़ावा दे रही सीरीज

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