डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
पीहू की शादी देवेश से हुई देवेश एक मल्टीनेशनल कम्पनी में साफ्टवेयर इंजीनियर था, परिवार का इकलौता बेटा, इसकी दो बिन ब्याही बहनें, माँ और बाबूजी इतने सदस्यों का परिवार था देवेश का जो अब पीहू का भी होने जा रहा था!
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पीहर से जब पहली विदाई होकर पीहू ससुराल आई, गृहप्रवेश के समय ही सासू माँ ने कहा पीहू अब ये तुम्हारा ही घर है, संभालो अपना घर, पीहू खुश हुई और सासू माँ को गले लगाते हुए बोली आप कितनी अच्छी हो माँ, ये कहने में उसकी आवाज में उत्साह साफ नजर आया, पर तुरंत सासू माँ ने टोका धीरे बोल बहू अभी मेहमान है ं घर में, फिर मुहदिखायी की रस्म के साथ विभिन्न रस्मों को पूरा करने के बाद सासू माँ ने पीहू से कहा देखो बहू यह तुम्हारा कमरा, यह कहते हुए माँ ने पीहू का पल्लू ठीक करते हुए कहा यह सिर पर रहना चाहिए सरकना नहीं चाहिए ये हमारे घर का रिवाज है, और हाँ देखो बहू सुबह सात बजे बाबूजी को गरम पानी, साढे़ सात बजे चाय और साढ़े आठ बजे नाश्ता चाहिए, पौने नौ बजे देवेश को आफिस जाना होता है उसको नास्ता और टीफिन चाहिए, फिर दो बजे भोजन की भी तैयारी कर लेना और हाँ इसी को ध्यान में रखते हुए तुम सुबह नहा- धोकर अपनी तैयारी रखना ! ये सब बातें पीहू अवाक खड़ी सुन रही थी उसने कहा माँ जी ये भारी साड़ी सबेरे से पहनी हूँ आदत नहीं है उसने हो रही है माँ ने थोड़ा रुक कर सांस भरते हुए कहा बहू इसे आज पहने रह कल कोई हल्की साड़ी पहन लेना हाँ सिर से पल्लू न गिरे ध्यान रखना ये कहते हुए माँ जी मेहमानों वाले कमरे की तरफ चली गई!
पीहू अकेले बैठे सोच रही , भारी साड़ी वो भी पहली बार तथा गहनों के भारीपन से शरीर में खुजली और घुटन हो रही थी तब तक ननदें दौड़ती हुई आती दिखाई दी पीहू कुछ खुश हुई, दोनों ननदों ने एक साथ पूछा और भाभी सब ठीक है, पीहू ने कहा सब ठीक है
लेकिन ये भारी साड़ी में ऊबन हो रही है, बड़ी ननद ने हंसते हुए कहा अब इसकी आदत डाल लो भाभी हमारे यहाँ ऐसे ही होता है यही कहकर हंसते हुए दोनों चली गई, तभी देवेश कमरे में प्रवेश किए अब पीहू का जी में जी आया, उसने देवेश की तरफ मुखातिब होते हुए कहा देखिए जी इस साड़ी में घुटन हो रही है आप कहें तो कुछ देर के लिए मैं सूट पहन लूं आराम रहेगा, उन्होंने कहा इसके बारे में माँ ही बता सकती है, उसी से पूछ लो वो जैसा कहे वैसा करो, अब पीहू की ये आखिरी उम्मीद थी, जो टूट गई अब पीहू साड़ी पहने रही,सब अपनी थोप रहे थे पीहू की पसंद ना पसंद कोई नहीं पूछ रहा था ! सुबह पांच बजे उठकर और सासू माँ के बताए अनुसार सारा काम नियत समय पर कर दी, सब करते-करते इग्यारह बज गया पीहू थककर चूर हो गई थी और सो गई! सुबह सासू माँ ने दरवाजा खटखटाया तब पीहू की आंख खुली देखी दरवाजे पर खडी़ सासू माँ कुछ बड़बड़ा रही हैं, उसने कहा माँ कल मैं थक ग ई थी, पता ही नहीं चला नींद नहीं खुली और अभी अपने घर वाली आदत है सात बजे जगने की, पर सासू माँ बिना कुछ सुने बड़बड़ाना हुई चली गई! अब पीहू को माँ की बहुत याद आ रही थी और रोना आ रहा था, माँ कहा करती थी यहाँ कायदे से रहो अपने घर जाकर अपनी मर्जी का करना, पीहू को आज समझ में आ रहा था, कि बेटी का कौन अपना घर जहाँ वह खुलकर सांस ले सके अपनी मर्जी का कर सके, तभी फोन की घण्टी बजी, उधर से माँ की आवाज थी, पीहू को खूब रोना आ रहा था, जी कर रहा था खुलकर रो लूं पर सांस थामते हुए माँ से बात की पर माँ- माँ होती है कही कि तेरी आवाज भारी लग रही है, पीहू ने कहा आप की बहुत याद आ रही थी, माँ ने कहा तू ठीक तो है ना, पीहू ने कहा हां मैं अपने घर ठीक हूँ, पर आप के घर की बहुत याद आ रही है....
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मनुष्य को परिस्थितियों के अनुसार ढालना पड़ता है। हर परिस्थिति के लिए तैयार होना चाहिए और समंजश्य बिठा कर चलना चाहिए।
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