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डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

Diwali 2023 कब और कैसे मनाएं जानें शुभ मुहूर्त

दिपावली 2023 में कब है तथा क्या है शुभ मुहूर्त  (Diwali or Deepawali  Shubh Muhurat  Time and Date  In Hindi)



दिवाली या दीपावली का    पर्व देश के वृहद  त्यौहारों में से एक है. जीवन को अंधकार पक्ष से प्रकाश पक्षीय में  जाने का संकेत देने वाला यह पर्व जितना  उमंग और हर्ष से मनाया जाता है, उतने ही हर्षोल्लास  से इसकी पूजन  विधि संपन्न की जाती है . पूरे  माह अथवा वर्ष भर  लोग दीपावली  की तैयारी करते हैं, जिसका  आरम्भ  साफ़ -सफाई से की जाती हैं, क्योंकि  दीपावली  के दिन धन की देवी माँ  लक्ष्मी पूजन  का महत्व होता है, और माँ लक्ष्मी  निवास वहीं करती हैं जहाँ स्वच्छ परिवेश  होता  है .



किसी भी त्यौहार की लोकप्रियता उसके पौराणिक कथा साहित्य और बोध पर निर्भर करता है , ऐसे ही दीपावली पर बहुत सी पौराणिक तथा दंत कथाएं प्रचलित है,  हिन्दू संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य बिना पांचांग और ग्रह -नक्षत्र की स्थिति जाने बगैर नहीं होता  ,इसलिए त्यौहारों के लिए भी शुभ मुहूर्त देखे जाते हैं | .


 2023 की दीवाली अथवा दीपावली  का शुभ मुहूर्त

दीपावली के  दिन माँ  लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और हर कोई अपने परिवार की सुख शान्ति  और समृद्धि की कामना माँ लक्ष्मी से करता है. दिवाली के  शुभ दिन लोग अपने घरों की  साफ सफाई करते हैं और अपने पूरे घर को दीपकों और लाइटों की रोशनी  से जगमग कर देते  हैं,  वहीं इस दिन केवल शुभ मुहूर्त के दौरान ही रात के समय देव पूजन का करते हैं |


दीपावली  में  मां लक्ष्मी पूजन  प्रदोष काल में होती है, जो सूर्यास्त के बाद शुरू होता है. महानिशिता काल में तांत्रिक और पंडित लोग पूजा करते है, ये वे लोग होते है, जिन्हें लक्ष्मी पूजा के बारे में अच्छे से जानकारी होती है. आम इन्सान लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में ही करते है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न में पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है. कहते है, स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी घर में ही स्थिर रहती है, कहीं नहीं जाती है. इसलिए ये लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे अच्छा समय है. वृषभ काल ही स्थिर लग्न होता है, जो दिवाली के त्यौहार में प्रदोष काल में ही आता है. अगर किसी कारणवश वृषभ काल में पूजा नहीं कर पाते है, तो इस दिन के किसी भी लग्न काल में पूजा कर सकते है.


दीपावली पर पूजा के सभी मुहूर्त– वृश्चिक 

वृश्चिक लग्न में दीपावली के दिन सुबह के समय  फिल्मी संस्थान, स्कूल ,कालेज ,अस्पताल और  विभिन्न संस्थान  में पूजन इसी मुहूर्त में होता है। 

 पूजन कुम्भ लग्न  में -



बीमार, व्यापार में हानि और शनि के प्रकोप तथा विभिन्न बाधाओं से कुपित लोग कुम्भ लग्न में पूजन करते हैं, यह समय दोपहर से शुरु होता है |

 लग्न वृषभ – 

यह लग्न लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे उत्तम होती है ,वृषभ लग्न शाम को आरम्भ होती है |


 सिम्हा

सिम्हा लग्न में तांत्रिक और कर्म-कांड के अनुशीलन करने वाले लोग पूजन करते है, जो मध्य रात्रि को आरम्भ होती है, यह लग्न गृहस्थ के लिए उपयुक्त नहीं है |

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