Skip to main content

डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

अब मैं अपराध मुक्त हूँ

 अब मैं अपराध मुक्त हूँ




समय पूर्वाह्न इग्यारह बजे का था, मैं छपरा -औड़िहार  मेमू( 05135) ट्रेन से गाजीपुर स्टेशन पहुंचा था | धूप सुखाड़ के तीखेपन से सुर्ख हुए जा रही थी, और अपने कार्य से यात्रा कर रहे लोग अपने गन्तव्य  के नजदीकी रेलवे स्टेशन गाजीपुर शहर (Ghazipur City)पहुंच कर  उतरे और सभी लोग अपने गन्तव्य पहुंचने के लिए स्टेशन के बाहर खड़े प्रतीक्षा कर रहे आटो रिक्शा व ई -रिक्शा   वालों के तरफ बढ़े और बैठने लगे |

आटो रिक्शा की सवारी


 हर आटो-ई- रिक्शा वाला आवाज लगा रहा था और सवारियों को आकर्षित कर रहा था, रौजा - रौजा, मिश्र बाजार - मिश्र  बाजार , भूतहिया टांड तभी एक आटो रिक्शा वाला  चलते हुए  इशारे से आंखें की भौंहे ऊपर चढाने के साथ उचक कर सिर ऊपर  करते हुए मुझसे पूछा कहाँ, मैं ने झटके से कहा गोराबाजार ( रविन्द्रपुरी के नाम से जाना जाता है, परन्तु चलन में गोराबाजार ही है)  आटो में सवारी मेरे अनुसार अब भर चुकी थी परन्तु वो आटो चालक सीट पर बांए तरफ खिसकते हुए एक सवारी की जगह बना लिया और पूरी भाव भंगिमा के साथ संकेत करते हुए कहा बैठ जाइए  मैं भी बैठ गया  | आटो रिक्शा वालों के लिए यह साधन (आटोरिक्शा)पुष्पक विमान ही होता है चाहे जितनी सवारी बैठ जाए एक सीट खाली ही रहती है|    हम बैठते ही आटो चालक से कहे हमारे पास खुल्ले पैसे नहीं हैं  मैं बैठू ?, आटो चालक मुस्कुराया और बैठने की मौन स्वीकृति दिया मैं भी बैठा रहा |आटो जिला साधन सहकारी समिति के कार्यालय के पास पहुंचा तब तक आटो वाले ने एक अधेड़ उम्र की महिला को आवाज देते हुए कहा की "ए चाची आव बैठ जा " वह महिला पीछे मुड़ते हुए देखकर झुंझलाहट भरे भाव में बोली "ओमईन जगह बा की बइठ जाईं --  जा"  ? आटो चालक ने कहा " आवा हम जगह बनावत हईं " परन्तु महिला आगे बढती गई और कुछ बड़बड़ाती रही जो आटो की आवाज में सुनाई नहीं दिया | 
आटो वाला भी सधे अंदाज में बुदबुदाता हुए कहा "सबके फइल के बइठे के चाहीं, पीजी कालेज  चौराहा( POST GRADUATE COLLEGE)  जाए में घूम के जाए के पड़ता एइसे जाए पर खाली तेल क पैसा बाची  , कैसे केहू चले   " और चलते हुए यह नसीहत मुझे दिया कि अपना पैर थोड़ा अन्दर कर लीजिए सर  नहीं तो कोई ठोक देगा, मैं भी हंसते हुए कहा चाची जैसे हमको भी ज्यादा जगह चाहिए थी तो थोड़ा बाहर कर लिया था और यह कहते हुए मैंने पैर अंदर कर लिया और आगे बैठे लोग मुस्कुराए आटो वाले सहित | आटो शास्त्रीनगर, डीएम आवास होते हुए विकास भवन चौराहा पहुंचा | इतना परिक्रमा इसलिए करनी पड़ी क्योकि मुख्य मार्ग बंधवा - सिंचाई विभाग चौराहा पर सीवर लाईन का कार्य प्रगति पर है | 



गंतव्य तक व बिना भाड़ा सफर


अब आटो गोराबाजार दुर्गा मंदिर और फिर पानी टंकी एक - एक सवारी उतारते हुए आटो  रविन्द्रपुरी  हमारे गंतव्य गौरव- उत्कर्ष एसोसिएट फर्म के सामने हमारे आग्रह पर रुकी हम उतरे और पांच सौ की एक नोट निकाल कर आटो वाले के तरफ बढाए , आटो चालक मुस्कुराया और पीछे सवारियों के तरफ मुखातिब होते हुए पूछा - है किसी के पास ? मैं भी एक सिंहावलोकन  सभी सवारियों के चेहरे का कर लिया इस आशा दृष्टि के साथ कि शायद किसी के पास हो परन्तु किसी यात्री के चेहरे का भाव सकारात्मक न हुआ हमारे साथ आटो चालक ने भी सभी लोगों के चेहरे का अवलोकन किया और हमारे तरफ मुखातिब होकर कहा आप यहीं रुकेंगे न, मैंने कहा हां, तो  चालक ने कहा ठीक है फिर मैं लौटता हूँ, मैंने कहा हां आकर इस गेट पर आवाज लगाना आप..  आटो आगे बढ़ गया मैं सोचने लगा.....  फोन नम्बर दे दिया होता, या नाम पूछ लिया होता सोचते हुए बढ ही रहा था गेट के तरफ तब तक फर्म के संचालक गौरव दत्त जी ने हंसते हुए परस्पर अभिवादन स्वीकार किया | हम लोगो की बातचीत शुरू हो उससे पहले हमने आटो भाड़े का कर्जदार होने की घटना का जिक्र गौरव जी से किया क्योंकि हमलोग जब बात करना शुरू करते तो ऐसी बातों के लिए कोई जगह न बचती | गौरव जी ने कहा चलिए आएगा तो दे दिया जाएगा  | फिर हम लोग शुरू हो गए और नहीं रुके बात करते हुए १ घण्टा कब बीता पता नहीं चला इसी बीच आन्टी जी   (जो पेशे से चिकित्सक हैं,आफिस से 20 मीटर दूर आवास पर बुला गईं) आईं और कहीं की आप लोग आओ नाश्ता कर लो पर  मैं वहाँ से हिलना नहीं चाहता था कि आटो चालक आएगा और मुझे न पा कर लौट जाएगा और उसका नुकसान होगा व  मैं अपराधी बनूंगा |
गौरव जी भी कहे चलिए मैं कहा मैं इससे बाहर तो चलूंगा पर दूर नहीं, वो कहे अरे पांच मिनट लगेंगे फिर मैं नहीं माना और गौरव जी लजीज नाश्ते से भरी प्लेट लेकर आए हम लोगो ने जी भरकर अल्पाहार ग्रहण किया, आप सोच रहे होंगे की अल्पाहार और जी भर तो चौंकने की बात नहीं है हम लोग ऐसे ही हैं, बस अब तो आप जान ही गए होंगे हमलोगों के खानपान | पर अब हमलोगों की बैठकी में चार्टर अकाउंटेंट (C A) उत्कर्ष जी भी सम्मिलित थे | अब धीरे - धीरे  हमारे लौटने का समय हुआ गौरव जी से मैंने आग्रह किया हमारी ट्रेन 3 बजे है हम चलें तो उन्होंने कहा अरे बैठिये परन्तु हमारे गम्भीर आग्रह पर उन्होंने कहा चलिए चलता हूँ मैं भी स्टेशन तक | मेरे दिमाग में अभी भी आटो भाड़ा घूम रहा था, मैंने गौरव जी से कहा अगर आटो चालक आए तो उसे उसका किराया जरूर दे दीजिएगा | उन्होंने कहा जरूर दे देंगे आप निश्चिंत रहिये | परन्तु मुझे यह बात अब भी पीड़ा दे रही थी, उसका भाड़ा |
हम लोग मोटरसाइकिल से  रेलवे स्टेशन गाजीपुर शहर पहुँच चुके थे   | मैं उतरते ही आटो रिक्शा वालों के तरफ देखा परन्तु वह आटो चालक नहीं दिखा |

मैं अपराधी बना जा रहा था


 मैं एक आटो चालक के पास जाकर चालक की हुलिया बताते हुए पूछा कि ऐसी दाढ़ी वाला आटो चालक किधर है जो ११.३८ बजे वाली DMU गाड़ी से सवारी भरकर पीजी कालेज गया था | फिर और चालक भी जुट गए और पूछे कि बात क्या है आप का बैग छूटा  है? 
मैंने कहा नहीं किया देना है, तो वे लोग चौंक गए कि पहली बार देख रहे हैं कि कोई भाड़ा देने के लिए ढूंढ रहा है | परन्तु इस हुलिया के चालक एक ही हैं और वे सत्संग में गए हैं | मैं कहा कि अगर आप लोगो को इस हुलिया का चालक मिले तो उससे कहना कि जहाँ उतारे थे वहीं से जाकर भाड़ा ले लेना और गौरव जी को पुनः कहा कि आप जरूर दे दीजिएगा, गौरव जी ने हंसते हुए कहा आप निश्चिंत रहिये मैं दे दूंगा | 


अपराध मुक्ति की ओर

अब मैं गौरव जी से विदा लेकर लौटने वाला ही था तबतक वही आटो सामने आते दिखाई दी मैं सीढ़ी उतर गौरव जी को बोला यही आटो है और जिन आटो चालकों से पूछा था वे भी वहीं थे मैं उस आटो चालक के पास पहुंचा जिसकी प्रतीक्षा में था | पहुचते ही पूछा लौटे क्यों नहीं उसने कहा लौटा और आगे बढा तो याद आया .. मैंने उसका उचित भाड़ा थमाते हुए अपराधमुक्त और विजयी अनुभव कर रहा था | गौरव जी लौट गए और मैं पुनः डाउन  05136 मेमू एक्स्प्रेस से घर लौट गया ||

Comments

Popular posts from this blog

इसे साहस कहूँ या बद्तमीजी

इसे साहस कहूँ या     उस समय हम लोग विज्ञान स्नातक (B.sc.) के प्रथम वर्ष में थे, बड़ा उत्साह था ! लगता था कि हम भी अब बड़े हो गए हैं ! हमारा महाविद्यालय जिला मुख्यालय पर था और जिला मुख्यालय हमारे घर से 45 किलोमीटर दूर!  जिन्दगी में दूसरी बार ट्रेन से सफर करने का अवसर मिला था और स्वतंत्र रूप से पहली बार  | पढने में मजा इस बात का था कि हम विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे, तुलना में कला वर्ग के विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माने जाते थे, इस बात का हमें गर्व रहता था! शेष हमारे सभी मित्र कला वर्ग के थे ,हम उन सब में श्रेष्ठ माने जाते थे परन्तु हमारी दिनचर्या और हरकतें उन से जुदा न थीं! ट्रेन में सफर का सपना भी पूरा हो रहा था, इस बात का खुमार तो कई दिनों तक चढ़ा रहा! उसमें सबसे बुरी बात परन्तु उन दिनों गर्व की बात थी बिना टिकट सफर करना   | रोज का काम था सुबह नौ बजे घर से निकलना तीन किलोमीटर दूर अवस्थित रेलवे स्टेशन से 09.25 की ट्रेन पौने दस बजे तक पकड़ना और लगभग 10.45 बजे तक जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन पहुँच जाना पुनः वहाँ से पैदल चार किलोमीटर महाविद्यालय पहुंचना! मतल...

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी भाग ३

                     का शी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग ३ अब हम लोग वहाँ की आबोहवा को अच्छी तरह समझने लगे थे नगरनार जंगल को विस्थापित कर स्वयं को पुष्पित - पल्लवित कर रहा था बड़ी - बड़ी चिमनियां साहब लोग के बंगले और आवास तथा उसमें सुसज्जित क्यारियों को बहुत सलीके से सजाया गया था परन्तु जो अप्रतीम छटा बिन बोइ ,बिन सज्जित जंगली झाड़ियों में दिखाई दे रही थी वो कहीं नहीं थी| साल और सागौन के बहुवर्षीय युवा, किशोर व बच्चे वृक्ष एक कतार में खड़े थे मानो अनुशासित हो सलामी की प्रतीक्षा में हों... इमली, पलाश, जंगली बेर , झरबेरी और भी बहुत अपरिचित वनस्पतियाँ स्वतंत्र, स्वच्छन्द मुदित - मुद्रा में खड़ी झूम रहीं थी | हमने उनका दरश - परश करते हुए अगली सुबह की यात्रा का प्रस्ताव मेजबान महोदय के सामने रखा | मेजबान महोदय ने प्रत्युत्तर में तपाक से एक सुना - सुना सा परन्तु अपरिचित नाम सुझाया मानो मुंह में लिए बैठे हों.. " गुप्तेश्वर धाम " | नाम से तो ईश्वर का घर जैसा नाम लगा हम लोगों ने पूछा कुल दूरी कितनी होगी हम लोगों के ठहराव स्थल से तो ...