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शिक्षकों स्थिति और मुर्गे की कहानी

 शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल  शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं,  शिक्षक |  अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं।  परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें |  उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और  पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी |         सरकारी शिक्षकों का दायित्व  एक सरकारी शिक्षक को  , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण,  बी एलओ,  सफाई , एमडीएमए ,चुनाव  और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक  जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल  पैर और वजनदार शरीर  अर्...

लोकतंत्र के चीरहरण में निर्वाचन आयोग दुर्योधन

 

लोकतंत्र की हत्या में निर्वाचन आयोग सहयोगी 

उत्तर प्रदेश में निकाय विधानपरिषद का चुनाव होना निर्धारित था नामांकन हुआ कुछ निर्दलीय और दो प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी व समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित किया और उन्होंने नियमत: नामांकन दाखिल किया और चल पड़ी चुनाव की प्रक्रिया  अपने वोटरों, पंचायत प्रतिनिधियों को अपने पाले में लाने और रिझाने की कवायद तेज कर दी  परन्तु सत्ता  पक्ष संवैधानिक  उदासीनता और निर्वाचन आयोग की मूकदर्शक भूमिका के कारण मजाक साबित हुआ निकाय एम० एल० सी० (विधानपरिषद)   चुनाव |

उम्मीदवार को नामांकन से रोकना

  एटा स्थानीय प्राधिकरण से नामांकन करने जाते समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार उदयवीर सिंह का आवेदन छिन कर फाड़ देना और मारपीट कर भगाना उसकी फोटो और फुटेज वायरल होने और निर्वाचन आयोग से शिकायत करने के बाद भी निर्वाचन आयोग का पालतू जैसा व्यवहार अर्थात कुछ भी न कहना कोई प्रतिक्रिया न प्रदर्शित करना दोषियों के खिलाफ कोई एक्शन न लेना निर्वाचन आयोग की भूमिका पर प्रश्न❓ चिन्ह तो खड़ा करता है | 


सत्ता पक्ष के गुण्डागर्दी और अपराध को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति का पर्दाफाश करता है |

सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों के अलावा सभी उम्मीदवारों की लागातार नाम वापसी

सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों के अलावा विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की  नाम वापसी निर्वाचन की एक प्रक्रिया का एक अंग तो है, परन्तु लागातार और पूरे प्रदेश से नाम वापसी सामान्य प्रक्रिया का अंग नहीं हो सकता इसमें शासन की एजेन्सियों द्वारा डराने धमकाने से लेकर धनबल का दबाव और स्थानीय प्रशासन का दबाव काम कर रहा है इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह संविधान के ठीक संकेत नहीं है|
सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों के निर्विरोध  अथवा जबरी    निर्वाचन की घोषणा  भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरा नजर आ रहा है |

उम्मीदवारों का घर ढहाना

उम्मीदवारों द्वारा नाम वापसी के लिए तैयार न होने पर स्थानीय थानों द्वारा व स्थानीय प्रशासन का अचानक हरकत में आ जाना और उनका घर अवैध बताया जाना और उसे ढहाने की धमकी अथवा चेतावनी प्रशासन द्वारा भेजना निन्दनीय है | 

           गाजीपुर जनपद के सपा प्रत्याशी द्वारा नामांकन वापस ले लिया गया यह किस दबाव में हुआ यह तो उजागर नहीं हुआ, डर से अथवा चांदी के जूते के बूते हुआ कुछ भी नहीं कहा जा सकता | वहीं गाजीपुरअन्हारीपुर निवासी मदन यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार   विधानपरिषद सदस्य के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था और प्रशासन तथा स्थानीय बाहुबलियों के दबाव में नहीं आए तथा पर्चा वापस लेने को तैयार न हुए | यह सब होता देख प्रशासन ने अन्तिम प्रयास किया उम्मीदवार का घर ढहा दिया लेकिन श्री यादव ने अपनी उम्मीदवारी वापस न ली और  इस घटाटोप अंधेरे में भी जुगनू से डटे रहे , पर क्या निर्वाचन आयोग निष्पक्ष है |

 संवैधानिक शून्यता 

क्या संविधान का शून्य काल चल रहा है या संविधान खामोश है  अथवा संविधान में ऐसा प्रावधान है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इसे जैसे परिभाषित और संचालित करें यह वैसा ही हो जाएगा |

   एक बीमार व्यवस्था का श्रीगणेश

ऐसा पहले की भी सरकारें यदाकदा करती आयी हैं परन्तु यह निराल अराजकता निराश कर रही है |संवैधानिक संस्थाओं व संवैधानिक व्यवस्था से  | न्यायपालिका तो आंखों पर पट्टी बाँध हाथ में तुला लिए है उसे तो कुछ दिखाई ही नहीं देता परन्तु समय सब देखता सबका हिसाब करेगा  |
भविष्य में इस व्यवस्था के पुष्पन और पल्लवन की संभावना अधिक है, अगर विपक्ष सत्ता में आया तो इस परम्परा को  दोगुना प्रभाव से  आगे बढाएगा |

मीडिया की वर्णांधता अथवा जमीर का सौदा

मुख्य धारा की मीडिया कहे जाने वाले कुछ अखबार तथा संचार माध्यम कुछ रंगों को पहचानने में अक्षम साबित हो रहे हैं | सत्ता द्वारा फेंकें गए हड्डी के टुकड़ों पर दुम हिला रहे हैं और सच दिखाने से कतरा रहे हैं | कुछ अनुदानित राजनैतिक पदों और विज्ञापन तथा सरकारों के चारण बन कर रह गए हैं |
अगर मीडिया सच्चाई दिखाने लगे तो यह अनर्गल शायद रुक जाता |

निर्वाचन आयोग को डिक्लेअर करना चाहिए सत्ता पक्ष के ही हो ं ये पद

अगर ऐसी ही अन्धेरगर्दी और अनाचार होना है तो निर्वाचन आयोग को यह डक्लेयर कर देना चाहिए की जिसकी सत्ता उसी के विधानपरिषद सदस्य स्थानीय प्राधिकरण | इससे धन और धर्म दोनों की रक्षा हो जाती ||

Comments

  1. चुनाव आयोग धृतराष्ट्र की भूमिका बखूबी से निर्वहन कर रहा है।

    लोकतंत्र समाप्त हो चुका है।

    ReplyDelete

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