Skip to main content

डड़कटवा के विरासत

 डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम  से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में  लगभग हर घर में  पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन  , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में  फंसल  रहेला  , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के  डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन  पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले |       कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी  मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...

मुखिया बनेंगे

मुखिया बनेंगे ? 

           .... तो याद रखिये |


प्रखर समाजवादी विचारक डा० राममनोहर लोहिया ने कहा था " जिन्दा कौमें पांच साल इन्तजार नहीं करती "
जब से मैं जानने के योग्य हुआ गाँव से लेकर ब्लॉक, जनपद और प्रदेश तथा देश की राजनीति को लहरते  , घहरते  देखा हूँ,  चुनाव आते ही गाँव में चुनावी विशेषज्ञों की चांदी हो जाती है हर व्यक्ति अपने स्तर का प्रकाण्ड चुनावी समीक्षक होता है ,भले उसकी आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षिक स्थिति कुछ भी हो एकाध घंटे में एक प्रत्याशी को जिताने और हराने की मौखिक कुशलता  बखूबी रखता है! सामाजिक खोरहों (ईर्ष्यालुओं) के भी कौशल प्रदर्शन की गहन परीक्षा होती है  ये योग्य उम्मीदवार को नीचा और बहुआयामी अयोग्य को उत्कृष्ट बताने की कला से समृद्ध होते हैं, इनके हनी ट्रेप  में पढे - लिखे मूढ़ बखूबी फंस जाते हैं!
अब बारी आती है आधारहीन पुरानी अदावत के प्रतिशोध की उम्मीदवार के कथित विरोधी निन्दा रस के रसिक याद दिलाते हैं 'वोट देवता को - अरे आप फलां को वोट देंगे.. फलां को... भूल गए क्या❓ इसी के दादा ने आपके दादा के बंजर बाग से आंछी का पेड़ काटा था उसकी एक जुआठ (जुआं - बैलों के कंधे पर रखी जाने वाली लकड़ी) बनवाया, इसे तो आप हर्गिज वोट मत दीजिएगा! 
    और वोट देवता को बात समझ आ जाती है, अब वो भला उसे वोट कैसे दे सकते हैं! 
    अब बात आती है वर्तमान, भूत अथवा भविष्य में उम्मीदवार बनने की दमित इच्छा लिए जीवित जीवधारियों की जो फलां के उम्मीदवार होने से कट - कट के रह जा रहे हैं वे  सशरीर तो साथ हैं परन्तु आत्मा भटक रही है  अवसर को भुनाने से नहीं चूकते!! 
     एक श्रेणी ऐसी भी है जो  सशरीर साथ आने में तो उसका वश नहीं चलता परन्तु आत्मिक रुप से साथ रहकर मजबूत करते हैं, इन्हें साइलेंट वोटर कहते हैं जो उत्तम श्रेणी के माने जाते हैं!! 

                

  अब बात आती है कत्ल की रात स्त्रातजी की यह मतदान से एक दिन पूर्व की रात होती है इस दिन अफवाह, दलील और दलाली से बचे वोट देवता हवा की प्रतीक्षा में रहते हैं कि जिधर की हवा हो चढ़ जाओ  इस उतार - चढ़ाव और धींगा - मुस्ती  के साथ  उम्मीदवारों की तकदीर मतपेटी में बन्द हो जाती है  ! 
फिर गाँव की गली, चट्टी , चौकी और चौपाल  चर्चाओं से गरम होती है  , सब अपने - अपने तरीके से अपने उम्मीदवार को जीताते  हैं तर्क और कुतर्क देते हैं   ! धीरे - धीरे वह दिन भी आ जाता है मतगणना होती है एक व्यक्ति जीतता है बाकी कुछ मतों से छूट जाते हैं, एक तरफ खुशहाली होती है फूल - माला मिठाई, जिन्दाबाद, आशीर्वाद का सिलसिला चल पड़ता है! दूसरे तरफ उदासी, मातम, खर्च और वोटों की समीक्षा होती है! गाँव में नये सिरे से गोल- गोलबंदी, भवदीय बन बिगड़ जाती है, पांच बरस के लिए सामाजिक संरचना तैयार होती है! फिर खोरहा अपने काम में निन्दक अपने व्यवसाय में प्रधान जी कहीं गांठ जोड़ने, कहीं गांठ छोड़ने सामाजिक संतुलन बनाने में व्यस्त.सब अगले पाँच वर्ष के लिए....
            लेखक - विरंजय

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

इसे साहस कहूँ या बद्तमीजी

इसे साहस कहूँ या     उस समय हम लोग विज्ञान स्नातक (B.sc.) के प्रथम वर्ष में थे, बड़ा उत्साह था ! लगता था कि हम भी अब बड़े हो गए हैं ! हमारा महाविद्यालय जिला मुख्यालय पर था और जिला मुख्यालय हमारे घर से 45 किलोमीटर दूर!  जिन्दगी में दूसरी बार ट्रेन से सफर करने का अवसर मिला था और स्वतंत्र रूप से पहली बार  | पढने में मजा इस बात का था कि हम विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे, तुलना में कला वर्ग के विद्यार्थियों से श्रेष्ठ माने जाते थे, इस बात का हमें गर्व रहता था! शेष हमारे सभी मित्र कला वर्ग के थे ,हम उन सब में श्रेष्ठ माने जाते थे परन्तु हमारी दिनचर्या और हरकतें उन से जुदा न थीं! ट्रेन में सफर का सपना भी पूरा हो रहा था, इस बात का खुमार तो कई दिनों तक चढ़ा रहा! उसमें सबसे बुरी बात परन्तु उन दिनों गर्व की बात थी बिना टिकट सफर करना   | रोज का काम था सुबह नौ बजे घर से निकलना तीन किलोमीटर दूर अवस्थित रेलवे स्टेशन से 09.25 की ट्रेन पौने दस बजे तक पकड़ना और लगभग 10.45 बजे तक जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन पहुँच जाना पुनः वहाँ से पैदल चार किलोमीटर महाविद्यालय पहुंचना! मतल...

उ कहाँ गइल

!!उ कहाँ गइल!!  रारा रैया कहाँ गइल,  हउ देशी गैया कहाँ गइल,  चकवा - चकइया कहाँ गइल,         ओका - बोका कहाँ गइल,        उ तीन तड़ोका कहाँ गइल चिक्का  , खोखो कहाँ गइल,   हउ गुल्ली डण्डा कहाँ गइल,  उ नरकट- कण्डा कहाँ गइल,           गुच्ची- गच्चा कहाँ गइल,           छुपा - छुपाई कहाँ गइल,   मइया- माई  कहाँ गइल,  धुधुका , गुल्लक कहाँ गइल,  मिलल, भेंटाइल  कहाँ गइल,       कान्ह - भेड़इया कहाँ गइल,       ओल्हापाती कहाँ गइल,  घुघुआ माना कहाँ  गइल,  उ चंदा मामा कहाँ  गइल,      पटरी क चुमउवल कहाँ गइल,      दुधिया क बोलउल कहाँ गइल,   गदहा चढ़वइया कहाँ गइल,   उ घोड़ कुदइया कहाँ गइल!!                  Copy@viranjy

काशी से स्वर्ग द्वार बनवासी भाग ३

                     का शी से स्वर्ग द्वार बनवासी तक भाग ३ अब हम लोग वहाँ की आबोहवा को अच्छी तरह समझने लगे थे नगरनार जंगल को विस्थापित कर स्वयं को पुष्पित - पल्लवित कर रहा था बड़ी - बड़ी चिमनियां साहब लोग के बंगले और आवास तथा उसमें सुसज्जित क्यारियों को बहुत सलीके से सजाया गया था परन्तु जो अप्रतीम छटा बिन बोइ ,बिन सज्जित जंगली झाड़ियों में दिखाई दे रही थी वो कहीं नहीं थी| साल और सागौन के बहुवर्षीय युवा, किशोर व बच्चे वृक्ष एक कतार में खड़े थे मानो अनुशासित हो सलामी की प्रतीक्षा में हों... इमली, पलाश, जंगली बेर , झरबेरी और भी बहुत अपरिचित वनस्पतियाँ स्वतंत्र, स्वच्छन्द मुदित - मुद्रा में खड़ी झूम रहीं थी | हमने उनका दरश - परश करते हुए अगली सुबह की यात्रा का प्रस्ताव मेजबान महोदय के सामने रखा | मेजबान महोदय ने प्रत्युत्तर में तपाक से एक सुना - सुना सा परन्तु अपरिचित नाम सुझाया मानो मुंह में लिए बैठे हों.. " गुप्तेश्वर धाम " | नाम से तो ईश्वर का घर जैसा नाम लगा हम लोगों ने पूछा कुल दूरी कितनी होगी हम लोगों के ठहराव स्थल से तो ...