शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं, शिक्षक | अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें | उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी | सरकारी शिक्षकों का दायित्व एक सरकारी शिक्षक को , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण, बी एलओ, सफाई , एमडीएमए ,चुनाव और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल पैर और वजनदार शरीर अर्...
कुदरत ने हमें यह जीवन उपहार स्वरूप प्रदान किया है, हमें क्या हक है इसे यूँ ही नष्ट करने का ?
क्या हमने उस जीवन देने वाले के बारे में तनिक भी सोचा?
आंकड़े बताते हैं कि इसकी चपेट में 20 से 29वर्ष सतक के युवा हैं!
आखिर क्यों ऐसा करते हैं लोग आइये जानते हैं,
आत्महत्या के सामान्यतः दो ही कारण हो सकते हैं-
पहला -क्षणिक अवसाद
दूसरा- लम्बा अवसाद
क्षणिक अवसाद में व्यक्ति छोटी- छोटी समस्याओं से सामना करने का साहस नहीं कर पाता और यह कदम उठा लेता है,
इसका जिम्मेदार है, एकाकीपन की बेहूदा होड़..
बेतहाशा स्वप्न इत्यादि..
कभी- कभी लम्बे अवसाद से भी ग्रसित होकर लोग यह कदम उठाते हैं, जो बिलकुल ही नाजायज है,
यह जीवन प्रकृति क्षमा अनमोल उपहार है, इसे सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवित रखिए, चुनौतियों का सामना डट कर करें अपने मिज़ाज और सकारात्मक सोच के लोगों से दोस्ती रखिए, अपने आप को व्यस्त रखिए मस्त रहिये...
कविराज स्वर्गीय गोपाल दास नीरज की कुछ पंक्तियां है:
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है मोती व्यर्थ बहाने वालो !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है? नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालो।
डूबे बिना नहाने वालो !
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
ख़ुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालो !
फटी कमीज़ सिलाने वालो !
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी ।
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालो !
चाल बदलकर जाने वालो !
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं
शिकन न आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं
चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालो !
सब पर धूल उड़ाने वालो !
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है।
- गोपालदास नीरज
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