यूं नहीं हो गये मुलायम सिंह से नेता जी..
images sources internetधरतीपुत्र और नेता जी के नाम से विख्यात रहे , मुलायम सिंह यादव इस धरती पर नहीं रहे. लेकिन भारत की राजनीति पर मुलायम के कठोर फ़ैसलों की अमिट छाप लंबे समय तक रही.
नेता जी ने अपने लंबे राजनैतिक जीवन में कई कठोर फ़ैसले लिए जिनके लिए उन्हे याद रखा जाएगा ...
अपने जवानी के दिनों में कुश्ती केशौकीन नेता जी सक्रिय राजनीतिक में आने से पूर्व अध्यापक हुआ करते थे |
images sources internetसमाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित रहे, नेता जी ने अपने राजनैतिक सफ़र में पिछड़े तथा अल्पसंख्यक समुदाय के भलाई का नेतृत्व कर अपनी उर्वरा राजनैतिक भूमि तैयार की.
नेता जी ने राजनैतिक रूप से बेहद उर्वरा और उम्दा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में सन् 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रुप में सबसे कम उम्र के विधायक बनकर दमदार तरीक़े से अपने राजनैतिक करियर का शुभारम्भ किया .
उसके बाद नेता जी के राजनैतिक सफर में उतार-चढ़ाव तो आया परन्तु छोटे कद वाले नेता जी का राजनैतिक कद़ लगातार बढ़ता गया.
आइए जानें मुलायम के कठोर फैसलों के बारे में -
images sources internet1.समाजवादी पार्टी का गठन-
नेता जी ने सन् 1992 में जनता दल से अलग होकर एक एक अलग दल समाजवादी पार्टी का गठन किया |
तब तक पिछड़े और अल्पसंख्यकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हो चुके थे | नेता जी का ये एक बड़ा निर्णय था, जो उनके राजनैतिक जीवन के लिए सहायक सिद्ध हुआ.
नेता जी तीन बार उत्तरप्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री रहे और केंद्रीय राजनीति में भी अहम भूमिका निभाते रहे.
नेता जी ने राजनैतिक कुश्ती के अखाड़े में आपने चिरपरिचत और चर्चित चरखा दाव पर कई सरकारें बनाई और सरकारें गिराई |
2.अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने वालों पर गोली चलवाने का फैसला
images sources internet
नेता जी सन् 1989में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे.
केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के पतन के बाद नेता जी ने चंद्रशेखर (दाढ़ी) की जनता दल (समाजवादी) के समर्थन से अपने मुख्यमंत्री पद को बचाया .
जब अयोध्या के मंदिर आंदोलन की रफ्तार तेज हुई , तो विवादित ढांचा ढहाने का प्रयास करने वालों पर सन् 1990 में नेता जी ने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए और लोग घायल भी हुए .
बाद में मुलायम सिंह ने कहा था कि ये फ़ैसला बहुत कठिन था.
इस फैसले से नेता जी के आलोचक बढ़े परन्तु राजनैतिक कद और बढ़ा. उनके धुर विरोधी तो उन्हें 'मुल्ला मुलायम' की उपाधि तक दे डाला |
3. परमाणु समझौते पर यूपीए सरकार को समर्थन
वर्ष 2008 में यूपीए सरकार जो मनमोहन सिंह के नेतृत्व में अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट में आ गई थी, उस समय वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.
ऐसे अहम वक़्त पर नेता जी ने यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देकर सरकार को गिरने से बचाया था. उस समय राजनैतिक जानकारों का यह कहना था कि उनका ये फैसला समाजवादी विचार से जुदा था और व्यावहारिक उद्देश्यों से ज़्यादा प्रेरित थे.
4.अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय. .
images sources internetउत्रप्रदेश में वर्ष 2012 के हुए विधानसभा चुनाव में 403 में से 226 सीटें जीतकर नेता जी (मुलायम सिंह यादव ) ने अपने आलोचकों को एक बार फिर करारा जवाब दिया था.
जनता में समाजवादी लहर सिर चढ़ कर बोल रही थी , जनता को लग रहा था कि (मुलायम सिंह) चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे ,
लेकिन नेता जी ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को युवा मुख्यमंत्री बनाकर समाजवादी पार्टी के राजनैतिक भविष्य को एक नई दिशा देने की काम किया .
जबकि उनके राजनीतिक सफ़र में उनके हमसफ़र रहे उनके भाई शिवपाल यादव और चचेरे भाई राम गोपाल यादव के लिए यह निर्णय प्रसन्नता का विषय नहीं रहा.
ख़ासतौर से उनके छोटे भाई शिवपाल यादव के लिए जो स्वयं को नेता जी के बाद मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक हक़दार मान रहे थे. शायद यहीं समाजवादी पार्टी में उस दरार की शुरुआत हो गई थी.
5. कल्याण सिंह को साथ लेना
images sources internetराजनीति के चरखा दांव के माहिर (नेता जी)मुलायम सिंह का विपरीत विचारधारा के कल्याण सिंह को साथ मिलाना भी बहुत चर्चा में रहा.
साल 1999 में बीजेपी से निष्कासित कल्याण सिंह ने अपना अलग दल "राष्ट्रीय क्रांति पार्टी" बनाई थी.
उनकी पार्टी साल 2002 में विधान सभा चुनाव भी लड़ी.
हालाँकि कल्याण सिंह की पार्टी को केवल चार सीटों पर ही सफलता मिली, लेकिन वर्ष 2003 में नेता जी (मुलायम सिंह) ने उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल कर लिया. कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह और निकटस्थ कुसुम राय को सरकार में महत्वपूर्ण विभाग भी मिले.
लेकिन नेता जी से कल्याण का ये साथ ज्य़ादा दिनों तक नहीं निभा.
वर्ष 2004 के चुनावों से पहले ही कल्याण सिंह वापस बीजेपी के साथ हो लिए.लेकिन इससे भाजपा को कोई खास लाभ नहीं मिला.
बीजेपी ने 2007 का विधान सभा चुनाव कल्याण सिंह की नेतृत्व में लड़ा, लेकिन सीटों में इजाफा़ के बजाय घाटा हुआ इसके बाद 2009 के आम चुनाव के दौरान मुलायम की कल्याण से दोस्ती फिर बढी और कल्याण सिंह फिर से समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए.
इस दौरान उन्होंने कई बार भाजपा और उनके नेताओं को भला-बुरा भी कहा. उसी दौरान उनकी भाजपा पर की गई ये टिप्पणी भी बहुत चर्चित हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि, ''भाजपा मरा हुआ साँप है, और मैं इसे कभी गले नही लगाऊंगा.''
यह नेता जी के यादगार और कठोर फैसले थे ,जो मुलायम सिंह यादव को भारतीय राजनीति का अपरिहार्य किरदार बनाता है ||
Netajee
ReplyDeleteनेता जी की ज़मीनी पकड़ ही उनके राजनीतिक सफर का मूल था
ReplyDelete