स्कूल" स्कूलों का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...
महाड सत्याग्रह के लगभग सौ साल और दलित विमर्श
दलित उसे कहा गया जो दबाया गया हो, जिसे आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षिक अधिकारों से जिन्हें वंचित किया गया हो वो हैं दलित |
महाड सत्याग्रह को अभी सौ साल भी नहीं हुए और दलित दिगभ्रमित हो गया | भूल गया अपने पर हुए अत्याचार को , जब रास्ते तालाब और पनघट उसके लिए नहीं थे | एकाधिकार था उसपर अभिजात्य वर्ग का |
अछूतों से रास्ते दूषित हो जाया करते थे | जलाशयों से हिन्दू- मुस्लिम, सिक्ख व कुत्ते और जानवर तो पानी पी सकते थे परन्तु दलित ( कथित अछूत जो हिन्दू में ही गिने जाते थे ) पानी नहीं पी सकते थे | प्रकृति प्रदत्त इन संसाधनों पर अभिजात्य वर्ग का अधिकार था |गलती से अगर कोई कथित अछूत इन जलस्रोतों के जल का स्पर्श कर लिया तो गाय के मूत्र, गोबर व गंगाजल प्रवाहित कर जलाशय को पवित्र किया जाता था |
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने महाराष्ट्र के रायगढ़ में चावदार तालाब से 20 मार्च 1927 को अपनी अंजुरी में जलभर कर पीया और वहीं पर अर्धनग्न, नग्न, दबे -कुचले समाज को सम्बोधित किया तथा उनके अधिकार के प्रति जागरूक किया इस सत्याग्रह को महाड सत्याग्रह, चवदार मुक्ति सत्याग्रह और सामाजिक सशक्तिकरण दिवस का नाम दिया गया |
स्थिति आज भी कमोबेश बनी हुई है, शिक्षा, चिकित्सा और सम्बोधन के दोहरे मापदंड अछूत बनाए रखते एक बड़े वर्ग को और इन संसाधनों पर आज भी एक विशेष वर्ग काबिज है |
बाबा साहेब ने एक शम्मा जलाई वह खूब प्रकाश की परन्तु उनके सपने को बेच रहे हैं लोग... आने वाली पीढ़ी को दलित और अछूत बनाने के तरफ बढ़ रहे हैं लोग... आप भी सोचिए की आप किस प्रकार सम्मिलित हैं इस दुराग्रह में.....
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