शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं, शिक्षक | अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें | उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी | सरकारी शिक्षकों का दायित्व एक सरकारी शिक्षक को , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण, बी एलओ, सफाई , एमडीएमए ,चुनाव और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल पैर और वजनदार शरीर अर्...
लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी
गर्व होना भी चाहिए अपने प्रजातंत्र पर क्योंकि दुनिया की शासन व्यवस्था की सारी खूबसूरती हमारे संविधान में समेकित है!
पर प्रश्न यह है कि क्या संविधान निर्माताओं ने वर्तमान के इसी भारत का सपना देखा था?
भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, अस्फाक, चन्द्रशेखर आजाद बिस्मिल तथा लाला लाजपतराय व अन्य आजादी के दीवानों ने इसी आजादी और लोकतंत्र के अरमान रखे थे अपने हृदय में?
क्या यही है प्रजातांत्रिक व्यवस्था?
" जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए "
क्या उपर्युक्त महिमामंडन को आज भी मंडित किया जा रहा है?
उत्तर आप स्वयं ही दें!
आज चुनाव धनबल और बाहुबल के भरोसे जीते जाते हैं!
दलों के दल-दल में दलालों का नेतृत्व चुनने पर मजबूर है जन तो इससे कैसे तंत्र के विकास की कल्पना की जा सकती है!
चुनाव तो लोकतंत्र के नाम पर ही होते हैं, उसमें अपराधी या भ्रष्टाचारी अथवा आज के वर्तमान शब्दों में जिताऊ उम्मीदवार चुनाव में उतारे जाते हैं, उससे भी बात नहीं बनती तो जीत कर आए सदस्यों को साम, दाम, दण्ड-भेद से अपने पाले में लाने का प्रयास किया जाता है!
फिर बनता है एक निकाय प्रमुख चाहे वह प्रधान, मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो!
अब शुरू होता है लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी पर श्रद्धांजलि जो इस जुगाड़ से सत्ता हथियाए रहता है अब वह अधिनायकवाद के रुप में शासन शुरू करता है, उसके सारे फैसले अकेले के होते हैं, वर्तमान में गोवा, मध्यप्रदेश की सरकारों का गठन आप देख ही रहे हैं!
वर्तमान की पार्टियों के अध्यक्षों को देखा जाए तो वे दलों को निजी सम्पत्ति मानते हैं और उत्तराधिकार को विरासत में अपने पुत्रों या निकट संबन्धियों को सौंपते जाते हैं!
यदि यही लोकतंत्र है तो जी करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर.....
Comments
Post a Comment