डड़कटवा के विरासत जब सावन आवेला त रोपनी आ खेती जमक जाले , लोग भोरही फरसा (फावड़ा) लेके खेत के हजामत बनावे चल दे ला , ओहमें कुछ लोग स्वभाव से नीच आ हजामत में उच्च कोटि के होला ओहके डड़कटवा (खेत का मेड़ काट कर खेत बढाने की नाजायज चेष्टा रखने वाला व्यक्ति )के नाम से जानल जाला .. डड़कटवा हर गांव में लगभग हर घर में पावल जाले , डड़कटवा किस्म के लोग कई पुहुत (पुश्त) तक एह कला के बिसरे ना देलन , कारण इ होला की उनकर उत्थान -पतन ओही एक फीट जमीन में फंसल रहेला , डड़कटवा लोग एह कला के सहेज (संरक्षित ) करे में सगरो जिनिगी खपा देलें आ आवे वाली अपनी अगली पीढ़ी के भी जाने अनजाने में सीखा देबेलें , डड़कटवा के डाड़ (खेत का मेड़) काट के जेवन विजय के अनुभूति होखे ले , ठीक ओइसने जेइसन पढ़ाकू लइका के केवनो परीक्षा के परिणाम आवे पर पास होइला पर खुशी होखे ले | कुल मिला के जीवन भर डाड़ काट के ओह व्यक्ति की नीचता के संजीवनी मिलेले आ ओकर आत्मा तृप्त हो जाले बाकी ओके भ्रम रहेला की खेत बढ़ गईल , काहे की ,एकगो कहाउत कहल जाले की...
लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी
गर्व होना भी चाहिए अपने प्रजातंत्र पर क्योंकि दुनिया की शासन व्यवस्था की सारी खूबसूरती हमारे संविधान में समेकित है!
पर प्रश्न यह है कि क्या संविधान निर्माताओं ने वर्तमान के इसी भारत का सपना देखा था?
भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, अस्फाक, चन्द्रशेखर आजाद बिस्मिल तथा लाला लाजपतराय व अन्य आजादी के दीवानों ने इसी आजादी और लोकतंत्र के अरमान रखे थे अपने हृदय में?
क्या यही है प्रजातांत्रिक व्यवस्था?
" जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए "
क्या उपर्युक्त महिमामंडन को आज भी मंडित किया जा रहा है?
उत्तर आप स्वयं ही दें!
आज चुनाव धनबल और बाहुबल के भरोसे जीते जाते हैं!
दलों के दल-दल में दलालों का नेतृत्व चुनने पर मजबूर है जन तो इससे कैसे तंत्र के विकास की कल्पना की जा सकती है!
चुनाव तो लोकतंत्र के नाम पर ही होते हैं, उसमें अपराधी या भ्रष्टाचारी अथवा आज के वर्तमान शब्दों में जिताऊ उम्मीदवार चुनाव में उतारे जाते हैं, उससे भी बात नहीं बनती तो जीत कर आए सदस्यों को साम, दाम, दण्ड-भेद से अपने पाले में लाने का प्रयास किया जाता है!
फिर बनता है एक निकाय प्रमुख चाहे वह प्रधान, मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो!
अब शुरू होता है लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी पर श्रद्धांजलि जो इस जुगाड़ से सत्ता हथियाए रहता है अब वह अधिनायकवाद के रुप में शासन शुरू करता है, उसके सारे फैसले अकेले के होते हैं, वर्तमान में गोवा, मध्यप्रदेश की सरकारों का गठन आप देख ही रहे हैं!
वर्तमान की पार्टियों के अध्यक्षों को देखा जाए तो वे दलों को निजी सम्पत्ति मानते हैं और उत्तराधिकार को विरासत में अपने पुत्रों या निकट संबन्धियों को सौंपते जाते हैं!
यदि यही लोकतंत्र है तो जी करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर.....
Comments
Post a Comment