स्कूल" स्कूलों का मर्जर : वंचितों से छीनी जा रही है शिक्षा की आखिरी उम्मीद — एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक समीक्षा "शिक्षा एक शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं" — नेल्सन मंडेला। लेकिन क्या हो जब वह शस्त्र वंचितों के हाथ से छीन लिया जाए? उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर (विलय) की नीति न केवल शिक्षा का ढांचा बदल रही है, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों को भी कुचल रही है जिनके पास स्कूल ही एकमात्र रोशनी की किरण था। 1. मर्जर की वजहें – प्रशासनिक या जनविरोधी? amazon क्लिक करे और खरीदें सरकार यह कहती है कि बच्चों की कम संख्या वाले विद्यालयों का विलय करना व्यावसायिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित है। पर यह सवाल अनुत्तरित है कि – क्या विद्यालय में छात्र कम इसलिए हैं क्योंकि बच्चों की संख्या कम है, या इसलिए क्योंकि व्यवस्थाएं और भरोसा दोनों टूट चुके हैं? शिक्षक अनुपात, अधूरी भर्तियाँ, स्कूलों की बदहाली और गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति — क्या यह स्वयं सरकार की नीति की विफलता नहीं है? 2. गांवों के बच्चों के लिए स्कूल ...
लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी
गर्व होना भी चाहिए अपने प्रजातंत्र पर क्योंकि दुनिया की शासन व्यवस्था की सारी खूबसूरती हमारे संविधान में समेकित है!
पर प्रश्न यह है कि क्या संविधान निर्माताओं ने वर्तमान के इसी भारत का सपना देखा था?
भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, अस्फाक, चन्द्रशेखर आजाद बिस्मिल तथा लाला लाजपतराय व अन्य आजादी के दीवानों ने इसी आजादी और लोकतंत्र के अरमान रखे थे अपने हृदय में?
क्या यही है प्रजातांत्रिक व्यवस्था?
" जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए "
क्या उपर्युक्त महिमामंडन को आज भी मंडित किया जा रहा है?
उत्तर आप स्वयं ही दें!
आज चुनाव धनबल और बाहुबल के भरोसे जीते जाते हैं!
दलों के दल-दल में दलालों का नेतृत्व चुनने पर मजबूर है जन तो इससे कैसे तंत्र के विकास की कल्पना की जा सकती है!
चुनाव तो लोकतंत्र के नाम पर ही होते हैं, उसमें अपराधी या भ्रष्टाचारी अथवा आज के वर्तमान शब्दों में जिताऊ उम्मीदवार चुनाव में उतारे जाते हैं, उससे भी बात नहीं बनती तो जीत कर आए सदस्यों को साम, दाम, दण्ड-भेद से अपने पाले में लाने का प्रयास किया जाता है!
फिर बनता है एक निकाय प्रमुख चाहे वह प्रधान, मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो!
अब शुरू होता है लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी पर श्रद्धांजलि जो इस जुगाड़ से सत्ता हथियाए रहता है अब वह अधिनायकवाद के रुप में शासन शुरू करता है, उसके सारे फैसले अकेले के होते हैं, वर्तमान में गोवा, मध्यप्रदेश की सरकारों का गठन आप देख ही रहे हैं!
वर्तमान की पार्टियों के अध्यक्षों को देखा जाए तो वे दलों को निजी सम्पत्ति मानते हैं और उत्तराधिकार को विरासत में अपने पुत्रों या निकट संबन्धियों को सौंपते जाते हैं!
यदि यही लोकतंत्र है तो जी करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर.....
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