बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय समाज बाबा साहब समाज में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सबसे बड़े पुरोधा माने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष व दलितों के अधिकारों के लिए समर्पण और भारतीय संविधान में उनके योगदान ने उन्हें सामाजिक क्रांति का सिम्बल बना दिया है। वर्तमान भारतीय राजनीति में उनका नाम अक्सर उद्धृत किया जाता है, परन्तु क्या आज की राजनीति उनके विचारों के अनुरूप चल रही है? क्या जातिवाद अब भी भारतीय समाज की जड़ में है? आइए इस पर एक स्वस्थ विमर्श करें. .. 1. बाबा साहब अम्बेडकर के विचार और उनका महत्त्व जाति व्यवस्था पर उनका दृष्टिकोण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' का विश्लेषण भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का समावेश आरक्षण नीति की अवधारणा 2. वर्तमान भारतीय राजनीति में अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता राजनीतिक दलों द्वारा अम्बेडकर का प्रतीकात्मक प्रयोग सामाजिक न्याय बनाम चुनावी राजनीति आरक्षण की राजनीति और उसका दुरुपयोग दलित नेतृत्व का उदय और उसकी सीमाएँ 3. जातिवाद: आज भी जीवित और प्रबल आधुनिक भारत में जातिवाद के नए रूप शिक्षा, नौकरियों और न्याय व्यवस्था ...
लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी
गर्व होना भी चाहिए अपने प्रजातंत्र पर क्योंकि दुनिया की शासन व्यवस्था की सारी खूबसूरती हमारे संविधान में समेकित है!
पर प्रश्न यह है कि क्या संविधान निर्माताओं ने वर्तमान के इसी भारत का सपना देखा था?
भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, अस्फाक, चन्द्रशेखर आजाद बिस्मिल तथा लाला लाजपतराय व अन्य आजादी के दीवानों ने इसी आजादी और लोकतंत्र के अरमान रखे थे अपने हृदय में?
क्या यही है प्रजातांत्रिक व्यवस्था?
" जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए "
क्या उपर्युक्त महिमामंडन को आज भी मंडित किया जा रहा है?
उत्तर आप स्वयं ही दें!
आज चुनाव धनबल और बाहुबल के भरोसे जीते जाते हैं!
दलों के दल-दल में दलालों का नेतृत्व चुनने पर मजबूर है जन तो इससे कैसे तंत्र के विकास की कल्पना की जा सकती है!
चुनाव तो लोकतंत्र के नाम पर ही होते हैं, उसमें अपराधी या भ्रष्टाचारी अथवा आज के वर्तमान शब्दों में जिताऊ उम्मीदवार चुनाव में उतारे जाते हैं, उससे भी बात नहीं बनती तो जीत कर आए सदस्यों को साम, दाम, दण्ड-भेद से अपने पाले में लाने का प्रयास किया जाता है!
फिर बनता है एक निकाय प्रमुख चाहे वह प्रधान, मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो!
अब शुरू होता है लोकतंत्र के अर्थ की अर्थी पर श्रद्धांजलि जो इस जुगाड़ से सत्ता हथियाए रहता है अब वह अधिनायकवाद के रुप में शासन शुरू करता है, उसके सारे फैसले अकेले के होते हैं, वर्तमान में गोवा, मध्यप्रदेश की सरकारों का गठन आप देख ही रहे हैं!
वर्तमान की पार्टियों के अध्यक्षों को देखा जाए तो वे दलों को निजी सम्पत्ति मानते हैं और उत्तराधिकार को विरासत में अपने पुत्रों या निकट संबन्धियों को सौंपते जाते हैं!
यदि यही लोकतंत्र है तो जी करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर.....
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